ads header

Hello, I am Thanil

Hello, I am Thanil

नवीनतम सूचना

उदय प्रकाश की कहानियों में संबंधों की समग्रता :डॉ. वाइखोम चींखैङानबा


समकालीन हिंदी रचनाकारों में उदय प्रकाश एक महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। वे एक ऐसे रचनाकार हैं जिन्हें गद्य और पद्य दोनों में महारत हासिल है। उदय प्रकाश के पाँच कविता संग्रहसुनो कारीगर (1980 ई.), अबूतर कबूतर (1984 ई.), रात में हारमोनियम (1998 ई.),एक भाषा हुआ करती है (2008 ई.) और अम्बर में अबाबील (2019 ई.) तथा नौ कहानी संग्रहदरियाई घोड़ा (1982 ई.), तिरिछ (1990 ई.), ...और अंत में प्रार्थना (1994 ई.), पॉल गोमरा का स्कूटर (1997 ई.), पीली छतरी वाली लड़की (2001 ई.), दत्तात्रेय के दुख (2001 ई.), मोहनदास (2006 ई.), मैंगोसिल (2006 ई.) और अरेबा परेबा (2006 ई.) साथ ही तीन आलोचनात्मक पुस्तकेंईश्वर की आँख (1999 ई.), अपनी उनकी बात (2008 ई.) और नयी सदी का पंचतंत्र (2008 ई.) प्रकाशित हो चुकी हैं।

उदय प्रकाश की कहानियाँ संबंधों के मर्म और उसके महत्व को उजागर करने में महती भूमिका निभाती हैं।अगर हम उदयप्रकाश के जीवन को ध्यान से देखें तो पता चलता है कि उनका बचपन बहुत दयनीय रहा है। बचपन में ही उन्होंने माता पिता को खोया है और उन्होंने अनेक कष्टों का सामना किया है। शायद इसीलिए उनकी कहानियाँ जब संबंधों का बया करती हैं तो हमारे सामने उसका जीवंत रूप उपस्थित होता है।  हमारे दिल को छू लेती हैं। अपने बचपन को याद करते हुए उदय प्रकाश कहते हैं – “मुझे याद है, जब मैं बहुत छोटा था और माँ कैंसर में मर रही थीं, डॉक्टरों ने जवाब दे दिया था और उन्हें मुंबई के टाटा मेमोरियल अस्पताल से गाँव के घर में वापस ले आया गया था। पिताजी के पास सारे पैसे और जेवर खत्म हो चुके थे। अब कोई भौतिक और बाहरी मदद माँ के लिए निरर्थक हो चुकी थी।1 उनके इस वाक्य से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उदय प्रकाश का बचपन किस अवस्था में गुजरा है।

उदय प्रकाश की कहानियों में माँ, पिता, भाई, बहन, दादी आदि रिश्तों का गहरा अनुराग मिलता है। दरियाई घोड़ा, मूंगा, धागा और आम का बौर, छप्पन तोले का करधन, तिरिछ, नेलकटर, अपराध आदि कहानियाँ संबंधों की गहरी मार्मिकता को उजागर करने वाली हैं।

