पिकनिक : लमाबम बिरमणि
ब्लडी ऑल्ड मैन ! अभी तक नहीं बना।
मन हुआ, कर्कश आवाज में जवाब दे- मैं भी तो आदमी
हूँ। पर बोला नहीं।
वेरी-वेरी सॉरी । हम तो ता-तोम्बा को भूल ही गए।
येस इसे भी खुश करो भाई।
एसिस्टेंट मेनेजर व्हिस्की से लबालब भरा गिलास हाथ में थामे झूमते हुए
उसके निकट आया। पाँव सीधे नहीं पड़ रहे थे, इरोम्बा1
के बर्तन पर गिरने को हुआ। थोड़ा गिर भी गया।
कौन फूहड़ रास्ते में पड़ गया।
सबका ठहाका गूँजा।
वह भी नाराज नहीं हुआ, विकृत चेहरा लिए हँसता हुआ उठ गया।
मैं नहीं पियूँगा बाबू। मैं
नहीं पियूँगा।
नो-नो, नौकर को मालिक का हुकुम मानना ही
पड़ेगा।
ऑर्डर इज़ ऑर्डर ।
गुस्से को होंठ चबाते हुए सहता रहा। उल्लंघन न कर
सका। मालिक की आज्ञा थी।
नौकर होने के नाते मालिक की मर्जी के अनुसार चलना ही
था। आज स्त्रियाँ अपने पतियों को छोड़ पर-पुरुषों के संग इस निर्जन में उनकी
दया-दृष्टि और प्यार की चाहत के कारण ही तो है। तादा भी इसमें नहीं है क्या ? लेकिन अच्छा लगे या नहीं, अगर कोई आया है, तो उसे शामिल होना ही हुआ।
थोड़ी देर पहले इबेमहल की कही बात याद आ गई। तोम्बा
को देखते हुए लड़खडाती आवाज में फिर बोल पड़ा-
ले लो तोम्बा। आज तो खुशी का दिन
है। गुआहाटी से जेनेरेल मेनैजर हमारे यहाँ पधारे हुए हैं। वह खुशी-खुशी रवाना हो
जाएँ, तो हमारा सौभाग्य होगा।
फिर तो कुछ नहीं सोचा। ग्लास हाथ में पकड़ कर आँखें
कसकर मींचते हुए पी गया। कुछ बोला नहीं।
ये प्रसन्न होकर जाएँ, तो हमारा सौभाग्य होगा। याद करते हुए मन ही
मन हँसा। तेज आवाज में हँसते हुए चिल्ला पड़ा
-खुशी की बात है।
फिर जोर से गला साफ किया और पिच्च से थूक दिया। पत्थर
बन चुकी पहाड़ी उसका थूका हुआ सोख न सकी।
ऑर्डर इज़ ऑर्डर। ऑर्डर इज़
ऑर्डर।
उसके कानों में गूँजता ही रहा। उसके हाथ लगातार चल
रहे थे। खाना परोसने की तैयारी हो रही थी। केले के पत्ते लगाए ही थे कि लड़खड़ाते
कदमों से सब के सब धमक पड़े। अपने खास व्यक्ति के लिए कल्याणी ने तैयारी कर ली। तोम्बा
ने चावल परोसा, लेकिन सब्जी परोसने का इंतजार वे न कर सके। खाने
बैठ गए। अपने को अत्यधिक शिष्ट और अति सभ्य दिखाते हुए बोली- इधर-इधर, धीरे-धीरे। सब्जी परोसे जाने का ताव उनमें नहीं था, अपने
आप ही कलछी भर भर कर थाली पर डालने लगे, कुछ तो बर्तन ही
उठाकर उडेलने लगे। खाने को हुए तो शोर गूँजने उठा। जब खाने लगे तब शांति छा गई।
पेट में कुछ गया नहीं कि फिर शोर गूँज उठा। कल्याणी लड़खड़ाते कदमों से निकल गई और
जोर से रिकार्ड बजाने लगी। नशे के कारण अपने को न संभाल पाने वाला मेनैजर नाचने के
लिए जैसे ही उठा, अपने पास बैठी निवाला मुँह में ठूँस रही
विमला की थाली पर गिर पड़ा। सारा शरीर सन गया। विमला
ने भी उठने की कोशिश की, पर नशे के कारण उठ न सकी। वह मेनैजर
पर गिर पड़ी। तमाशा बन गया था। सबका ठहाका गूँज उठा, एक-एक
कर उठ गए और नाचने लगे। इबेतोन सबका साथ देने के लिए उठी, पर
लापरवाही से बंधा उसका फनेक गिर पड़ा। तमाशा है तमाशा, सब
तमाशा। कालाचाँद फनेक झपटकर भाग खड़ा हुआ। ओढ़नी पेटिकोट पर लपेट कर इबेतोन भी
उसके पीछे दौड़ पड़ी। इधर-उधर एक-दूसरे पर लपकते हुए दौड़ने लगे और गिर पड़े। फिर
उठ गए, सबने तालियाँ बजाईं, ठहाका
लगाया। जैसे जोड़े बना-बनाकर कुत्ते- बिल्ली उछल-कूद मचा रहे हों या जैसे बच्चे
