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हिंदी कहानी के प्रमुख आलोचक : नामवर सिंह डॉ. लोङ्जम रोमी देवी

 स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कहानी आलोचना को व्यवस्थित और सुसंगत स्वरूप प्रदान करने वाले आलोचकों में डॉ.नामवर सिंह अग्रगण्य है| ‘कहानी नई कहानी’ पुस्तक हिंदी कहानी आलोचना में मील का पत्थर मानी जाती है| डॉ.नामवर सिंह ने हिंदी की नई कहने को स्पष्ट करने के लिए इलाहाबाद से प्रकाशित ‘कहानी’ और ‘नई कहानियां’ पत्रिका में जो आलेख लिखे, उन्हीं आलेखों को संकलित रूप प्रदान कर सन् 1966 में ‘कहानी नई कहानी’ शीर्षक से पुस्तक प्रकाशित हुई। डॉ.नामवर सिंह की इस कहानी आलोचना का ऐतिहासिक महत्व इस दृष्टि से है कि उन्होंने कहानी के परंपरागत तत्वों-कथानक, चरित्र-चित्रण, वातावरण, प्रभाव आदि तत्वों को नई कहानी के लिए नितांत अनुपयोगी माना | डॉ.नामवर सिंह निर्भीक स्वरों में लिखतेहैं – ‘‘ कहानी शिल्प संबंधी आलोचनाओं ने कहानी की जीवनी शक्ति का अपहरण कर उसे निर्जीव‘शिल्प’ ही नहीं बनाया है बल्कि उस शिल्प को विभिन्न अवयवों में काटकर बाँट दिया है, लिहाजा, हम कहानी को ‘कथानक’, ‘चरित्र’, ‘वातावरण’, ‘भावनात्मक प्रभाव’, ‘विषयवस्तु’ आदि अलग-अलग अवयवों के रूपमें देखने के अभ्यस्त हो गए हैं |’’1 डॉ.नामवर सिंह के उपर्युक्त कथन से पूर्ण सहमतीव्यक्त करते हुए कहा जा सकता है कि स्वतंत्रता के पूर्व की कहानी के विवेचन-विश्लेषण में जिन स्थूल तत्वों का सहारा लिया जाता था, नई कहने के मूल्यांकन के लिए वे सभी प्रतिमान अपनी अर्थवत्ता खो चुके है |

‘नई कहानी’ की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि वह हमारे जीवन के किसी छोटे से प्रसंग, किसी छोटी सी घटना और जीवन के किसी क्षण विशेष को लेकर लिखी जा सकती है | कहने का आशय यह कि नई कहानी के लिए किसी विराट फलक अथवा बड़े कथानक की जरुरत नहीं है।  डॉ.नामवर सिंह की पंक्तियाँ द्रष्टव्य है – ‘‘ लोगों की यह धारणा गलत है कि कहानी जीवन के एक टुकड़े को लेकर चलती है, इसलिए उसमें कोई बड़ी बात कही ही नहीं जा सकती| कहानी जीवन के टुकड़े में निहित ‘अंतर्विरोध’, ‘द्वंद्व’, ‘संक्रांति’ अथवा ‘क्राइसिस’ को पकड़ने की कोशिश करती है और ठीक ढंग से पकड़ में आ जाने पर यह खंडगत अंतर्विरोध की वृहद अंतर्विरोध के किसी न किसी पहलू का आभास दे जाता है |’’ 2 स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कहानी आलोचना के परिदृश्य को व्यापक स्वरूप प्रदान करते हुए डॉ.नामवर सिंह नई कहानी की पहली कहानी के रूप में निर्मल वर्मा की ‘परिंदे’ कहानी को चिन्हित करते हैं | यहाँ यह ध्यातव्य है कि नई कहानी की प्रसिद्ध त्रयी–मोहन राकेश, राजेंद्र यादव और कमलेश्वर की हिंदी कहानी के क्षेत्र में इतनी धूम थी, उनकी कहानियों का इतना शोर था कि उनके बीच निर्मल वर्मा की कहानियों के वैशिष्ट्य को नामवर सिंह सदृश आलोचक ही पहचान सकते थे | निर्मल वर्मा की कहानियों के महत्व को उजागर करते हुए डॉ.नामवर सिंह लिखते हैं – ‘‘ निर्मल की कहानियों में प्रभाव की गहराई इसीलिए है कि उनके यहाँ चरित्र, वातावरण, कथानक आदि का कलात्मक रचाव है | कलात्मक रचाव स्वयं रूप के विविध तत्वों के अंतर्गत फिर वस्तु और बांच तथा स्वयं वस्तु के अंतर्गत | पात्र अलग इसलिए याद नहीं आते कि वे परिस्थितियों के अंग हैं | निर्मल के मानव –चरित्र प्राकृतिक वातावरण में किसी पौधे, फूल या बादल की तरह अंकित होते हैं गोया वे प्रकृति के ही अंग हैं|’’3 वस्तुतः निर्मल वर्मा नई कहानी के विरल और अनूठे कथाकार इसीलिए हैं क्योंकि उनकी कहानियां जहाँ एक तरफ शिल्प की दृष्टि से सर्वथा अलग हैं वही दूसरी ओर उन्होंने हिंदी जगत के साक्षात्कार एक नई दुनिया से कराया है |

