मणिपुर का हिंदी साहित्य : डॉ. ई. विजय लक्ष्मी
आज के संदर्भ में मणिपुर में हिंदी की स्थिति की बात करें तो निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि हिंदी की स्थिति अच्छी ही है। यहाँ संपर्क की भाषा मणिपुरी है,परंतु मणिपुरी के बाद प्रयोग होने वाली भाषा हिंदी है। मणिपुर में हिंदी का प्रयोग कब और कैसे शुरू हुआ- इस संदर्भ में यह अनुमान लगाया जाता है कि 11 वीं शताब्दी के आस-पास भारत के हिंदी प्रदेशों पर मुसलमानों का आक्रमण हुआ तब इन प्रदेशों के ब्राह्मण विभिन्न क्षेत्रों में चले गए थे। इन हिंदी भाषी ब्राह्मणों में से बहुत लोग मणिपुर भी पहुँचे थे तब मणिपुर वासियों का परिचय हिंदी से हुआ। कुछ विद्वान चौथी शताब्दी से हिंदी भाषी लोगों का आगमन मानते हैं। प्रामाणिक रूप से मणिपुर में ब्राह्मणों का आगमन राजा कियाम्बा के शासन काल 1467-1508 में बताया जाता है। इतिहासकार श्री इबुङोहल सिंह और निङथौखोङ्जम खेलचन्द्र इस बात का समर्थन करते है। इसकी पुष्टि- बामोन खुनथोक तथा बामोन मैहौबारोल से हो जाती है, जहाँ ब्राह्मणों के मणिपुर में आगमन का उल्लेख मिलता है। ये ब्राह्मण भारत के विभिन्न क्षेत्रों- गुजरात, मथुरा, कन्नौज, ओडिसा, कोलकता, नदिया, असम तथा त्रिपुरा से आए थे और अपने साथ अपनी भाषा और अपनी संस्कृति लेकर आए थे। यहाँ की भी अपनी समृद्ध भाषा तथा संस्कृति थी, जिसका प्रभाव बाहर से आए ब्राह्मणों पर पड़ा और ब्राह्मणों का एक भिन्न स्वरूप सामने आया। वहीं पर ब्राह्मणों की भाषा और संस्कृति का प्रभाव स्थानीय लोगों पर पड़ा। अतः दोनों संस्कृतियों के समन्वय से मणिपुर में एक नई संस्कृति का जन्म हुआ। ईश्वर की पूजा-आराधना जैसे धार्मिक अनुष्ठानों में ये ब्राह्मण संस्कृत तथा हिंदी की शब्दावली का प्रयोग करते थे। मणिपुर के शाही अभिलेख ‘चैथारोल कुम्बाबा’ में इस तथ्य की जानकारी भी मिलती है कि पन्द्रहवीं शताब्दी में राजा कियाम्बा द्वारा लमलाङ्दोङ या विष्णुपुर में स्थापित विष्णु मन्दिर में पूजा-अनुष्ठान करवाने के लिए ब्राह्मण नियुक्त किए गए थे। अट्ठारहवीं शताब्दी में पामहैबा अर्थात महाराजा गरीबनवाज़ द्वारा अपने शासन काल में वैष्णव धर्म को स्वीकार करने तथा राज धर्म घोषित कर दिए जाने के बाद तो वैष्णव पदावली तथा जयदेव के गीतगोविन्द के पदों का गान मणिपुरी समाज-सांस्कृतिक तथा धार्मिक क्रियाओं का अभिन्न अंग बन गया। यहाँ के हिंदुओं पर वैष्णव धर्म का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। अतः मणिपुरी लोगों के मन में हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थ स्थलों-काशी, हरिद्वार, नवद्वीप, पूरी, वृन्दावन आदि क्षेत्रों के प्रति श्रद्धा का भाव जागा। अपने जीवन काल में इन तीर्थ स्थलों की यात्रा की आस हर हिंदू करने लगा। इन स्थलों की यात्रा से हिंदी