मणिपुर में हिंदी भाषा का प्रयोग
मणिपुरी भाषा (मैतैलोन) मणिपुर की राज्य-भाषा है। मणिपुरी भाषा (मैतैलोन) विशेषकर मैतै भारत के उत्तर पूर्वी क्षेत्र में मणिपुर, असम, त्रिपुरा, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश हैं। उत्तर पूर्वी क्षेत्र की भाषा एवं बोलियाँ भारत के हिंदी भाषी राज्यों से बहुत भिन्न हैं। उत्तर पूर्वी क्षेत्र अहिंदी भाषी क्षेत्र है और इन राज्यों में अपनी अलग-अलग भाषा एवं अनेक बोलियाँ बोली जाती हैं। उत्तर पूर्वी क्षेत्र अहिंदी भाषी होते हुए भी हिंदी भाषा को संपर्क भाषा के रूप में प्रयोग किया जाता है। इन राज्यों में राज्य भाषाओं के अलावा संपर्क भाषा के रूप में हिंदी व अंग्रेजी का प्रयोग किया जाता है।
समुदाय की भाषा है। यहाँ मैतै लोगों के साथ अनेक जनजातियाँ निवास करती हैं। यहाँ की जनजातियों की भाषा व बोली अलग-अलग हैं परंतु एक दूसरे से संपर्क करने के लिए मैतैलोन का प्रयोग करते हैं।
वैसे तो संसार की किसी भी भाषा का महत्व एक दूसरे से संपर्क करना है। भाषा के प्रयोग से जन समाज में संपर्क स्थापित हो पाता है और एक दूसरे के विचारों का आदान-प्रदान होता आया हैं, यह भाषा का सर्वप्रथम महत्व है। डॉ. भोलानाथ तिवारी ने अपनी भाषा विज्ञान पुस्तक में भाषा की परिभाषा इस प्रकार दिया है - “भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से हम सोचते हैं तथा अपने विचारों को व्यक्त करते हैं।“1
इसी प्रकार विभिन्न विद्वानों ने भाषा की अनेक परिभाषाएँ
दी हैं:
‘भाषा' शब्द संस्कृत की ‘भाष' धातु से बना है जिसका अर्थ है - 'बोलना' या 'कहना'। अर्थात ‘भाषा वह है जिसे बोला जाय।'
स्वीट के अनुसार 'ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा
विचारों को प्रकट करना ही भाषा है।
आधुनिक भाषा-शास्त्रों में भाषा की परिभाषा इस प्रकार है। जैसे:
ब्लॉक तथा ट्रेगर- ‘A language is a system of arbitrary vocal symbols by
means of which a society group cooperates.’
स्त्रुत्वां-'A language is a system of arbitrary vocal symbols by
means of whichmembers of social group corporate and interact.’
उपर्युक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि भाषा का प्रयोग किसी भी समाज में बातचीत, सहयोग व संपर्क करने के लिए किया जाता है। भाषा के माध्यम से एक दूसरे से बातचीत करके एक दूसरे को जान सकते हैं।
मणिपुर के निवासी बाहर अन्य राज्यों या हिंदी भाषी क्षेत्र में पढ़ने के लिए, घूमने, काम-काज आदि के लिए जाते हैं। अन्य राज्यों में जाकर लोगों से संपर्क करने के लिए हिंदी भाषा बोली जाती है और एक दूसरे से संपर्क करते हैं। हिंदी भाषी लोगों का यह कहना है कि हम अहिंदी भाषी क्षेत्र के लोग हिंदी शुद्ध रूपसे बोल नहीं सकते और लिख भी नहीं सकते हैं। कुछ चंद हिंदी भाषी लोगों का कहना यह है कि अहिंदी भाषी क्षेत्र के लोग हिंदी भाषा को मानक रूप में न बोलकर बाजार भाषा के रूप में प्रयोग करते हैं।
हिंदी भाषा राष्ट्रभाषा होते हुए भी भारत की उत्तर पूर्वी राज्य एवं अहिंदी क्षेत्र के लोग अन्य भाषा के रूप में सीखते हैं। मातृभाषा के प्रभाव के कारण मणिपुर में मूर्धन्य के वर्णों जैसे ट, ठ, ड, ढ, ण और ष का उच्चारण ठीक से नहीं कर पाते हैं। इसलिए विद्यालय में छोटी कक्षाओं में वर्णमाला सिखाते समय मूर्धन्य वर्णों को इस प्रकार उच्चारण करना सिखाते हैं जैसे- मूर्धन्य ट, मूर्धन्य ठ, मूर्धन्य ड, मूर्धन्य ढ, मूर्धन्य ण व मूर्धन्य ष। हम उच्चारण करते समय गलत हो सकते हैं पर लिखते समय गलती की कोई गुंजाइश नहीं है। उदाहरणार्थ: उषा शब्द को हम इस प्रकार पढ़ते हैं छोटी उ + मूर्धन्य ष + आ की मात्रा।
