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याओशङ- सुन्दरी : खुमुकचम सुंदरी चनू

मणिपुर में याओशङ का त्योहार फाल्गुन माह के पूर्णिमा अर्थात मणिपुरी वर्ष के अंतिम महिने लमता के पहले दिन से शुरू होता है। इसे पांच दिनों तक मनाया जाता है| यह मणिपुर के प्रमुख त्योहारों में से एक है| याओशङ अर्थात होली मणिपुरी  वैष्णव धर्मावलंबियों (मणिपुरी हिन्दू) का  महत्वपूर्ण त्योहार है | मणिपुर  के मैदानी भागों में प्रमुखतः मीतै जाति निवास करती है| यह पर्व भी प्रमुखतः मैदानी इलाकों में ही मनाया जाता है। 

मणिपुर में  याओशङ का संबंध श्री कृष्ण और  श्री चैतन्य महाप्रभु से जुड़ा हुआ है। 

याओशङ के आयोजन के लिए प्रथम दिन प्रत्येक मोहल्ले  के उपयुक्त स्थान पर बाँस और भूसे की एक छोटी सी झोपड़ी का निर्माण किया जाता है | शाम के समय इस झोपड़ी में स्थानीय ब्राम्हण श्री चैत्यना  महाप्रभु  की मूर्ति को स्थापित  करते हैं। मोहल्ले भर के लोग फल-फूल, मिठाइयाँ आदि धूप-बत्ती के साथ भगवान को चढ़ाते है और ब्राह्मण द्वारा धार्मिक अनुष्ठान  आरती उतारा जाता है। इसके पश्चात  सभी उपस्थित युवा, बूढ़े और महिलाएँ संकीर्तन करते हैं| कीर्तन ख़त्म होने के बाद सब लोग एक साथ  “हरि बोला” (हरि बोला...हे हरी) का नाद करते हैं | पूजा के बाद उस छोटी सी झोंपड़ी को जला दिया जाता है। संभव है इसके पीछे यह मान्यता हो कि ऐसे पवित्र स्थल जहाँ ईश्वर को स्थापित किया गया था, वहाँ किसी साधारण मनुष्य के पैर न पड़ जाए। झोपड़ी के जल जाने के बाद उसके राख को लोग अपने माथे पर लगते हैं | अधजले बाँस के टुकड़ों को अपने घर पर रखते हैं। इसके पीछे यह मान्यता है कि इन बाँस के टुकड़ों को घर पर रखने से घर पर विपत्ति नहीं आती। पूजा खत्म होते ही बच्चें याओशङ के नए कपड़े पहनकर  घर-घर मेंनाकथेङ” जाते हैं | यह कार्यक्रम केवल होली के समय बच्चों द्वारा किया जाता है | जहाँ वे अपनी अपनी टोली बनाकर घर-घर पैसे माँगते हैं और बदले में लोगों को आशीर्वाद देते है | बच्चों का गुस्सा करना अपशगुन माना जाता है| लोग उन्हें बड़े प्रेम से मिठाई एवं पैसे देकर आशीर्वाद माँगते हैं |

        

रात में  युवा लड़के और लड़कियाँ थाबलचोङबा” का आनंद उठाते हैं | थाबलचोङबा एक विशेष प्रकार का मणिपुरी लोक नृत्य है, जिसमें लड़के और लड़कियाँ पंक्ति में  हाथ पकड़कर नृत्य करते हैं | प्राचीन काल में थाबल  चोङबा नृत्य के साथ लोक गीत  भी गाया जाता था :

             फाईरेन थागी थाजिंदा,             

             कुमाबागी मरानयाईडा,

             मोइराङ लेइमरोल तरेतना,

             इबेमा  अयाङलइमगी,

             चायनबा काबोक पोक्लिङइ ,..........| 

लेकिन अब समय के साथ थाबलचोङबा में बहुत परिवर्तन आ गया है| आज के ज़माने में गाना नहीं गाया जाता । इसकी जगह बैंड पार्टी को बुलाकर तरह-तरह के धुन बजवाए जाते हैं| जहाँ पुराने ज़माने में केवल ढोलक, झाँझ और कभी-कभी बाँसुरी ही प्रयुक्त की जाती थी, अब इलेक्ट्रिक गिटार, ड्रम, कीबोर्ड जैसे अति आधुनिक यंत्र का प्रयोग होने लगा है | यही नहीं नृत्य के तरीके जहाँ पहले ज़माने में पारंपरिक विशेष भंगिमा के साथ नृत्य किया जाता था, आजकल उसमें भी परिवर्तन आ गया है | 

