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भारतीय ज्ञान परंपरा : हिंदी साहित्य के विशेष संदर्भ में


बीज शब्द
: ज्ञान,दर्शन,धर्म,साहित्य,अभिव्यक्ति,विश्व,परंपरा,मूल्य,भक्ति,संस्कार,शिक्षा.

शोधसार

भारतीय ज्ञान परंपरा एक निर्मल,निश्चल,पवित्र माध्यम है जो हमें भारतीय ज्ञान परंपरा का दर्शन करवाता है  इसमें ऋषिमुनियों की आस्था ,मूल्य, दर्शन, ज्ञान, संस्कृति, सभ्यता, संस्कार, पद्धतियाँ, कर्म, धर्म, भक्ति, चेतन एवं जीवंत  भावनायें समाहित हैं  यह परंपरा एक तत्व से चलने वाली नहीं हैं क्योंकि इसमें एक व्यापक संचेतना संचार करती है  यह विभिन्न ज्ञान की धाराओं को अपने साथ लेकर चलती है  

भारतीय ज्ञान परंपरा है क्या इस जिज्ञासा के मन में उठते ही कल्पना तत्काल वेदों की ओर गमन करती है और वेद भारतीय संस्कृति, ज्ञान और सभ्यता का मूल हैं  उन्हीं से समस्त भाषाओं का ज्ञान का पूर्ण स्वरुप उपस्थित होते हैं I संस्कृत का अंग कहे जाने वाली हिन्दी उसी ज्ञान को विभिन्न  विधाओं के रुप में प्रत्येक जिज्ञासु तक पहुंचाती है I इस ज्ञान परंपरा के तहत ही हिन्दी साहित्य अपने कर्म पथ पर अग्रसर होता है  

हिन्दी साहित्य में समाहित भारतीय ज्ञान परम्पराये सनातन धर्म के विशेष रुप से परिपूर्ण होकर इस विश्व को निरंतर पूर्णता का अभ्यास कराती हुई चलती हैI उसका प्रभाव विश्व को प्रत्येक क्षेत्र में हस्तक्षेप करती हुई नजर आ जाती हैI भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग प्राचीन जीवन मूल्य, पंच महायज्ञ, संस्कार, ऋण, भारतीय युर्वेद शैली,भारतीय शिक्षा पद्धति, वैदिक ज्ञान उपनिषदीय  विधाएं, पुराणों का व्यावहारिक ज्ञान, कौशल की पद्धति,प्रकृति के प्रति भारतीय साहित्य का पोषण, स्वस्थ्य व संरक्षण, संचेतना,दर्शन शास्त्रों की अध्यामिक ऊर्जाएं विभिन्न शक्तियों का रुप धारण कर विश्व भर में भारतीय ज्ञान परम्पराओं की अभिव्यक्ति बनकर  उभरती है I2025 का महाकुम्भ मेला इसका सशक्त रुप है जो विश्व भर से लोगों को अपनी ओरआकर्षित कर रहा हैIभारतीय ज्ञान परंपरा का विश्व में प्रभाव भारत को विश्व गुरु की संज्ञा देता प्रतीत होता है I भारतीय ज्ञान परंपरा में हिन्दी साहित्य वह कोहिनूर का हीरा है जो विश्व के मस्तिष्कको हमेशा प्रकाशित करता रहता है I उसमें भक्ति,ज्ञान, शिक्षा, समाज सुधार से लेकर बाल मनोरंजन और युवाओं को एक ऐसा मार्ग प्रदर्शित करता है जो इस परंपरा का आगे अत्यधिक प्रकाशित करने की क्षमता रखता है कुल मिलाकर हिन्दी साहित्य भारतीय ज्ञान परंपरा का एक मुख्य और अतुलनीय स्त्रोत है 

