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एस.आर हरनोट की कहानी ‘आभी’


“जीवन का एक सहारा, पर्यावरण हमको प्यारा”, “आओ पर्यावरण बचाएँ, अपना जीवन बेहतर बनाएँ”, “थिंक ग्रीन, लिव क्लीन” आदि कई ऐसे नारों से हम मनुष्य जाति पर्यावरण को बचाने की बात कर रहे हैं हम हर साल 5 जून को ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ मनाते हैंइस दिन हम सब प्रतिज्ञा करते हैं कि हम अपने पर्यावरण को स्वच्छ एवं सुरक्षित रखेंगे अगले दिन भूल जाते हैं आज दुनिया भर की जानकारी के बावजूद पर्यावरण दूषित होता जा रहा है पर्यावरण को स्वच्छ रखने तथा जीवित हर प्राणियों को बचाने को अपना कथासार बनती है एस.आर हरनोट की “आभी” कहानी एस. आर हरनोट ने अपनी कहानी “आभी” में आभी नाम की चिड़िया द्वारा पर्यावरण को सुरक्षित रखने के ढ़ृढ़ प्रयासों को दिखाया है हिमाचल प्रदेश के एक जिले में स्थित झील को निर्मल रखने का प्रयास करती आभी की कहानी को लेखक ने अपनी कहानी का कथ्य बनाया है।

आभी का एक ही लक्ष्य है- झील को निर्मल तथा स्वच्छ रखना वह झील में एक भी तिनका गिरने नहीं देती, अपनी चोंच से उठा लेती है। यहाँ तक की सूरज के किरणों का झील पर पड़ना आभी को मोती सा लगता है, जिससे उठाने का प्रयास वह हर सुबह करती है। आभी झील को इतना निर्मल रखना चाहती है कि वह पर्यटकों, पेड़ों के पत्तों को उड़ाकर पानी में गिरा देने वाली हवा से, तिनकों को गिराकर पानी दूषित करने वाले वृक्षों से लड़ पड़ती है। आभी झील के पानी को दूषित नहीं करना चाहती है। लेखक आभी की मन की उदासी को दर्शाते हुए लिखते है;

     “झील के पानी को पानी की तरह साफ रहने देना चाहती है”

     “वे नहीं जानते नदियों, झीलों के पानी का मोल। उन्हें नहीं पता हवाओं   की ताजगी उन्होंने नहीं देखा है देवदारुओं की तपस्या।”

     यह काम बरस में छह महीने बर्फ के जमने से रुका रहता है, जो आभी को उदासी से भर देता है।

एस.आर हरनोट ने अपनी कहानी में इंसानों को डरावना कहा है। आभी भी इंसानों से डरती है। क्योंकि इंसान पर्यावरण को गंदा और दूषित करने में एक पल के लिए नहीं सोचता। लोग झील में, पास के पेड़ों के आस-पास प्लास्टिक, खाने के चीजें, लिफाफे, खाली बोतल आदि फ़ेंककर दूषित करते हैं। झील के पास बूढ़ी नागिन माँ के मंदिर के दूर नीचे झाड़ियों को भी दूषित कर देते हैं। आभी को इंसानों के इन गंदे व्यवहार पसंद नहीं है। आभी जानती है कि प्लास्टिक मिट्टी में घुल नहीं पाता जिससे पर्यावरण मैला और दूषित हो जाता है। लेखक लिखते हैं कि आभी इन दूषित चीजों को ‘किसी दूसरी दुनिया या अजनबी जंगल का कचरा है जो इंसानों के झोलों से निकलता है’ -मानती है। लेखक आभी की मनोवृत्ति को इस प्रकार लिखते है;

“उन्हें नहीं पता कि अपने साथ मैदानों से लाए इस कचरे को फ़ेंककर कितना अनर्थ कर रहे हैं।”

कहानी में केवल एक ही आभी की बात नहीं की गई है बल्कि कई ऐसे और भी आभियाँ है जो पर्यावरण को साफ-सुरक्षित करने का प्रयास करती हैं। जब भी झील तथा बूढ़ी नागिन माँ का मंदिर गन्दा और दूषित होता है, यह आभी जोर-जोर से चहचहाकर दूसरे आभियों को सहायता के लिए बुलाती है। आभियाँ झुण्ड बनाकर कचरों को उठाने का प्रयास करती हैं, लेकिन जब सब मिलकर उठा नहीं पाते, तो सभी मंदिर के पास बैठकर चह्चहाने लगती। इनकी चहचहाहट में दर्द भरी होती है। पर्यावरण प्रदूषित होने का इतना दर्द और उदासी आभी में है, जो मनुष्य में नहीं है। मनुष्य स्वच्छ साफ जगहों को मैला करने में संकोच नहीं करता, ना ही खुद का कचरा साफ करता है। एस.आर हरनोट ने आभी के द्वारा पर्यावरण के प्रति प्रेम और चिंता को व्यक्त किया है जो आज के इंसान सोचना नहीं चाहता।