तथा यहाँ की बोलियों से मणिपुर के लोगों का परिचय बढ़ा। उन्नीसवीं शताब्दी में जब अंग्रेज मणिपुर आए उस समय वे अपने साथ कुछ बंगला तथा हिंदी भाषी अधिकारियों को भी साथ लाए थे। उनसे सम्पर्क स्थापित करने के लिए भी मणिपुर के लोगों को हिंदी की आवश्यकता महसूस हुई। उन्नीसवीं शताब्दी में महाराज चुड़ाचाँद के शासन काल में औपचारिक शिक्षा की व्यवस्था के लिए विद्यालयों की स्थापना की गई। मेधावी विद्यार्थियों को विद्याध्ययन के लिए काशी, प्रयाग,नवद्वीप जैसे स्थानों पर भेजा गया। इन धार्मिक स्थलों में रहकर उन विद्यार्थियों ने संस्कृत के साथ हिंदी का भी ज्ञान प्राप्त किया। इसके साथ मणिपुर में हिंदी को प्रसारित करने में हिंदी भाषी व्यापारियों की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। इस तरह हिंदी की एक पृष्ठभूमि इतिहास में ही निर्मित हो गई थी।
स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान गाँधी जी के नेतृत्व में देश जब आजादी की लड़ाई लड़ रहा था और देश को एक जुट करने के लिए एक भाषा की आवश्यकता महसूस की जा रही थी। इसके लिए हिंदी जिसे गाँधी हिन्दुस्तानी कहा करते थे, को सर्वाधिक उपयुक्त समझा गया। देश भर में हिंदी के प्रचार के लिए संस्थाएँ स्थापित की गईं। हिंदी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा आदि संस्थाओं ने अहिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी प्रचार का काम शुरू किया तो मणिपुर में भी इसके कार्य क्षेत्र का विस्तार हुआ। इन प्रचार संस्थाओं से प्रारंभिक रूप से जुड़ने वालों में- श्री ललिता माधव शर्मा, श्री बंकबिहारी शर्मा, श्री थोकचोम मधु सिंह, पं. राधामोहन शर्मा तथा कैशाम कुँजबिहारी सिंह थे जिन्होंने अपने अनथक प्रयासों और लगन से मणिपुर के लोगों को हिंदी से परिचय ही नहीं करवाया बल्कि मणिपुर में हिंदी का प्रचार और प्रसार भी किया । हिंदी प्रचार को आन्दोलन रूप देने में हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग (1927), मणिपुर राष्ट्रभाषा प्रचार समिति (1939), मणिपुर हिंदी परिषद (1953) जैसे संस्थानों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इन संस्थाओं के अलावा मणिपुर हिंदी प्रचार सभा, नागा विद्यापीठ, ट्राइबेल्स हिंदी समिति, अखिल मणिपुर हिंदी शिक्षक संघ, हिंदी शिक्षण प्रशिक्षण महाविद्यालय आदि संस्थाओं ने हिंदी का काफी प्रचार किया है। सन् 1933 में राजस्थान निवासी सेठ भैरोदान के नाम से भैरोदान हिंदी स्कूल की स्थापना हुई जहाँ व्यवस्थित ढंग से हिंदी की पढ़ाई होने लगी। विद्यालयों में पढ़ाई जाने वाली हिंदी से लोगों में हिंदी के प्रति रुचि जगी है। महाविद्यालयों और मणिपुर विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाने वाली हिंदी ने यहाँ हिंदी की स्थिति मजबूत की है। परिणाम यह कि मणिपुरी के अलावा हिंदी भी यहाँ रचना की भाषा बन गई है। कहना गलत नहीं होगा कि पूर्वोत्तर भारत के जिन राज्यों में लेखन के लिए हिंदी का प्रयोग होता है, उनमें मणिपुर भी एक है। कवि तथा लेखकों ने मौलिक संग्रहीत तथा अनुवाद के माध्यम से हिंदी साहित्य कोष को न केवल बढ़ाया है बल्कि मणिपुरी साहित्य तथा हिंदी साहित्य के बीच संबंध को दृढ़ किया है।