उदय प्रकाश की माँ के ऊपर लिखी गई कहानियों में मूँगा, धागा और आम का बौर तथा नेलकटर (आत्मकथात्मक कहानी) विशेष महत्व रखती हैं। हर परिवार में माता की अहम भूमिका होती है। परिवार को शीतलता प्रदान करने वाली माँ के गुजर जाने के बाद जीवन में किस तरह बिखराव आता है, बचपन किस तरह बीतता है, इसको मूँगा, धागा और आम का बौर कहानी में लेखक ने मैं शैली अपना कर मार्मिक ढंग से व्यक्त किया है। जब कथा वाचक लड़का सन्नाटे में यादें बुनता है और माँ की याद में रोता है, तब उस की पीड़ा हमारे दिल को छू लेती है। लेखक ने मैं शैली अपना कर कहानी में यूं लिखा हैमैं साँझ के बाद या अक्सर नींद आने से पहले कभी-कभी रोने लगता।रात में। कभी-कभी बीच में उठकर। फिर एक गिलास पानी पीता और सो जाता। लगता सब जगे हुए हैं। दीदी भी और भइया भी। लेकिन सब नींद का अभिनय कर रहे हैं।2 मातृविहीन एक बालक की स्थितियों का बहुत जीवंत चित्रण उदय प्रकाश ने अपनी इस कहानी में किया है। इसी तरह नेलकटर भी माँ को केंद्र में रखकर लिखी गई आत्मकथात्मक कहानी है। इसमें माँ और पुत्र का गहरा संबंध दृष्टि गोचर होता है। कहानी की एक पंक्ति इस प्रकार हैमाँ ने मेरे बालों को छुआ। वे कुछ कहना चाहती थीं। लेकिन मैंने रोक दिया। वे बोलती तो पूछती कि मैं सिर से क्यों नहीं नहाता? बालों में साबुन क्यों नहीं लगाता? इतनी धूल क्यों है? और कंघी क्यों नही कर रखी है?”3 यहाँ पर कैंसर से ग्रस्त माँ जो बोल नहीं पाती है उसके पास बैठकर कथा वाचक बालक मन ही मन माँ की भावनाओं को महसूस कर रहा है। इससे स्पष्ट होता है कि जब माँ बीमार नहीं थी तब उन्होंने उस बालक को कितना प्यार और ममता दी है। लेकिन आज माँ को बोलने में बहुत तकलिफ होती है। इसलिए भावनाओं को महसूस करना कथा वाचक बालक के लिए एक आदत सी हो जाती है। माँ ठीक से बोल नहीं पाकर भी अपने पुत्र के प्रति गहरी ममता उनके हाव-भाव में दिखाई देती है।

दरियाई घोड़ा और तिरिछ पिता को लेकर लिखी गई उदय प्रकाश की अत्यंत मार्मिक कहानियाँ हैं। इन कहानियों में भी उदय प्रकाश ने आत्म वाची शिल्प का प्रयोग किया है। दरियाई घोड़ा कहानी में कथा वाचक के पिता कैंसर जैसी बीमारी से ग्रस्त है।जिन लोगों को उदय प्रकाश के आरंभिक जीवन के बारे में पता है, उन्हें यह ज्ञात है कि उदय प्रकाश के माता-पिता दोनों की मृत्यु कैंसर से ही हुई है। यही कारण है कि दरियाई घोड़ा कहानी गहन आत्मीयता, संवेदनशीलता और भावुकता के रेशे-रेशे से बुनी गई है। कहानी का जो पिता है, जब वह स्वस्थ था, कभी-कभी अपने दरियाई घोड़े की तरह के जबड़े को फैलाकर अपने गालों को खींचता था। लेकिन अब उसी दरियाई घोड़े जैसे बलिष्ठ पुरुष का चहेरा कैंसर के कारण विकृत और भयावह हो गया है। कहानी की आरंभिक पंक्तियाँ इस प्रकार है -अंधेरा ही दादा की आँखों में रहा होगा।वे किसी भी चीज को देखते नहीं लग रहे थे। सारी चीजें जैसे पारदर्शी हो गई हों... अपना अस्तित्व उन्होंने खो दिया हो और दादा की आँखें जैसे उनके पार कहीं अटक गई हों। ऐसे अंधेरे में कई कई रंगों के गुब्बारे तैरते हैं... ज्यामितियाँ बनती हैं। फिर वे सब नष्ट हो जाती हैं।4 कहानीकार ने दरियाई घोड़े के रूपक के द्वारा वस्तुतः अपने दुख की गहनता को व्यक्त करने की कोशिश की है। दुख या पीड़ा सघन तब होती है जब हमारा कोई अत्यंत निकट का व्यक्ति जो बहुत ही मजबूत और शक्तिशाली रहा हो और हम उसे जर्जर होता हुआ देखें। दरियाई घोड़ा कहानी बाल मन को भी व्यक्त करती है तथा पुत्र का पिता के प्रति प्यार को भी भली प्रकार से दर्शाती है। अपने पिता के प्रति प्यार और श्रद्धा इतनी गहरी थी कि जब कथा वाचक लड़का अपने पिता जो छोड़ कर घर जाता है, तब पिता ठीक हो जायेंगे या नहीं इस व्याकुलता के कारण इतना भावुक होता है कि वह स्टेशन पर रोने लगता है – “जब प्लेटफार्म पर था तब याद आया कि दादा के नाखून बहुत बढ़ गये थे और उनमें मैल भरा हुआ था। मैंने अपने मुँह के दोनों छोरों पर उँगलियाँ फँसाईं, उन्हें खींचा... और मेरा जबड़ा फैल गया। दरियाई घोड़े की तरह। मैं फूट-फूटकर रो रहा था, प्लेटफार्म पर। भीड़ के बीच अब तमाशा था मैं।5 इस कहानी का संपूर्ण ढाँचा पिता और पुत्र (कथावाचक) से बना है। कहानीकार ने संबंधों के मर्म, मानवीय संवेदना, पारिवारिक दुख दर्द को इस कहानी में भली प्रकार से उद्घाटित कियाहै। इस संदर्भ में प्रतिष्ठित आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी लिखते हैंउदय प्रकाश पात्रों की पीड़ित, बेसहारा, असहनीय दारुण स्थिति का चित्रण सीमांत पर जाकर खींचते हैं।

