शिक्षा और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI)
आज का युग विज्ञान और तकनीक का युग है। एक समय था, जब विज्ञान के चमत्कारपूर्ण आविष्कारों से लोग अचंभित हुआ करते थे, लेकिन आज हमारा जीवन विज्ञान द्वारा आविष्कृत साधनों के बिना संभव नहीं लगता। तकनीकी विकास का प्रभाव मानव पर इतना गहरा पड़ चुका है कि वैज्ञानिक संसाधन जीवन का पर्याय बन गए हैं। देखा जाए तो मानव की जिज्ञासा का परिणाम है विज्ञान और विज्ञान के अमूल्य योगदान ने मानव के विकास की दशा और दिशा दोनों को प्रभावित किया है।
प्राचीन
काल से ही मनुष्य प्रकृति से संघर्ष करते हुए उसे समझने का प्रयास करता आया है और
लगातार अपने जीवन को सरल, सुरक्षित और बेहतर
बनाने के प्रयास में लगा रहा है। इस प्रक्रिया में मानव के सामने अनेक
सवाल आते रहे, अनेक चुनौतियाँ आती रहीं। इसी प्रश्नाकूलता और चुनौतियों से प्रेरित
होकर मानव उत्तर की खोज करता रहा, इसी प्रयास के परिणामस्वरूप विज्ञान का जन्म
हुआ। अग्नि तथा कालांतर में पहिए की क्रांतिकारी खोज से लेकर आज के कृत्रिम
बुद्धिमत्ता या कृत्रिम
मेधा
(AI) और अंतरिक्ष यानों तक
का सफर, विज्ञान की ही देन
है। चिकित्सा, संचार, परिवहन, कृषि, शिक्षा अब ऐसा कोई क्षेत्र नहीं बचा जिसमें विज्ञान ने
क्रांति न ला दी हो।
मानव
को विज्ञान रूपी जो कुँजी मिली है, उससे दुनिया के सारे रहस्य के ताले धीरे–धीरे खुल रहे हैं।
जिज्ञासा और कर्मठता ने मानव को विज्ञान के
रूप में एक शक्ति दी है, वहीं यह ज़िम्मेदारी भी
दी है कि इस शक्ति का उपयोग विवेक से किया जाए। परमाणु ऊर्जा, जैविक हथियार, पर्यावरणीय असंतुलन आदि ऐसे उदाहरण हैं,
जहाँ विज्ञान के गलत प्रयोग से मानवता को खतरा हुआ है। इसलिए यह आवश्यक है कि
विज्ञान का विकास मानवीय मूल्यों और नैतिकता के साथ जुड़ा रहे। मानव का
सर्वांगीर्ण विकास शिक्षा केन्द्रों में संभव है। शिक्षा के क्षेत्र में विज्ञान के
सही उपयोग से व्यक्ति, समाज और व्यापक रूप में राष्ट्र का विकास होगा।
इतिहास गवाह है, समय-समय पर शिक्षा का स्वरूप बदलता रहा है।गुरुकुल व्यवस्था
से लेकर वर्तमान आधुनिक पद्धति की शिक्षा व्यवस्था तक शिक्षा के स्वरूपों में
लगातार परिवर्तन आया है। एक समय था, जब शिक्षा
पुस्तकों और कक्षाओं तक सीमित थी, पर अब तकनीकी विकास ने इसे एक नई दिशा दी है। इंटरनेट की सुविधा ने पूरे विश्व को समेटकर रख दिया है, जिससे जीवन का हर पक्ष प्रभावित है। परंपरागत शिक्षा-व्यवस्था के
साथ-साथ वर्चुअल कक्षाएँ आज की अनिवार्यता हो गई है। इस परिवर्तन में कृत्रिम
बुद्धिमत्ता एक क्रांतिकारी
भूमिका निभा रहा है। आज की शिक्षा प्रणाली में कृत्रिम बुद्धिमत्ता न केवल शिक्षण के तरीके बदल रहा है, बल्कि सीखने की
प्रक्रिया को भी अधिक प्रभावशाली, व्यक्तिगत और सुलभ बना रहा है। बुद्धिमत्ता वह तकनीक है जो