मणिपुर के हिंदी साहित्य को दो प्रकार से विभाजित किया जा सकता हैं-
पहला - मौलिक रचनाएँ तथा अनूदित रचनाएँ
दूसरा - स्थानीय या मणिपुरी रचनाकारों की रचनाएँ तथा गैर मणिपुरी रचनाकारों की रचनाएँ
रचनाएँ चाहे स्थानीय रचनाकारों की हो या गैर मणिपुरी रचनाकारों की मणिपुर के हिंदी साहित्य को समृद्ध ही करती है। अतः दोनों ही प्रकार की रचनाओं को यहाँ सम्मिलित करना उचित होगा। रचनाओं को विधा के आधार पर कालक्रमानुसार प्रस्तुति समीचीन है। प्राप्त तथ्यों के आधार पर मणिपुर की पहली हिंदी पुस्तक अतोम बाबू शर्मा की 1951 में प्रकाशित मणिपुर का सनातन धर्म है। इसमें लेखक ने मणिपुर में वैष्णव धर्म के स्वरूप को स्पष्ट किया है। इसके बाद कलाचान्द द्वारा रचित पहला हिंदी उपन्यास खम्ब-थोइबी 1963 प्रकाशित हुआ। इसकी कथावस्तु मणिपुर की लोक गाथा खम्ब-थोइबी पर आधारित है। इसी वर्ष इसी लोकगाथा पर आधारित सी.एच. निशान निङतम्बा का नाटक खम्ब-थोइबी प्रकाशित हुआ। 1987 में श्री के. याइमा शर्मा द्वारा रचित नाटक वीर टिकेन्द्रजीत प्रकाशित हुआ। इस नाटक में युवराज टिकेन्द्रजीत के मातृभूमि की रक्षा के लिए अंग्रेजों से संघर्ष और अंतः जीवन की आहुति का मार्मिक चित्रण किया गया है।
1972 में एस. गोपेन्द्र शर्मा की मणिपुरी संस्कृति-एक झाँकी प्रकाशित हुई। डॉ. रमाशंकर नागर की मणिपुर एक सांस्कृतिक झलक, डॉ. गुरु वनमाली की मणिपुरी नर्तन कला, राधागोविंद थोङाम की हिंदू धर्म के मूल तत्व, प्रो. देवराज द्वारा संपादित मणिपुर : विविध संदर्भ तथा मणिपुर : भाषा और संस्कृति प्रकाशित हुई। डॉ. देवराज की ही मणिपुरी कविता मेरी दृष्टि में तथा मणिपुर विविध सन्दर्भ प्रकाशित हुआ।
मौलिक काव्य संग्रहों में आचार्य राधागोविंद थोङाम का संग्रह क्षितिज-सा-ध्येय
1977में प्रकाश में आया। इन कविताओं में
मूल रूप से मानव प्रेम, निःस्वार्थ भाव और सदाशयता को महत्व दिया गया है।1992 में
प्रो. देवराज का काव्य संग्रह चिनार प्रकाशित हुआ, जिसमें अन्य कविताओं के
साथ प्रकृति के रंग, नम्बुल, लोकताक, थोइबी, खोङजोम तुरेल और इम्फाल शामिल है जो
मणिपुर की पृष्ठभूमि पर रची गई है। 1999 में मणिपुर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग
के विद्यार्थियों द्वारा रचित कविताओं का एक संग्रह प्रयास प्रो. देवराज के
संपादन में प्रकाशित हुआ। हिंदी में रचित
मौलिक रचनाओं की सूची कालक्रमानुसार इस प्रकार दी जा सकती है-
1.