 दुर्गति के अंतिम छोर तक वे पीड़ित पात्रों को ले जाते हैं। पीड़ा का यह चित्रण पीड़ा का लेखक के पास पहुँच कj विस्तारित हो जाना है। यह कथाकार की पात्र पीड़ा का तीव्रता अहसास भी है । बच्चे की जहा सी तकलीफ माँ के लिए बहुत बड़ी तकलीफ जैसा बन जाना है। और अंत तोगत्वा उदय प्रकाश की पात्र दुखकातरता और अतिसंवेदनशीलता का प्रमाण है।6 इस प्रकार कहानी यह दर्शाती है कि उदय प्रकाश की कहानियाँ बौद्धिकता के बरक्स हार्दिकता को प्रश्रय देती हैं।

तिरिछ भी उदय प्रकाश की पिता के ऊपर लिखी गई अत्यंत मार्मिक कहानी है। इस कहानी में कथावाचक का पिता जैविक तिरिछ के काटने से नहीं वरन शहररूपी तिरिछ के काटने से मरता है। ये कहानी एक तरफ संवेदनहीन मानवीय प्रवृत्ति तथा शहरी लोगों की मानसिकता को प्रकट करती है, वहीं दूसरी ओर पिता और पुत्र के गहरे रिश्ते को उजागर करती है। कहानी की पंक्तियाँ देखने योग्य हैहम पिताजी पर गर्व करते थे, प्यार करते थे, उन से डरते थे और उनके होने का अहसास ऐसा था जैसा हम किसी किले में रह रहे हों। ऐसा किला, जिसके चारों ओर गहरी नहरें खुदी हुई हों, बुर्जें बहुत ऊँची हों, दीवारें सख्त लाल चट्टानों की बनी हुई हों और हर बाहरी हमले के सामने हमारा किला अभेद्य हो।7यह सच है कि माता-पिता के छत्रछाया में परिवार में हर कोई सुरक्षित महसूस होती है तथा अपने आप में एक विश्वास होता है कि हम उनके होने पर दुनिया को ललकार सकते हैं। इस तरह की भावना तथा शक्ति प्रदान करने वाले पिता की अचानक मृत्यु हो जाती है तो दिल को कितना ठेस पहुँचेगा।इसी तरह तिरिछ कहानी का कथा वाचक लड़का अपने पिता की मृत्यु के कारण को लेकर बहुत कष्ट सहता है। एक तरह से तिरिछ कहानी संबंधों के मर्म को भली प्रकार से उद्घाटित करने में सफलता को प्राप्त करती है और अपनी अलग ही शैली के कारण भी एक अनोखी कहानी है। इस कहानी के संदर्भ में सत्य प्रकाश मिश्र लिखतेहैं। – “तिरिछ के प्रारंभ में चौबटेपन का संकेत है जो यथार्थ और स्वप्न की द्विभाजिकता के व्यापक ढांचे के भीतर विभिन्न दृश्यों के कंपोजीशन के कारण संवेदना को चिंतन और आत्मीय पीड़ा का आयाम भी प्रदान कर सका है। इसकी मियगिरी में वाक्यों की कामरेडशिप की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। यह कामरेडशिप कहानी विद्या के प्रति अतिरिक्त उत्तरदायित्व की माँग करती है। उदय प्रकाश इसमें भाषा की पारदर्शिता को बनाये रख कर स्मृति और स्वप्न के माध्यम से पारदर्शिता के बीच में जगह जगह बाधा उत्पन्न करते हैं जिससे कहानी में यथार्थ के कई स्तर एक साथ उद्घाटित हो जाते हैं।8