कइ-येन2 खेल रहे हों, वैसे ही एक-दूसरे पर
लपकते-झपकते खेल रहे हैं।
इस तमाशे में तोम्बा शामिल नहीं है। पी तो उसने भी
अधिक ही ली है। पेट फटने तक खा रहा है। तमाशे की ओर उसका ध्यान ही नहीं है। न ही
देखना चाहता है। उसने अपना मुँह दूसरी ओर घुमाया तो थोड़ी दूरी पर धुंधलके में एक
बड़े से पत्थर की आड़ में दो बच्चे खड़े नज़र आए। लकड़ी खोजते-फिरने और ढोकर लाने
के कष्ट से बचाने वाले दोनों बच्चे अचानक याद आ गए। उसने कहा था,थोड़ी देर बाद आना, मुर्गी खिलाऊँगा।
बहुत देर से दोनों बच्चे तमाशा देख रहे थे। दोनों
भाई-भाई हैं। कल से इन्हें खाना नहीं मिला। बाकी दिनों में एक जून भर पेट खाने को
न भी मिले, पर सर्दी के
मौसम में हर रविवार को एक जून खाना तो पर्याप्त रूप से मिल ही जाता है। क्योंकि इस
मौसम में काङचुप पहाड़ी पर कोई न कोई पिकनिक के लिए आ ही जाता है। दोनों भाई ईंधन
के लिए लकड़ियों के गट्ठर सिर पर लादे उनका इंतजार करते रहते हैं। पैसा देने पर
ठिकाने तक भी पहुँचा देते हैं । कह देने पर काम भी कर देते हैं, पर उसके बदले पैसा लेते हैं । एक जून का खाना भी भरपेट खाने को मिल जाता।
उन्हें देखते ही तोम्बा ने बुला
लिया। स्थिति भाँप कर वे तुरन्त नहीं आ पाए। डरते-डरते धीरे-धीरे आगे आए तो उन्हें
देखते ही कालाचाँद चिल्ला उठा-
कौन है?
मैंने बुलाया है बाबू, अगर ये दोनों लकड़ी नहीं देते तो आज
खाना मिलने की संभावना नहीं थी। तोम्बा ने जवाब दिया।
गुड बॉय, सारी मुर्गी इन्हें खिला दो।
तोम्बा ने केले के एक पत्ते पर चावल और सब्जी डाली।
दोनों बच्चे टकटकी बाँधकर देखते रहे। फिर बैठ गए। जैसे ही निवाला मुँह में रखने को
हुए, कोई चिल्लाया-
आइडिया ! आइडिया !
एसिस्टेंट मेनैजर था। लड़खड़ाता हुआ नजदीक आ गया।
आवाज तेज होने के कारण दोनों बच्चे डर गए थे। निवाला नीचे रख दिया। डर कर उठने को
हुए। उठ ही गए।
नो.. कुछ नहीं करेंगे। तुम दोनों
भूखे हो, है न ! बोलो है न !
एसिस्टेंट मेनैजर ने पूछा। दोनो के मुँह से बोल नहीं
फूटा। बस, टकटकी बाँधे
देखते रहे।
मुँह
में जबान नहीं है क्या ?
डरते-डरते बड़े भाई ने सिर हिलाया।
श्योर श्योर, सब तुम दोनों के लिए है। तो फिर उतारो
कपड़े , नाचो।
यह क्या बाबू ! बच्चे हैं, यह
ठीक नहीं।
ईडियट, मेरे काम में टाँग अड़ाता है। दिखता नहीं, मैं कौन हूँ ! यू फूल, तुम
कुछ नहीं जानते।
कुछ नहीं कर सका। सोचने लगा बेकार ही बुला लिया।
दोनों बच्चे डर के मारे काँपने लगे। एसिस्टेंट मैनेजर ने कुछ नए नोट जेब से
निकालकर पूछा-
ये क्या है ?
पैसा ।
चाहिए ?
कोई जवाब नहीं।
चाहिए न, दूँगा। खाना भी खिलाएँगे। कपड़े उतारो,
नाचो।
अपनी निरीहता बिखेरती आँखों से उन्होंने तोम्बा से
शरण माँगी। देखा, पर क्या करता
तोम्बा, कुछ नहीं कर सकता था। आँख मूंदकर बरदाश्त करता रहा।
यू ब्लडी ! खोल।
सारी स्त्रियाँ लुँज-पुँज सी पड़ी हुईं थीं। पुरुष
लोग उठ खड़े
हुए। कालाचाँद भी उठकर एसिस्टेंट मेनैजर की मदद करने लगा।
फर्स्ट आइटम, केबरे डाँस , वन-टू-थ्रि।
सब ताली बजाने लगे। दोनों बच्चे एक-दूसरे को
टुकुर-टुकुर देखते हुए कपड़े उतारने लगे।
पतलून भी।
कुछ रुपए उन पर फेंके ।
यssस, कम ऑन।
पतलून भी धीरे-धीरे उतारने लगे। कालाचाँद ग्लास में
थोडी व्हिस्की भर कर ले आया। रोकने वाला कोई नहीं था। दोनों बच्चों को जबरदस्ती
पिला दी। फिर तो....