मणिपुर का सनातन धर्म-
अतोमबाबू शर्मा, सं.-1951, चुड़ाचाँद प्रिंटिंग वर्क्स, इम्फाल मणिपुर
2.
हिंदी और मणिपुरी परसर्गों
का तुलनात्मक अध्ययन- अरिबम कृष्णमोहन शर्मा, सं.- 1972, केंद्रीय हिंदी संस्थान,
आगरा
3. मणिपुर : भाषा और संस्कृति- सं.
प्रो. देवराज, हिंदी परिषद, हिंदी विभाग मणिपुर विश्वविद्यालय, कांचीपुर,
इम्फाल-795003
4. मणिपुर : विविध संदर्भ, सं.- प्रो. देवराज,
हिंदी परिषद, हिंदी विभाग, मणिपुर विश्वविद्यालय, काँचीपुर इम्फाल-795003 (मणिपुर)
5. हिंदी-मणिपुरी क्रिया संस्करण-
इबोहल सिंह काङजम, प्रवीण प्रकाशन 1/1079- ई, महरौली, नई दिल्ली-110030
6. भारतीय संस्कृति की आधारशिला,
सं.-राधागोविंद कविराज,प्र-1994, लोकप्रकाशन, उरिपोक, इम्फाल 755001 (मणिपुर)
7. हिंदू धर्म के मूल तत्व-
राधागोविंद कविराज, लोकमंगल प्रकाशन, इम्फाल उरिपोक-795001 मणिपुर
8. हिंदी और मणिपुरी की समान शब्दावली
(व्यतिरेकी अध्ययन)- ब्रजेश्वर शर्मा, 2000 एस.कुलचन्द्र शर्मा एण्ड सन्स प्रकाशन
ब्रह्मपुर नहाबम, पुरितमयुम लैरक इम्फाल-795001 मणिपुर
9. प्रयोजनमूलक हिंदी- ह. सुबदनी
देवी, 2002, वांखै थाङपात मपाल, वांखैराष्ट्रभाषा महाविद्यालय इम्फाल 975001
मणिपुर
10.
हिंदी और मणिपुरी वाक्य गठनों का व्यतिरेकी
अध्ययन- ह. सुबदनी देवी,2003 वांखै राष्ट्रभाषा महाविद्यालय,वांखै थाङपात
इम्फाल-795001 मणिपुर
11.
हरिकृष्णप्रेमी
के एकांकी नाटकों एवं कविताओं का एक अध्ययन 2004, एम.अचौबी सिंह. पूर्वांचल
सत्साहित्य प्रकाशन संस्थान इम्फाल, मणिपुर
12.
अनुचिंतन-
चिंतन : साक्षात्कार – सुरेन्द्र सिंह, 2005 थौनाओजम
एंटरप्राइजेज इम्फाल मणिपुर
13.