डॉ.नामवर सिंह अपनी कृति ‘कहानी:नई कहानी’ में अनेक स्थलों पर पारंपरिक और ‘आज की कहानी’ या ‘नई कहानी’ के भेद को स्पष्ट करते हैं| यह सर्वविदित है कि पहले की कहानियों का अंत जरूर किसी न किसी उपदेश या संदेश से होता था | उदाहरण के लिए प्रेमचंद का उल्लेख किया जा सकता है | प्रेमचंद की कहानियां अवश्य कोई न कोई संदेश अपने में अनुस्यूत किए रहती थीं | किन्तु आज की कहानी या नई कहानी अंत में किसी विचार को प्रस्तुत नहीं करती वरन् डॉ.नामवर सिंह के शब्दों में – ‘‘पहले की तरह आज की कहानीआधारभूत विचार’ का केवल अंत में संकेत नहीं करती; बल्कि नयी कहानी का समूचा रूप–गठन (स्ट्रक्चर) और शब्द–गठन(टेक्सचर) ही संकेतित है|’’4 अतः कहना होगा कि पूर्व परंपरा से भिन्न रूप में ‘‘प्रभाव की सम्पूर्ण अन्विति को सांकेतिक बनाने का श्रेय एकदम नई कहानी को है | नई कहानी संकेत करती नहीं, बल्कि स्वयं संकेत है |’’5

नईकहानी के वैशिष्ट्य पर बात करते हुए प्रायः यह कहा जाता है कि नई कहानी निम्न मध्यवर्गीय जीवन, दाम्पत्य जीवन के टकराव, संबंधों के क्षरण, और स्वातंत्र्योत्तर मोह भंग को प्रकट करती है | डॉ.नामवर सिंह की कहानी आलोचना इस दृष्टि से विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि उनके इन सबसे इतर नई कहानी के उस सूक्ष्म और प्रभावशाली पक्ष को लक्षित किया जिसे दूसरे आलोचक पकड़ न पाये | उदाहरण के लिए उन्होंने ‘प्रभावान्विति’, संप्रेषनीयता, बिंब, सांकेतिकता और रसबोध, रूप गठन (स्ट्रक्चर) और शब्द गठन( टेक्सचर) की चर्चा करते हुए वे लिखते हैं – ‘‘ नये बिंब वस्तुतः नये कहानीकारों के विकसित एन्द्रियबोध के सूचक है और जो कहानीकार जितना ही संवेदनशील है, उसकी कहानी का वातावरण उतना ही मार्मिक और सजीव हुआ है| इस दृष्टि से निर्मल वर्मा की कहानियाँ सबसे अधिक प्रभावशाली हैं| संगीत की जैसी सूक्ष्म संवेदना निर्मल ने व्यंजित की है, वह नयी कहानी की बहुत बड़ी उपलब्धि है | ‘परिंदे’ कहानी में ‘पियानो के संगीत के सुर रुई के छुई-मुई रेशों से अब तक मस्तिष्क की थकी-मांदी नसों पर फड़फड़ा रहे हैं |’’6