छप्पन तोले का करधन उदय प्रकाश की पारिवारिक संबंधों को लेकर लिखी गई अत्यंत चर्चित कहानी है। इस कहानी में संबंधों के कलुषित होने की स्थिति को दिखाया गया है। लालच और लोभ के कारण मनुष्य किस हद तक गिर सकता हैइस कहानी से ज्ञात होता है। यहाँ पर घर की सब से बुजुर्ग महिला को घर की एक अंधेरी कोठरी में अकेले सड़ने देती है क्योंकि घर वालों को विश्वास है कि उसी ने छप्पन तोले की एक करधन को छुपा रखा है। यह इतना कष्टदायक है कि एक सोने की करधन सबसे बुजुर्ग उस महिला की जान से अधिक हो गई है। इस कहानी में जो कथावाचक लड़का है उसके माध्यम से सारी कथाएँ सुनने को मिलता है और हमें ऐसा लगता है कि वो तो अपनी दादी के प्रति दया भाव प्रकट करती है लेकिन कुछ नहीं कर पाता। कहानी की पंक्तियाँ ध्यान देने योग्य है – “दादी किसी बूढ़े गिद्ध की तरह दिखाई देतीजिसके सिर और गर्दन के सारे रोएँ झड़ जाते हैं और एक पतली, बीमार, झुर्रियों भरी गर्दन और नंगी खोपड़ वहाँ बचती है। इस खोपड़ी के भीतर का दिमाग अपने अंतिम की सीरी आवाजों को धीरे-धीरे सुनता रहता है। मुझे दादी पर दया भी आती लेकिन वे हमारी शत्रु थीं, क्योंकि उनके पास एक छप्पन तोले का सोने काकरधन था, जिसे उन्होंने घर में कहीं फर्श में, दीवार में या पिछवाड़े के कुँए के पास या फिर आस-पास के किसी पेड़ के नीचे गाड़ कर छुपा दिया था।9 स्पष्ट है कि कथावाचक लड़के को भी परिवार के सभी लोगों ने अपनी दादी के खिलाफ भर का दिया है। उदय प्रकाश इन परिवारिक द्वेषभाव से बहुत नफरत करते हैं इसीलिए उन्होंने छप्पन तोले काकरधन कहानी लिख कर लोभ और लालच का क्या परिणाम हो सकता है, ये सब दिखाया है।