समकालीन
हिंदी उपन्यास : समय से साक्षात्कार- ई. विजय
लक्ष्मी, 2006 राधकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड 7/31अंसारी
मार्ग, दरियागंज नई दिल्ली-110002
14. हिंदी साक्षात्कार का विकासात्मक इतिहास – सुरेन्द्र सिंह, 2007 थौनाओजम एंटरप्राइजेज इम्फाल मणिपुर
जीवन-चरित्र अथवा जीवनी साहित्य जैसे विधाओं में भी हिंदी में अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं। इस
क्षेत्र में प्रथम प्रयास मणिपुर के प्रमुख हिंदी सेवी फुराइलातपम गोकुलानंद शर्मा
द्वारा किया गया। इनके द्वारा सम्पादित पुस्तक वीर नर-नारियों की जीवन
गाथाएँ 1985 में प्रकाशित हुआ। इस विधा को आगे बढ़ाने वाली रचनाएँ हैं-आचार्य
राधागोविंद थोङाम की मणिपुर के अमरदीप(1988) तथा फुराइलातपम गोकुलानंद
शर्मा की मणिपुर की प्राचीन कहानियाँ (1989)। इन पुस्तकों में मणिपुर के इतिहास से
संबंधित चरित्रों का वर्णन किया गया है।1990 में जगमल सिंह की प्रकाशन विभाग,
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा प्रकाशित पुस्तक पूर्वोत्तर के
स्वतंत्रता सैनानी का प्रकाशन हुआ। मणिपुर हिंदी परिषद से जुड़े तथा हिंदी से
जुड़े लोगों का परिचयात्मक पुस्तक संकल्प और साधना प्रो. दवराज के संपादन में
पत्रिका विभाग, मणिपुर हिंदी परिषद द्वारा प्रकाशित किया गया। मणिपुर के हिंदी
सेवियों और उनके द्वारा सम्पन्न कार्यों का विस्तृत विवरण प्रस्तुत करने वाली
अरिबम ब्रजकुमार शर्मा की पुस्तक हिंदी को मणिपुर की देन 2014 में प्रकाश में आई।इस महत्वकांक्षी शोध के
माध्यम से न केवल हिंदी सेवियों का परिचय मिलता है बल्कि यह भी पता चलता है कि
जन-जन तक हिंदी को पहुँचाने के लिए हिंदी सेवियों ने कितना संघर्ष किया है।
किसी भी समाज की संस्कृति, परम्परा, जीवन शैली तथा उस समाज के व्यक्ति मन के
स्पंदन को पहचानने के लिए लोक साहित्य से बढ़कर दूसरा कोई साधन नहीं है। मणिपुरी
लोक साहित्य के अपार भण्डार को हिंदी में भी संकलित करने का सराहनीय कार्य का आरंभ
1984 में हो गया था जब मणिपुरी लोक साहित्य को हिंदी में संग्रहीत करने के प्रथम
प्रयास डॉ.सापम तोम्बा द्वारा किया गया जो श्रेष्ठ मणिपुरी लोक कथाएँ शीर्षक से
प्रकाशित हुई।हिंदी में उपलब्ध मणिपुरी लोक साहित्य की सूची इस प्रकार है-
1. श्रेष्ठ मणिपुरी लोक कथाएँ, सापम तोम्बा सिंह, सं 1984, मणिपुरी हिंदी अकादमी, तेरा सापम लैरक,
इम्फाल (मणिपुर)।795001
2. मणिपुर की लोक कथाएँ- सं. हीरालाल
गुप्त, लोक मंगल प्रकाशन-1986 उरिपोक इम्फाल- 795001, मणिपुर।
3. मणिपुरी लोक कथाएँ- सी. एच.निशान
निङतम्बा और जगमल सिंह, नुमितथोइ प्रकाशन-1991 क्वाकैथेल लमदोङ लैकाइ
इम्फाल-795001, मणिपुर।
4. मणिपुर की लोक कथाएँ (भाग-2) - सं.
हीरालाल गुप्त, गुप्त प्रकाशन 1990, तेली पट्टी इम्फाल, मणिपुर।
5. नोंदोननु- सी. एच. निशान निङतम्बा
और देवराज, नुमितथोइ प्रकाशन-1991, क्वाकैथेल इम्फाल 795001, मणिपुर।
6. मणिपुरी लोक कथा संसार- सं.