स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कहानी आलोचना में डॉ.नामवर सिंह की आलोचना दृष्टि इन अर्थों में विशेष महत्व रखती है कि उन्होंने नई कहानी के भाषिक वैभव को भी उजागर किया है | नये कहानीकारों को सचेत करते हुए डॉ.नामवर सिंह लिखते हैं – ‘‘प्रतीक-संकेत की पद्धति से भाषा में जहाँ एक ओर सूक्ष्म अर्थवत्ता आई है वहां दूसरी ओर उस पर अनावश्यक काव्यात्मकता का लदाव भी हुआ है |कथा साहित्य ने भाषा की एक परंपरा कायम की है....दरअसल भाषा का सवाल केवल कुछ शब्दों के छोड़ने और लेने तक ही सीमित नहीं है सवाल नई वास्तविकता के अनुरूप उतनी ही यथातथ्य, कठोर, चुस्त,संवेदनशील, सजीव भाषा के निर्माण का है | और इस कार्य में नई कहानी को अपनी भाषा की परंपरा से  अनुशाषित होना पड़ेगा...नए कहानीकारों ने शिल्प की साधना में अनेक नई पुरानी विधियों को कूट-पीसकर एक मिली जुली शैली का निर्माण किया है |’’7 नई कहानी की भाषिक क्षमता और सीमा की ओर संकेत करते हुए भी डॉ.नामवर सिंह इस तथ्य को स्वीकारते है कि नई कहानी के अमरकांत सदृश कहानीकारों ने अपनी सहज सरल भाषा और शिल्प की सादगी के कारण प्रेमचंद की परंपरा का विकास किया है | यहाँ यह भी उल्लेख करना अप्रासंगिक न होगा कि प्रेमचंद की कहानियां जहाँ समाज का चित्र उपस्थित करती थी, वहीँ अमरकांत की कहानियां हमारे समक्ष व्यक्ति चित्र उपस्थित करती हैं | इस बात में कोई संदेह नहीं कि स्वातंत्र्योत्तर हिंदी कहानी आलोचना की परंपरा को विकसित, पुष्ट एवं संवर्धित करने में डॉ.नामवर सिंह ने अत्यंत सार्थक और महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाहन किया | नई कहानी की अंतर्वस्तु, शिल्प और संरचना पर उन्होंने विस्तारपूर्वक अपनी कृति‘कहानी नई कहानी’ में चर्चा की | उन्होंने न केवल नई कहानी के विविध पक्षों पर समग्रता में प्रकाश डाला वरन् अनेक कहानीकारों और बहुत सारी कहानियों की भी चर्चा यत्र-तत्र की | फिर भी, ऐसा नहीं है कि उनकी आलोचना में अंतर्विरोध न हो | डॉ.नामवर सिंह के इन्ही अंतर्विरोधों के तरफ संकेत करते हुए प्रतिष्ठित जनवादी कहानीकार और ‘कथन’ पत्रिका के संपादक श्री रमेश उपाध्याय लिखते हैं – ‘‘नई कहानी’ आंदोलन के प्रवक्ता बनकर उन्होंने ‘नई कविता’ की तरह का नयापन कहानी में खोजना शुरू किया | हिंदी कहानी का रूप उस समय सचमुच बदल रहा था, लेकिन उसका यह बदलाव यथार्थवाद के विरुद्ध तो था ही, स्वयं कहानी विधा के भी विरुद्ध था | एक प्रगतिशील कहानी-समीक्षक के रूप में नामवर सिंह को इस बदलाव का विरोध करना चाहिए था, लेकिन उन्होंने इसका समर्थन किया |’’8 नामवर सिंह की कहानी आलोचना का महत्व इस दृष्टि से बढ जाता है कि उन्होंने नई कहानी आंदोलन में सक्रिय उन कहानीकारों को भी चिन्हित किया जिनकी कहानियां निम्न मध्यवर्गीय जीवन के स्थान पर स्वातंत्र्योत्तर भारतीय ग्रामांचल के यथार्थ को उजागर कर रही थी | इन कहानीकारों में रेणु, शिवप्रसाद सिंह, मार्कण्डेय और विद्यासागर नौटियाल का उल्लेख किया जा सकता हैं | नई कहानी की परख और मूल्यांकन के संदर्भ में यह सर्वथा एक नई दृष्टि थी | हिंदी कहानी आलोचना डॉ.