 भारतीय ज्ञान परंपराअद्धितीय ज्ञान और प्रज्ञा का प्रतीक है, जिसमें ज्ञान,विज्ञान लौकिक और परलौकिक कर्म और धर्म तथा भोग,त्याग का उद्भुत संयोजन है  ऋग्वेद के समय से ही शिक्षा प्रणाली जीवन के नैतिक, भौतिक,आध्यात्मिक और बौद्धिक मूल्यों पर केन्द्रित होकर विनम्रता, सत्यता,अनुशासन, आत्म निर्भरताऔर सभी के लिए सम्मान जैसे मूल्यों पर जोर देती थी  भारतीय ज्ञान परंपरा अतिसमृद्ध है तथा इसका उद्देश्य धर्म,कर्म ,काम,मोक्ष को समाहित करते हुए व्यक्ति संपूर्ण व्यक्तित्व को विकसित करना था I जब सारा विशव अज्ञान रूपी अंधकार में भटकता था, तब संपूर्ण भारत के मनुष्य उच्चतम ज्ञान का प्रसार करके मानव को पशुता से मुक्त कर क्षेत्र संस्कारों से युक्तकर पूर्ण मानव बनाते हैं 

भारतीयज्ञान परंपरा हैं ? इस जिज्ञासा के मन में उठते ही कल्पना तत्काल वेदों की ओर गमन करती है और वेद भारतीय,संस्कृति ज्ञान और सभ्यता का मूल हैं  उन्हीं से समस्त भाषाओं का ज्ञान के समस्त स्वरूपों का जन्महुआ हैI संस्कृत की पुत्रि कहे जाने वाली हिंदी उसी ज्ञान को विभिन्न विधाओं के रूप में प्रत्येक जिज्ञासा तक पहुंचाती हैंIइसी ज्ञान परंपरा का निर्वहन करते हुए हिंदी साहित्य अपने कर्म पथ पर अग्रसर हैं I

भारतीय ज्ञान परंपरा एक अत्यंत विस्तृत और विविधतापूर्ण परंपरा है,जिसमें धार्मिक,दार्शनिक,वैज्ञानिक और साहित्यिक तत्व समाहित है । वेद भारतीय ज्ञान परंपरा के मूल स्त्रोत माने जाते हैं Iऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद,अथर्ववेद के माध्यम से जीवनब्रह्मांड,प्रकृति और देवताओं के रहस्यों को समझाने का प्रयास किया गया है  उपनिषदों में आत्मा,ब्रह्म और मोक्ष के सिद्धातों की गहन व्याख्या की गई है  ये ग्रन्थ आध्यात्मिक ज्ञान का आधार है और हिंदी साहित्य में इनके दर्शन की झलक विभिन्न रूपों में मिलती है  रामायण(वाल्मीकि) और महाभारत (व्यास) भारतीय संस्कृति के दो महान महाकाव्य हैं,जिनका प्रभाव हिंदी साहित्य पर बहुत गहरा  पड़ा । तुलसीदास कृत रामचरितमानस और कई अन्य हिंदी कवियों ने रामायण और महाभारत की कहानियों को अपनी कृतियों के माध्यम से प्रस्तुत किया है 

भारतीय ज्ञान परंपरा के प्रमुख छहदर्शन है,न्याय दर्शन (गौतम),वैशेयिक दर्शन (कणाद),संख्या दर्शन (कपिल),योग दर्शन (पतंजलि),पूर्ण मिमंसा (जैमिनी),वेदान्त दर्शन (बादरायण) हिंदी साहित्य में इन दर्शनों की झलक संत साहित्य,भक्ति काव्य और आधुनिक चिंतनधारा में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है I लोककथाएं और पुराणों में धार्मिक,ऐतिहासिक और सांस्कृतिक कथाएं संगृहीत हैं  ये हिंदी साहित्य में कथा साहित्य,नाटकों और कविताओं में अनेक रूपों में प्रकट होती है 

भारतीय ज्ञान परंपरा केवल धार्मिक और दार्शनिक नहीं है बल्कि इसमें गणित, खगोलशास्त्र ,चिकित्सा और आयुर्वेद का भी महत्वपूर्ण स्थान है Iआर्यभट्ट,भास्कराचार्य,चरक और सुश्रुत जैसे विद्धानों के ज्ञान का प्रभाव हिंदी साहित्य के वैज्ञानिक एवं तार्किक लेखन में देखा जा सकता है अर्थात् जो भी ज्ञान से जुड़ामाध्यम है वह भारतीय ज्ञान परंपरा के अंतर्गत आता है 