देवराज, राधाकृष्ण प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड-1999 नई दिल्ली।
7. मणिपुरी लोक गाथाएँ- सं. लनचेनबा मीतै, हिंदी लेखक मंच, मणिपुर हिंदी परिषद, इम्फाल मणिपुर
इस तरह सापम तोम्बा, हीरालाल गुप्त, सी.एच निशान, प्रो. जगमल सिंह, डॉ. देवराज तथा लनचेनबा मीतै द्वारा मणिपुरी लोक कथाओं और लोकगाथाओ से हिंदी पाठक को परिचित करवाया और मणिपुरी लोक कथाएँ तथा लोक गाथाएँ हिंदी साहित्य की धरोहर बनी।
साहित्य के क्षेत्र में अनुवाद का महत्वपूर्ण स्थान है। अनुवाद के माध्यम से
एक भाषा का साहित्य दूसरी भाषा तक पहुँचता है, क्योंकि साहित्य संस्कृति का वाहक
होता है। एक संस्कृति का दूसरी संस्कृति से परिचय भी बढ़ता है। इस तरह साहित्य के
माध्यम से मानव हृदय में निकटता आती है। यह अति प्रसन्नता का विषय है कि अनुवाद के
माध्यम से मणिपुरी साहित्य प्रचुर मात्रा में हिंदी साहित्य में पहुँच रहा है। इस
क्षेत्र में पहल छत्रध्वज शर्मा द्वारा 1962 में ही की जा चुकी है ।
इन्होंने नवजागरणकालीन मणिपुरी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर डॉ.कमल की रचना लै-परेङ
से नौ कविताओं का गद्यानुवाद कविश्री माला शीर्षक से प्रकाशित की।सन् बासठ से
अनुवाद का जो क्रम शुरू हुआ वह आज तक जारी है। मणिपुरी से हिंदी में अनूदित काव्य
संग्रहों की सूची निम्नलिखित है-
1.
कविश्रीमाला- (डॉ.लमाबम कमल
सिंह), अनु-अरिबम छत्रध्वज शर्मा, 1962 राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा
महाराष्ट्र।
2.
मीतै चनु- अनु-इबोहल सिंह काङजम, देवराज (सांस्कृतिक
मंच-साहित्यिक) पूर्वा, 1987, इम्फाल
3.
आधुनिक मणिपुरी कविताएँ (विभिन्न
कवि) अनु-इबोहल सिंह काङजम, सं.- देवराज, वाणी प्रकाशन दरियागंज नई दिल्ली।
4.
फागुन की धूल(विभिन्न
कवि)-अनु.-इबोहल सिंह काङजम, सं.-देवराज1990, काङजम इंटरप्राइजेज़ नाउरेमथोङ,
लौक्राकपम लैकाइ इम्फाल मणिपुर
5.
पुष्पमाला- (डॉ.लमाबम कमल
सिंह) अनु- हजारीमयुम सुबदनी देवी, 1993 हजारीमयुम विनोदकुमार शर्मा थाङपात मपाल,
इम्फाल।
6.
नवजागरणकालीन मणिपुरी
कविताएँ-(विभिन्न कवि)-अनु सिद्धनाथ प्रसाद, सं. देवराज, 1995 सुजाता प्रकाशन
मेरठ।
7.
तीर्थयात्रा-(एलाङबम
नीलकांत सिंह), अनु- काङजम इबोहल सिंह 1996, हिंदी बुक सेन्टर, असफ अली रोड, नई
द्ल्ली।
8. कवि चाओबा – जीवन और साहित्य, सं.-
देवराज, 1997, साहित्य विभाग, मणिपुर हिंदी परिषद इम्फाल, विधानसभा मार्ग, इम्फाल
मणिपुर.
9. जित देखूँ- (लनचेनबा मीतै), अनु
सिद्धनाथप्रसाद. सं-देवराज, मणिपुर हिंदी परिषद विधान सभा मार्ग, इम्फाल मणिपुर।
माँ की आराधना- (हिजम इरावत),
अनु-सिद्धनाथप्रसाद, सं- देवराज, 1998 राकेश प्रसाद तेली पट्टी, इम्फाल, मणिपुर
10.
सपने
का गीत-(खुमनथेम प्रकाश), अनु- हाओबम आनंदी देवी, 1998 आशिष प्रकाशन नागमपाल
लाइमयुम लैरक, इम्फाल मणिपुर
11.
आंद्रो
की आग- (मेमचओबी) अनु-
सोरोखाइबम सुशीला देवी, 2000 मणिपुरी हिंदी
परिषद, विधान सभा मार्ग, इम्फाल मणिपुर
12.