मशीनों को मानव-जैसे सोचने, निर्णय लेने और सीखने की क्षमता प्रदान करती है। शिक्षा के
क्षेत्र में कृत्रिम
बुद्धिमत्ता
का उपयोग कई रूपों में हो रहा है, जैसे व्यक्तिगत
अध्ययन को संभव बनाने वाले ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफोर्म्स, विद्यार्थियों की
समस्याओं और शंकाओं को दूर करने वाला चैटबॉट्स,
सटीक और एरर फ्री डेटा आधारित मूल्यांकन व्यवस्था और वर्चुअल क्लासरूम
के माध्यम से दूर बैठे विद्यार्थियों को अध्ययन की सुविधा प्रदान करना। कहना होगा कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने शिक्षा को समय और स्थान की सीमाओं से मुक्त कर दिया है।
अब विद्यार्थी दुनिया के किसी भी कोने से उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्राप्त कर
सकता है।
इसमें कोई दो राय
नहीं है कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता ने शिक्षा की पूरी प्रणाली को प्रभावित किया है, वहीं अनेक चुनौतियाँ भी मुँह बाये खड़ी हो गई हैं। उन समस्याओं को
समझने की जरूरत तो है ही, उसके दुर्गामी परिणामों के प्रति भी सचेत रहने की जरूरत
है। भारतीय शिक्षा पद्धति में गुरु शिष्य की एक अनमोल परंपरा रही है। गुरु अपने
शिष्यों के प्रति पुत्र समान स्नेह रखते हैं और गुरु शिष्य के लिए पिता तुल्य
आदरणीय होता है। मानवीय संबंधों का यह भाव कृत्रिम बुद्धिमत्ता के साथ संभव नहीं है। शिक्षा केवल ज्ञान का आदान-प्रदान नहीं है, बल्कि मूल्यों
और संस्कारों का भी हस्तांतरण है और यह शिक्षक के द्वारा ही संभव है, किसी भी मशीन
द्वारा संभव नहीं है। मानवता और मानवीय संबंध मानव के साथ ही संभव है। यंत्रों की
उपादेयता सृष्टि की श्रेष्ठ रचना मानव के कल्याण में ही निहित है। इसलिए सृष्टि की
रचना में मानव को श्रेष्ठ और सुंदरतम कहा गया है।
यहाँ बरबस ही पंत की कविता ‘मानव’ का स्मरण हो आता
है,-
सुन्दर है विहग, सुन्दर सुमन, मानव तुम
सबसे सुन्दरतम !
विज्ञान
मानव की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है,
लेकिन
इसका सही उपयोग तभी संभव है जब इसे मानवता के भले के लिए प्रयोग किया जाए। विज्ञान
एक साधन है, लक्ष्य नहीं। मानव
अगर इसे विवेक और संवेदनशीलता के साथ अपनाए,
तो
यह मानव जीवन को और अधिक सुखद, सुरक्षित और समृद्ध
बना सकता है।
कृत्रिम
बुद्धिमत्ता और शिक्षा का संबंध आने वाले समय में और भी गहरा होगा, पर
यह शिक्षा के साधन के रूप में ही स्वीकार्य रहे। अतः हमें यह सुनिश्चित करना होगा
कि तकनीक मानवीय संवेदनशीलता को, मूल्यों को और शिक्षक-छात्र संबंधों को कमजोर न करे। यदि संतुलित दृष्टिकोण अपनाया जाए तो
कृत्रिम बुद्धिमत्ता शिक्षा को अधिक समावेशी, प्रभावी और आधुनिक बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित
हो सकता है।


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