हिंदी साहित्य जगत ज्ञान का वह सूर्य है, जो विभिन्न विधा रूपी रश्मियों से चमत्कृत होते हुए संपूर्ण संसार को आलोकित करता है I भारतीय ज्ञान परंपरा को प्रवाहित करने वाले इस साहित्य सूर्य की ओर यदि दृष्टिपात किया जाए तो गद्य,उपन्यास,कहानी,संस्मरण,एकांकी,नाटक,रिपोतार्ज,यात्रा साहित्य आदि रश्मियों के रूप में यह संसार की विभिन्न यथार्थ भावनाओं को समाज के समक्ष प्रकाशित करने में अग्रणी है I यह जनसामान्य को नवीन चेतना,जागरूकता,सजगता की ओर लेकर जाता है Iइस विषय के किसी भी पक्ष पर दृष्टिपात करने से पूर्व ही यदि परंपरा शब्द की व्याख्या की जाये तो परंपरा वह संपत्ति है जो बिना रुके सतत् गति से अपने कर्म पथ पर आगे बढ़तीहै Iयह परंपरा अपने अंदर समेटे हुए ज्ञान को चारों ओर प्रकीर्ण करते हुए चारों ओर व्याप्त दुख,वेदना को अपने अंदर समाहित करते हुए कल्पना और भाव से उसमे ऊर्जा भर उसे जनमानस तक पहुँचाती है I इस प्रकार सुखी मानव के ह्रदय में ऐसी जाग्रति प्रदान करती है जिसमे दूर-दूर तक व्यक्ति एक दुसरे के साथ  जुड़करअपनी भावनाओं और अनुभूति होते हैं I यह परंपरा ज्ञान स्वरुप है,चेतना स्वरुप,संस्कृति स्वरुप है नैतिक गुण सस्वरूप है Iइसलिए यह परंपरा  नित्य नवीन है और नवाचार से युक्त है Iपरम्परा एक मान्यता के रूप में भी संचालित होती चली जाती हैं  जो जीवन को नवीन आलोक देने वाली होती है, नये मूल्यों से जोड़नेवालीहोतीहै,नये ज्ञान का प्रतीक होती है वो मान्यताएँ धीरे-धीरे परम्पराओं की बात करे तो ये भारत की मिट्टीमें बसी हुई हैं जो उसके वैदिक पौराणिक, दार्शनिक,साहित्य ज्ञान के रूप में निरंतर मानव मनीषा का विषय होकर अग्रसारित होती चली जा रही हैं । भारत वर्ष की सबसे सुंदर, सुदृह और शक्तिशाली  परंपरा,साहित्य परंपरा है जो प्राचीन काल से ज्ञान का मूल स्त्रोत रही है  जिसने विभिन्न संस्कृतियों,सभ्यताओं को अपनी वाणी हिंदी के माध्यम से परिष्कृत और परिमार्जित किया है  जन भाषा हिंदी ने अपनी सरलता सरसता,सुगमता तथा सशक्तता से भारतीय ज्ञान परम्पराओं को साहित्यिक धरातल पर व्याप्त कर दिया है 

प्राचीन युग में साहित्य के इतिहास से संबंधित स्वतंत्र ग्रन्थ लिखने की परंपरा भारत में ही नहीं अपितु पश्चिम में भी नहीं मिलती  फिर भी पूर्ववर्ती कवि एवं साहित्यिकारों का नामोल्लेख करने की प्रवृत्ति अनेक भारतीय लेखकों में दिखाई देती है जिससे साहित्य का इतिहास लिखने में सहायता प्राप्त होती है  भरतमुनि ने  अपने नाट्यशास्त्र में अपने से पुर्ववर्ती आचार्यों के नामों का उल्लेख प्राप्त होता है  हिंदी में महाकवि तुलसी ने भी अपने से  पहले राम गुणगान करने वाले कवियों के नामों का उल्लेख किया है  रामचरित्रमानस में वह कहते हैं 

          “वाल्मीकि नारद घर योनी,निज-निज मुखन कही निज होनी”

इस प्रकार तुलसीदास के बाद में भी हिंदी में इस प्रकार के अनेक उदाहरण प्राप्त होते हैं जिन्होंने अपने पूर्ववर्ती कवियों का वर्णन किया है यह परंपरा हिंदी साहित्य में आगे तक चलती है 