मणिपुरी भाषा मे 'ङ' वर्ण शब्दों का अधिक
प्रयोग किया जाता है। हम इसको आसानी से उच्चारण करते हैं। इस ‘ङ 'वर्ण को हिंदी भाषी लोग
सही से उच्चारण नहीं कर पाते हैं। हिंदी भाषी लोग जो मणिपुर में रहते हैं, वह यह ‘ङ 'मौजूद शब्द बोलने में असमर्थ है।‘ङ' के बदले ‘न' व 'ग' आदि का प्रयोग करके बोलते हैं। जैसे मणिपुरी
भाषा में ङशी (आज), ङराङ् (कल), ङानु (बत्तख), ङारी (सूखी मछली का एक
प्रकार), अङौबा (सफेद), अङाङ्बा (लाल) आदि हैं। हिंदी भाषी क्षेत्र के लोग इन शब्दों को गलत उच्चारण करते हैं और गलत
उच्चारण करने से इन शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं। परंतु परिस्थितियों के आधार से
हम उन शब्दों को समझ जाते हैं कि उस समय वह क्या कहना चाह रहे हैं। जैसे- ङशी (आज) को ‘नासी' उच्चारण करके बोलते हैं, जिसका कोई अर्थ नहीं होता है। ‘अङाङ्बा' (लाल) को ‘अंगानबा’ या‘ अगांगबा’, ‘अंगानबा’ का अर्थ है –रोशनी और ‘अगांगबा’ का कोई अर्थ नहीं निकलता है। जो भी ‘ङ' उपयोग शब्द को
प्रयोग करके बोली जाने वाले वाक्य को हम परिस्थितियों के अनुकूल समझ लेते हैं।
भारतीय अंग्रेजी भाषा के शब्द उच्चारण करते समय और वाक्य बोलते समय बहुत सारी गलतियाँ करते हैं और शुद्ध उच्चारण नहीं कर पाते हैं। परंतु उच्चारण गलत होकर भी जो वाक्य बोले जाते हैं उसे उचित रूप मान लेते हैं। अंग्रेजी या अन्य भाषा का प्रयोग करते समय गलत तरीके से उच्चारित करते हैं पर उसे गलत नहीं माना जा सकता।
भारत में अनेक प्रकार के भाषा भाषी लोग रहते हैं। हिंदी भाषा सबसे संपर्क करने के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली भाषा है। हिंदी भारतीयों को एक सूत्र में बाँधकर रखने वाली एकमात्र भाषा है जिससे अनेकता में एकता की भावनाओं का उजागर होता हैं। हिंदी भाषी लोगों को अहिंदी भाषी लोगों की समस्या को ध्यान में रखना चाहिए। हिंदी भाषी लोगों का उच्चारण में न जाकर उनकी भावनाओं को मद्देनजर में रखते हुए अहिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी भाषा की अभिवृद्धि एवं विकास को देखना चाहिए।
हम भारत देश के नागरिक हैं, हमें एक दूसरे का सहयोग करना एवं समझना चाहिए। एक दूसरे की खामियाँ या कमियों को स्वीकार करते हुए एक दूसरे को आगे बढ़ने का अवसर देना चाहिए। अलग-अलग भाषा को बोलने के तरीके, सुर व स्वर अलग-अलग होते हैं। इसलिए किसी की भाषा गलत नहीं होती, उसको बोलने और समझने के तरीके अलग-अलग होते हैं। भाषा में उच्चारण गलत हो सकता है पर भाव गलत नहीं हो सकता। हिंदी भाषा एक मात्र भाषा है, जिससे हम भारतवासियों को बाँधकर रखने की क्षमता है। यह एक माध्यम है जो हमें एक दूसरे को जानने और समझने का अवसर देती देती है। अतः अहिंदी भाषी क्षेत्र के लोगों के हिंदी के उच्चारण पर न जाकर उसमें अभिव्यक्त भावना एवं प्रेम को समझने का प्रयास करना चाहिए। हिंदी भाषा का प्रयोग अनेकता में एकता लाने के साधन के रूप में किया जाना चाहिए। इस प्रकार देश के विविध भाषा-भाषियों की भावनाओं एवं उच्चारण क्षमता की कदर करने के साथ-साथ आपसी सहयोग के माध्यम से हिंदी भाषा का विकास करने का प्रयास किया जाना चाहिए। तभी सच्चे अर्थों में भारतीय राष्ट्रीय एकता संभव होगी।
सहायक-ग्रंथ:
1.भाषा विज्ञान-डॉ. भोलानाथ तिवारी,पृष्ठ1-2, किताबमहल,इलाहाबाद, प्रथम संस्करण: 1955, पुनर्मुद्रण: 2019
यह लेख एस. साधना चनू द्वारा kangla.in के लिए लिखा गया है। लेखिका शोधार्थी हैं, मणिपुर विश्वविद्यालय से संबद्ध।


कोई टिप्पणी नहीं