उदय प्रकाश छोटी-छोटी घटनाओं के माध्यम से हर बार पारिवारिक संबंधों की महत्ता तथा उस में निहित अनेक बातों को उजागर करते रहते हैं। अपराध उदय प्रकाश की ऐसी कहानी है जिसमें भाइयों के बीच प्रेम को भली प्रकार से दर्शाया गया है और यह बाल मन को व्यक्त करने वाली सफल कहानी है। कहानी की पंक्ति याँ इस प्रकार है – “मैंने भाई का चेहरा देखा। वे मेरी ओर देख रहे थे। उनकी आँखें लाल थीं और उन में करूणा और कातरता थी, जैसे वे मुझ से याचना कर रहे हो कि मैं सच बोल दूँ। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। उन्हें सजा मिल चुकी थी। फिर इतनी जल्द बात को बिल्कुल बदलना मुझे संभव नहीं लग रहा था। क्या पता, पिताजी फिर मुझे ही मारने लगते! मैं डर रहा था।10 यहाँ पर कथा वाचक का भाई बिना कुछ किए दोषी ठहर जाता है, गलतफहमी के कारण। इस बात को कथा वाचक बालक बदल तो नहीं सकता है मगर दिल ही दिल में हमेशा दुख होता रहता है। और वह सोचता है कि उसी के कारण अपने भाई को सजा मिली थी इसीलिए सिर्फ उसका भाई ही उसे माफ कर सकता है। लेकिन उस घटना को भाई भूल जाते हैं। यहाँ पर एक भाई का अपने छोटे भाई के प्रति प्यार और स्नेह साफ-साफ दिखाई देते हैं। अक्सर बड़े भाई अपने छोटे भाइयों-बहनों को माफ कर देते हैं और उनके गुनाहों को ऐसा ही भूल जाता है। भाइयों के बीच की प्रेमधारा को उद्घाटित करने में अपराध कहानी अपनी सफलता को प्राप्त करती है। अपराध कहानी को लेकर प्रेमचंद गाँधी का कथन उल्लेखनीय है  “हम संबंधों में भी निस्थापित होते हैं क्योंकि बहुत से कारणों से हमें नए संबंध बनाने होते हैं और समय के साथ पुराने संबंध बदलते जाते हैं। लेकिन पारिवारिक संबंध हमें अंतिम समय तक याद रहते हैं और उनका विस्थापन हमें लागातार कचोटता रहता है। इसीलिए अपराध कहानी की अंतिम पंक्ति ही हमे बताती है कि संबंधों में मुक्ति असंभव हो चुकी है।11

उदय प्रकाश की कहानियों में संबंधों की समग्रता दिखाई देती है। वे माता, पिता, भाई, बहन, दादी जैसे अनेक पारिवारिक सदस्यों को अपनी कहानियों का केंद्र बना चुके हैं। उनका इस तरह से संबंधों के ऊपर कहानी लिखने के पीछे एक मकसद हो सकता है। वे अवश्य कहना चाहते होंगे कि परिवार सब कुछ है, इस से बढ़कर कुछ नहीं होता।भले ही संबंधों में दरार आए उसे निभाना हमारा कर्तव्य है। किसी भी तरह परिवार को टूटने से बचाना चाहिए।आज के भागमभाग से भरे समाज में उदय प्रकाश की परिवार को लेकर लिखी गई कहानियाँ विशेष महत्त्व रखती हैं।

संदर्भ संकेत -

1. एकांतश्रीवास्तव, कुसुमखेमानी (सं.) वागर्थ–201 अप्रैल, 2012 ई. पृष्ठ 66

2. उदयप्रकाश, दरियाईघोड़ा, वाणीप्रकाशन, नईदिल्ली, संस्करण 2010ई. पृष्ठ 10

3. उदयप्रकाश, तिरिछ, वाणीप्रकाशन, नईदिल्ली, संस्करण 2010ई. पृष्ठ 13

4. उदयप्रकाश, दरियाईघोड़ा, वाणीप्रकाशन, नईदिल्ली, संस्करण 2010 ई. पृष्ठ 20

5. वही, पृष्ठ 38

6. विश्वनाथत्रिपाठी, कहानीकेसाथ-साथ, वाणीप्रकाशन, नईदिल्ली, प्रथमसंस्करण 2016 ई. पृष्ठ 18 (भूमिकासे)

7. उदयप्रकाश, तिरिछ,वाणीप्रकाशन, नईदिल्ली, संस्करण 2010 ई.पृष्ठ 24

8. सत्यप्रकाश मिश्र, आलोचक और समीक्षाएँ, विभा प्रकाशन, इलाहाबाद, संस्करण 1993 ई. पृष्ठ 153-154

9. उदयप्रकाश, तिरिछ,वाणीप्रकाशन, नईदिल्ली, संस्तरण 2010 ई.पृष्ठ 53

10. वही, पृष्ठ 21-22

11.डॉ.वीरेंद्रआज़म (सं.) शीतल वाणी विशेषांक (उदयप्रकाश:साठपरपुनर्पाठ) वर्ष-32, अंक-1, अगस्त-अक्टूबर, 2012ई.पृष्ठ  62


पीडीएफ संस्करण डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

कोई टिप्पणी नहीं