भारतीय ज्ञान परम्पराओं में गुरु शिष्य परंपरा का अनूठा  ही स्थान है जो युगों-युगों से भारत को ही नहीं पूरे विश्व  को प्रकाशित करती रही है  यदि चिंतन किया जाए तो शिक्षण परंपरा वह परंपरा है जो प्रत्येक क्षेत्र,विषय और पदार्थ के ज्ञान सेजोड़कर विषय के कण-कण को आलोकित करती रही है  भारतीयों की यह ज्ञान परंपरा विश्व में अपने चरण पसार चुकी है  आज वैशिक संस्कृति भारतीय संस्कृति की सराहना करते हुए,प्रकृति की ओर लौटाने की बात करती है  विभिन्न दार्शनिकों ने प्रकृति के मध्यम शान्त वातावरण में विद्यार्थियों के वैद्धिक विकास को महत्वपूर्ण एवं उद्देश्यपूर्ण बताया है  बड़े-बड़े पाशचात्य शिक्षा दार्शनिक भारतीयों की इस प्रणाली का वैज्ञानिक रूप से समर्थन करते हैं  उनका मानना है कि प्राकृतिक वातावरण पूर्ण स्वच्छऔर स्वस्थ होता है  उसका निर्मल शान्त स्वरुप विद्यार्थी को न केवल आत्मिक,मानसिक व बौद्धिक रूप से वरन् शारीरिक रूप से भी स्वस्थ रखता है और स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है  अत: आज विश्व भारत की इस परंपरा का ह्रदय से स्वागत करता है और कहता है कि भारतीयों की परम्पराएँ वैज्ञानिक दृष्टी से पूर्ण प्रासंगिक हो चुका है 

भारतीय वैदिक परम्परायें अत्यधिक प्रसिद्ध और प्राकृतिक रही हैं  बालक के मानसिक,बोद्धिक,शारीरिक, सामाजिक नैतिक,सांस्कृतिक,राजनितिक विकास के लिए उसमें बाल्यकाल से ही जीवनमूल्यों का बीजारोपण किया जाता था  लेकिन अनेक स्थलों पर परंपरा के साथ-साथ अंधविश्वास का भी आगमन होता रहता है जिसे दूर करने के लिए हमेशा ही साहित्य अग्रणी रहा है  ज्ञानमार्गी परंपरा अंधविश्वास पर गहरी चोट करता रहा है 

 आज संपूर्ण विश्व वैदिक परम्पराओं में समाई भक्ति परंपरा की आचरण शाक्ति को अपना रहा है  इन परम्पराओं का वैशिक धरातल पर गहरा प्रभाव दिखाई देता है  सात्विक आहार-विहार ने उसे सुख-पूर्ण जीवन दिया है  आज स्वास्थ्य एक महत्वपूर्ण इकाई बनकर भक्ति प्रणाली पुरे विश्व के द्वारा सराही जाती है संपूर्ण संसार बड़े-बड़े ऋषि मुनियों और कवियों संतों,साहित्यकारों के द्वारा बढ़ाई  गई भक्ति शैलियों को अपना रही है Iयह भारतीय ज्ञान परम्पराओं का प्रत्यक्ष प्रभाव है 

संपूर्ण हिंदी साहित्य ज्ञान वह कक्ष है जिसका एक-एक पल नई-नई कलाओं और भावनाओं से मंडित थे  हिंदी साहित्य ने अपने अंतर में 64 कलाओं और 14 विधाओं में समाया हुआ है  सात द्वीपों वाली यह प्रथ्वी माँ चार वेदछ: वेदांगों शिक्षा ,कल्प, निरुक्त,व्याकरण, छन्द और ज्योतिष सहित धर्मशास्त्र,अन्वीक्षकी,मीमांसा और स्मृतियां  मिलकर 14 विधाओं से मण्डित तथा 64 कलाओं से सुशोभित है जिससे निसृत परम्पराएँ पुरे विश्व को ज्ञान, विज्ञान,दर्शन,कला,कौशल,और अनुसंधान से जोड़ रही है भारतीय ज्ञान परम्पराओं में निहित संत साहित्य आप में अद्धितीय  है  संत किसी के शुत्र नहीं होते वरन निष्काम होते है  ईश्वर में लीन होते है  प्रेम के उपासक होते है  भारतीय ज्ञान परंपरा में निहित संत साहित्य अपने आप में उद्भूत क्षमता को धारण करने वाला है  हिंदी साहित्य की ये परंपरा समाज को सदैव से नयी दिशा,आयाम देने में सक्षम रही है और आज भी दे रही है 