नाचो ।
नाचने लगते
उछलो ।
उछलने लगते
भागो ।
भागने लगते
एक ने रेकॉर्ड चला दिया। लुँज-पुँज पड़ी स्त्रियों को
उठा कर जोड़ा बनाकर नाचने लगे।
सेकैण्ड आइटम, कल्चरल गेम मुकना। माननीय पेरडाइज़
सेविंग बैंक के जेनरल मेनैजर के समक्ष प्रस्तुत है।
सबने ताली बजाई। हर्षनाद हुआ।
गुड आइडिया । गुड
आइडिया ।
दोनों भाई हक्के-बक्के थे।
मुकना जीतने वाले को हमारे जेनरेल मैनेजर बीस रुपए
देंगे।
दस रुपए मेरी ओर से।
मैनेजर चिल्लाया।
पैसे दोनों भाईयों की ओर फेंक दिए। दोनों ने एक-दूसरे को कनखियों से
देखा। फिर बिना कुछ कहे दोनों भाई नंगे बदन एक-दूसरे से भिड़ गए। एक ने रेकार्ड
चला दिया। शोर होने लगा। तालियाँ बजने लगीं। शायद इनके देवता प्रसन्न हो गए,
उछल-कूद करते हुए ताली बजाने लगा। अपने देवता को प्रसन्न होते देख
तोम्बा और इबेमहल भी उछलने लगे, शोर करने लगे
-काला जीतेगा।
-गोरा जीतेगा।
-काले पर दस रुपए।
-गोरे के जीतने पर दस रुपए।
-काले पर तीस रुपए।
हो क्या रहा है, इसका होश नहीं है इबेमहल को। सब हँसते तो
वह भी हँस देती। ताली बजाते तो वह भी बजाती। चिल्ला पड़ते तो वह भी चिल्लाती।
संभल न पाने से बड़े का पाँव उखड़ गया। छोटा जीत गया। सबने ताली बजाई।
शोर होने लगा-
गोरा जीत गया।
गोरा जीत गया।
कुछ लोगों ने आगे बढ़ कर छोटे भाई को उठाया और चूम
लिया।
-ब्रेव बॉय, ब्रेव बॉय।
एक ने मुर्गी का एक बड़ा टुकड़ा उसके मुँह में ठूँस
दिया।
-डॉन्ट माइन्ड, ट्राय इस बार तुम जरूर जीतोगे।
-इस बार नम्बर लिख देते हैं।
-गुड आइडिया
अपना जूठा हाथ दाल में डुबो कर पेट,पीठ और गालों को पोतते हुए-
-वन-टू-थ्रि..
सीटी बजाकर एसिस्टेंट मेनैजर ने मुकना की शुरुआत कर
दी।
-इस बार काले की जीत पर चालीस रुपए।
-गोरे पर पचास।
-काले पर साठ
-गोरे पर सत्तर
रुपयों का बण्डल बरसा दिया।
दोनों भाइयों पर भी जैसे नशा छाने लगा। भूल गए कि
दोनों भाई-भाई हैं। अपनी पूरी ताकत लगाकर द्वन्द्व करने लगे।
-आवर कल्चरल गेम सर।
परिचय दिया अपने मालिक को। मालिक प्रसन्न हो ठहाका
लगाकर हँसने लगा-
-वण्डरफुल- वण्डरफुल !
इस बार बड़ा जीत गया। द्वन्द्व चलता रहा। छोटा भी
पीछे नहीं हटा। कभी छोटा ऊपर होता,तो कभी बड़ा। पहाड़ की कठोर जमीन पर रगड़
खाने से शरीर पर खरोंचे ही खरोंचे पड़ गई
-काला चुई।
-गोरा चुई।
-चुई चुई चुई चुई।
शोर-गुल से पहाड़ी गूँज उठी ।
उकसा-उकसा कर खेल को बढावा दिया जा रहा है। दोनों
पहाड़ की कठोर जमीन पर लुढ़क रहे हैं। पहाड़ ज्यों का त्यों खड़ा है। मंद बयार बह
रही है। पेड़ों की डालें भी हिल रही हैं। नीचे अंधेरी-घनी खाई दिखाई दे रही है। धान
कट जाने के बाद ठूँठ से भरा खेत दूर तक पसरा पड़ा है।
वे शोर मचाते, प्रसन्न होते चिल्ला रहे हैं-
वण्डरफुल गेम !- वण्डरफुल गेम !
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1. सब्जियों को
उबालकर फिर मसलकर तैयार किया जाने वाला एक व्यंजन।
2. एक तरह का बच्चों
का खेल, जिसमें कई (बाघ) येन (मुर्गी) को पकड़ता है।
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