लेखक ने अपने कहानी में केवल झील का पानी प्रदूषित करने की चिंता ही व्यक्त नहीं की है, उन्होंने जंगल और उनमें बसे जीव-जन्तुओं के प्रति चिंता और डर को भी लिखा है। इंसानों ने जंगलों के सुखांत जीवन को उजाड़ कर रख दिया है। उनके वाहनों के शोर से जंगल के जानवर डर जाते हैं। इन्हीं वाहनों से निकलने वाला धुआँ हवा को प्रदूषित करता। जंगल के पुराने वृद्ध वृक्ष भी कटते जा रहे हैं। इन वृक्षों को कटते देख जंगल के जानवर दुःख से गरजते हैं। इंसानों को पेड़ कटते देख ईश्वर तक सहम जाता हैं। इंसान बुरे कारनामों से जंगल को प्रदूषित करता है। इन्होंने जंगल के वृक्ष ही नहीं जंगल में बसे जानवरों को भी पीड़ा पहुँचाई है। शिकारी बन्दूक लेकर जानवरों की हत्या कर रहे हैं। इनके बन्दूकों के बारूद, नशे के चीजों तथा नोटों की बदबू जंगल में फैल गई है। इंसान रात के अँधेरे में दुष्ट कार्य करता है, आभी यह सब देख परेशान है। इंसान नशे की चीज़ों को लाकर वहीं फैला देता है, वह मदिरा पान करता है, सिगरेट और बीड़ी पीता है तथा उन टुकडों को वहीं का वहीं फ़ेंक आता है। आभी इन अधजले टुकडों को जुगनू समझ बैठती है, जिससे उठाने के प्रयास में खुद को जला लेती है।

आभी झील के साथ साथ आस-पास के जंगल में रहने वाले पशुओं की भी रक्षा करने का प्रयत्न करती है। एक बार आभी बर्फानी मादा चीते को बचाती है, जिससे शिकारियों ने वार कर घायल कर दिया था। आभी और उसके दोस्तों ने तिनकों से ढँक कर उसे छिपाया था। आभी मनुष्य को स्वार्थी समझती है। नशे में दूत शिकारी घायल चीते की तलाश में आते हैं। बीड़ी सुलगाकर कुछ कश लेकर उसका अधजला वही फ़ेंक देता है जिससे पास के सूखे पत्ते और तिनके में आग लग जाती है। नशे में धूत शिकारी उसी आग में खुद जल जाता है। उसे जलता देख उसके साथी उसे बचाने के बजाय खुद की जान बचाने भाग खड़े हो जाते हैं। आग के लपेटे में आया शिकारी झील में जा गिरता है और वही जान गँवा देता है। उसके जले कपड़ों के टुकड़े झील में तैरने लगते हैं। आभी उड़ती आती है और उन टुकड़ों को उठा लेती है। सुबह होते ही आभी और जंगल में बसे सभी अपने-अपने काम पर व्यस्त हो जाते हैं।

एस.आर हरनोट ने अपने ‘आभी’ कहानी में मनुष्य ने पर्यावरण को कितना दूषित और नष्ट किया हुआ है, यह दिखाया है मनुष्य ने अपने स्वार्थ और लालच के लिए प्रकृति और उसमें बसे प्राणियों को परेशान कर रखा है लेकिन आभी चिड़िया प्रकृति और उसमें बसे प्राणियों को बचाने की कोशिश करती है आभी झील और उसके आस-पास के पर्यावरण को निर्मल और स्वच्छ रखना चाहती है केवल आभी ही नहीं उसके जैसे कई आभियों का यही प्रयास रहता है। मनुष्य ने अपने जिस कर्त्तव्य से अपना मुँह मोड़ लिया है, उसी को आभी चिड़िया पूरा कर रही है।

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सन्दर्भ संकेत:

एस.आर हरनोट, लिटल ब्लाक गिर रहा है, आधार प्रकाशन, पंचकूला, प्रथम पपेरब संस्करण- 2016


यह लेख थोकचोम रेनुका देवी द्वारा हिंदी विभाग, मणिपुर विश्वविद्यालय के लिए लिखा गया है। लेखक हिंदी विभाग, मणिपुर विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं।

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