भारतीय ज्ञान परम्पराओं का विश्व पर अमित प्रभाव है  वैश्विक धरातल पर चाहे राजनीति हो या सामाजिकता,संस्कृति हो अथवा सभ्यता,ज्ञान हो अथवा कौशल,योग हो अथवा व्यवहार,भाषा हो या विज्ञान, खोज हो अथवा शोध तर्क हो उसका विश्लेषण सभी क्षेत्रों में हर क्षेत्र में भारतीय ज्ञान पराम्परायें अपना प्रभाव अभिव्यक्त करती रही है  इन्हीं ज्ञान परम्पराओं से पश्चिमीसंस्कृति,कौटिल्य की राजनीति से प्रभावित होती रही है  चरक की संहिता हो या महर्षि पंतजलि की योग शिक्षाओं से अपने आपको शोध के क्षेत्र में सफल बनाती है तो सामवेद के गायन विधाएं उसको मधुर संगीत से जोड़ती है  हिंदी की समरसता प्रत्येक कण-कण को सहज,सरल करती जाती है  भारतीय ज्ञान परंपरा में हिंदी साहित्य,वह हिराकमणी हीरकमहै जिसमें समस्त भावनायें समाहित है I उसमें भक्ति भी है , ज्ञान भी है बाल मनोरंजन  भी है और युवाओं का दिग्दर्शनभी I इस तरह हिंदी साहित्य भारतीय ज्ञान परंपरा का एक मुख्य और अतुलनीय स्त्रोत है 

भारतीय ज्ञान परंपरा और हिंदी साहित का संबंध अत्यंत गहरा और व्यापक है  वेदों से लेकर आधुनिक युग तक,भारतीय ज्ञान परंपरा ने हिंदी साहित्य को दर्शन,भाषा और भावनात्मक अभिव्यक्ति के नए आयाम दिए हैं भक्ति आन्दोलन से लेकर आधुनिक युग के साहित्य तक भारतीय संस्कृति और परंपराओं की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है I हिंदी साहित्य ने भारतीय ज्ञान परंपरा के तत्वों को आत्मसात करते हुए सामाजिक, धार्मिक और दार्शनिक चिंतन को लगातार विकसित करती हुई चलती है 

हिंदी साहित्य भारतीय ज्ञान परंपरा का एक अनिवार्य अंग है , जिसमे से लेकर आधुनिक चिंतनधारा तक की समृद्ध विरासत समाहित है I

सहायक ग्रन्थ सूची

1.       डॉ ० मीरा, “मध्ययुगीन हिंदी कृष्णा भक्तिधारा”, हिन्दुस्थान एकेडमी, १९६८ .

2.       डॉ ० वासुदेव सिंह,कबीर (साहित्य और साधना), अभिव्यक्ति प्रकाशन,१९९४.

3.       डॉ ० आचार्य रामचंद्र शुक्ल, “हिंदी साहित्य का इतिहास,  विश्वविद्यालय प्रकाशन ,२०१५.

4.       सं: डॉ० नागेन्द्र,डॉ० हरदयाल, हिंदी साहित्य का इतिहास, मयूर पेपरबैक्स, २०१८

5.       सं: नागेन्द्र’ हिंदी साहित्य का इतिहास’, मयूर पेपरबैक्स, २०२०.

6.       हजारी प्रसाद द्विवेदी, कबीर’, राजकमल प्रकाशन,२०२४.

7.       योगेन्द्र सिंह, ‘संत रैदास’ लोकभारतीय प्रकाशन,२०२१.


यह लेख अङोम बुङ सिंह (Angom Bung Singh) द्वारा हिन्दी विभाग, मणिपुर विश्वविद्यालय के संदर्भ में लिखा गया है। लेखक शोधार्थी (Research Scholar), हिन्दी विभाग, मणिपुर विश्वविद्यालय, इंफाल–795003 हैं।

संपर्क विवरण:
📞 Phone: 7005215332
✉️ Email: bungangom@gmail.com

    

  

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