         

पांच दिवसीय इस त्योहार के दूसरे दिन  को मणिपुर में “ पिचकारीनाम से जाना जाता है| ह बहुत ही रोचक और  मनमोहक होता है क्योंकि यह श्रीश्री  गोविंदजी के मंदिर के प्रांगम में मनाया जाता हैं । पुरुष तथा स्त्रियाँ  दोनों अपनी-अपनी चोली बनाते हैं जिसेहोली पाला “ कहा जाता है। होली पाला बारी-बारी से राधा-कृष्ण से संबंधी संकीर्तन करते हैं | श्री गोविंदजी के दर्शन करने के बाद “होली पला” घर घर जाकर भी संकीर्तन करते हैं और गुलाल खेलते हैं| याओशङ में होली पला द्वारा गाए जाने वाले संकीर्तन का एक उदाहरण निम्न है : –  

    शानारि श्री गौरंगा ,

    सक -इ  सोली भक्त सिंगना ,

    शानारिना श्री गौरंगा ,-२ 

    सनाखिबा सखीबासोइरोई  येंगु मनाई  माँगा ,

    शरिना श्री गौरंगा -२ .............

    ..........|

इस तरह घर के बुजुर्ग स्त्री-पुरुष गीत का आनंद लेते हैं | दूसरे दिन  लोग रंग लेकर  अपने  नाते -रिश्तेदारों व मित्रों के घर  जाते  हैं और  उनके साथ जमकर होली खेलते हैं | बच्चों के लिए तो यह त्योहार  विशेष  महत्व  रखता है, वे पहले  से  ही बाज़ार से अपने  लिए  तरह -तरह की पिचकारियो व गुब्बारे खरीदवाते  हैं| बच्चें गुब्बारों  व पिचकारी से अपने मित्रों के साथ याओशङ का आनंद उठाते हैं|

 

मणिपुर में  याओसांग की एक विशेषता यह है कि इस पर्व के पाँचों  दिन प्रत्येक मोहल्ले में याओशङ स्पोर्ट मीट  के नाम से खेलों का भी आयोजन होता है। इसमें बच्चे-बूढ़े, युवा सब के अनुकूल खेलों का आयोजन किया जाता है| बच्चों द्वरा सड़क पर पैसे  मांगने  के लिए घूमने की बजाय खेलों में ध्यान आकर्षित किया जाता है|  याओशङ स्पोर्ट मीट में  तरह- तरह की  खेलों की प्रतियोगिताएँ होती हैं |  इंडोर और आउटडोर खेलों के कई  कार्यक्रम किए जाते हैं|  इससे हमारे बच्चों, युवाओं  की प्रतिभा देखने को मिलती है|  याओसांग  स्पोर्ट के कार्यक्रमों मे  मणिपुर  के पारंपरिक  खेल  मुकना (पारंपरिक कुश्ती) की प्रतयोगिता  भी होती है| इनमें  सारे  युवा और  पुरुष भी भाग लेते हैं | छोटे  बच्चों के लिए दौर, म्यूजिकल  चेयर जैसे खेल होते हैं | औरतों और स्त्रीयों के लिए ब्लाइंड हिट, रस्साकसी आदि कार्यक्रमों का आयोजन होता है | याओशङ के पांचों दिन अनेक तरह के खेलों की  प्रतियोगिता के बाद  अंतिम दिन इनाम दिया जाता है |

त्योहार के पाँचवे दिन  “हलांकार “ नाम से जाना जाता है। इसका आयोजन ऱम्फाल के सगोलबंद में स्थित विजय गोविंद में होता है। इसमें स्त्रियाँ ब्रजमाई बनती हैं और उसी तरह का लट्ठ मार होता है जैसे ब्रज में होता है। यह रंगों के पर्व याओशङ  का अंतिम आयोजन है इसके बाद इस पर्व का समापन होता है| इस तरह होली अर्थात याओशङ को सभी आयु वर्ग के लोग हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।

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