तुम मौजुद नहीं थे : शरदचाँद थियाम
अनवरत कहानी की धारा में
बहने वाली असंख्य
घटनाओं में
तुम मौजुद नहीं
थे ।
पढ़ जाऊँ
तुम्हारा नाम
इस आशा में पलटता
रहा पन्ना ।
लेकिन नहीं
एक भी नहीं ।
तुम्हारे छुपने
की,
अपना नाम न लेने
की, होगी वजह कोई ।
तुम जानते हो कि सब
व्यर्थ है
नाम और शोहरत के
लालच में
ढोंगियों के अनेक
कारनामे ।
कर्म
है तुम्हारा पसंदीदा
।
जीना
तुम्हारी अतृप्त
इच्छा ।
मरना
तुम्हारा
सर्वोच्च प्रेम ।
नाम
नहीं पसंद
तुम्हें जरा भी ।
तुम्हारे मरने के
बाद
तुम्हारा गुणगान
करने वाले,
बढ़ा- चढ़ाकर
बोलने वाले
निकल सकते हैं
अनेक
इस शंका में दुखी
हो तुम ।
जब तक तुम जीवित
हो
तुमने नहीं होने
दिया शामिल अपना नाम ।
मगर तुम्हारे
मरने के बाद
हर पन्ने में
तुम्हारा नाम डालकर
सुबह-शाम तेरे नाम
जपने से
बन जाओगे तुम
ईश्वर ।
मैं जानता हूँ
ऐसा न हो इसलिए
नहीं रहने दिया अपना नाम ।
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