नामवर सिंह के प्रदेय स्वीकार करते हुए प्रतिष्ठित कहानी आलोचक प्रो.बलराज पाण्डेय लिखते हैं – ‘‘नामवर सिंह ने भीष्म साहनी, मोहन राकेश, मन्नू भंडारी, कमलेश्वर, राजेंद्र यादव, उषा प्रियंवदा, कृष्णा सोबती,फणीश्वरनाथ रेणु, अमरकांत, मुक्तिबोध, श्रीकांत वर्मा, रघुवीर सहाय, धर्मवीर भारती की मुख्य कहानियों की विस्तृत आलोचना के द्वारा अच्छी और नई कहानी को विशिष्ट पहचान दी | न सिर्फ भावबोध के स्तर पर बल्कि शिल्प की दृष्टि से भी नामवर सिंह ने कहानी में हुए परिवर्तन को रेखांकित किया | आमतौर पर आलोचक भाषा और शिल्प के विवेचन में कम दिलचस्पी लेते हैं, लेकिन नामवर सिंह ने नयी कहानी का शास्त्रीय विवेचन न कर उसमें यथार्थ की प्रमाणिक अनुभूति, प्रभाव और संवेदना की तलाश पर बल दिया |उन्होंने नई कहानीकारों की भाषा की ताजगी, नवीन बिम्बों की सृष्टि, प्रतीकात्मक और सांकेतिक शब्द योजना को लक्ष्य किया |’’9 यह सर्वविदित है कि डॉ.नामवर सिंह हिंदी आलोचना जगत में मार्क्सवादी और मूलतः कविता के आलोचक के रूप में प्रसिद्ध है, तथापि इसमें कोई संदेह नहीं कि हिंदी में कहानी समीक्षा को सुसंगत, व्यवस्थित और व्यावहारिक रूप प्रदान करने में उनकी पुस्तक ‘कहानी नई कहानी’ की ऐतिहासिक भूमिका है |




संदर्भ संकेत

  1. नामवर सिंह, कहानी नई कहानी, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण1994 ई, पृष्ठ 20

  2. नामवर सिंह, कहानी नई कहानी, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण1994 ई, पृष्ठ 25

  3. नामवर सिंह, कहानी नई कहानी, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण1994 ई, पृष्ठ 56

  4. नामवर सिंह, कहानी नई कहानी, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण1994 ई, पृष्ठ 32

  5. नामवर सिंह, कहानी नई कहानी, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण1994 ई, पृष्ठ 33

  6. नामवर सिंह, कहानी नई कहानी, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण1994 ई, पृष्ठ 34

  7. नामवर सिंह, कहानी नई कहानी, राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण1994 ई, पृष्ठ 36

  8. अरविन्द त्रिपाठी(सं.), आलोचना के सौ बरस 1, वर्तमान साहित्य, शताब्दी आलोचना एकाग्र -1,अंक5, मई 2002,गाजियाबाद, पृष्ठ255

  9. अशोक मिश्र (सं.), बहुवचन, हिंदी के नामवर, 50 जुलाई-सितंबर 2016, महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, पृष्ठ 227 

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