तुझे नहीं खेया नाव-
(लनचेनबा मीतै) अनु- सिद्धनाथ प्रसाद, सं.-देवराज 2000, विधान सभा मार्ग,
इम्फाल-मणिपुर
13. कुछ कहूँ पतंग और कथा एक गाँव की- (लाइश्रम समरेंद्र) अनु-हैराङखोङ्जम मेघचंद्र 2003 मणिपुर राइटर्स क्लब, नम्बोल, मणिपुर।
1989 में मणिपुरी साहित्य के द्वितीय विश्वयुद्धोत्तर 34 कवियों की 78 कविताओं
का अनुवाद काङजम इबोहल द्वारा किया गया जिसे प्रो. देवराज द्वारा संपादित कर आधुनिक
मणिपुरी कविताएँ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। मणिपुरी भाषा में आधुनिक काव्य
आन्दोलन का आरंभ 1949 से माना जाता है और इस संग्रह में संकलित कविताओं में
युद्धोत्तर मणिपुर की परिवर्तित सामाजिक,राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक
परिस्थितियों को कवियों ने विषय रूप में चुना है।प्रो. देवराज द्वारा संपादित मीतै
चनु (1978), 1996 में हजारीमयुम गोकुलानंद शर्मा की 52 कविताओ का संग्रह हृदय
सुमन राष्ट्रीय चेतना चिंतन प्रकाशित हुआ।1990 में फागुन की धूल नामक संग्रह
प्रकाशित हुआ। इसमें मणिपुरी कवियों की हिंदी में अनूदित कविताएँ तथा हिंदी में
रचित कविताओं का संकलन किया गया है।1993 में हजारीमयुम सुबदनी द्वारा डॉ.कमल की
कृति लै-परेङ का हिंदी अनुवाद पुष्पमाला के नाम से प्रकाशित हुआ।1995 में
सिद्धनाथ प्रसाद द्वारा अनूदित तथा प्रो. देवराज द्वारा संपादित नवजागरणकालीन
मणिपुरी कविताएँ प्रकाश में आईं। इन संग्रहों की विशेषता यह है कि इनमें
संकलित कविताओं में प्रमुखतः मातृभूमि और मातृ भाषा प्रेम और उसकी उन्नति के लिए
चिंता के साथ सामाजिक तथा धार्मिक रूढ़ियों का विरोध, प्रगतिशीलता, देशप्रेम,
समानता और भाइचारा प्रमुख रूप से दिखाई देता है। जननेता इरावत द्वारा 1942- 43 के
दौरान जेल में रचित कविताएँ ईमागी पूजा शीर्षक से सन्1987 में प्रकाशित हुई। इसी
का हिंदी अनुवाद 1998 में माँ की आराधना शीर्षक से प्रकासित हुई। सन् 2000 में
लनचेनबा मीतै की रचनाएँ जित देखूँ तथा तुझे नहीं खेया नाव और मेमचओबी की अन्द्रो
की आग युवा कविता आन्दोलन की महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं। मणिपुर में उग्रवाद की समस्या
से उत्पन्न स्थिति और आम जनता पर उसके प्रभाव और प्रतिक्रिया को इन कविताओं में
व्यक्तिगत अनुभूति के आधार पर व्यक्त किया गया है।
सन् 1960 के बाद भारत में मोह भंग की जो स्थिति उत्पन्न हुई और उसके परिणास्वरूप साहित्य की जो प्रवृत्तियाँ उभर कर आईं उसी तरह मणिपुरी काव्य की प्रवृत्ति में भी बदलाव देखा जा सकता है, जिसने दो नए काव्यान्दोलन क्रुद्ध कविता आन्दोलन और युवा कविता आन्दोलन की शुरुआत कर दी। इन कविताओं में युवा पीढ़ि की मनोदशा को बखूबी दिखाया गया है। आधुनिक मणिपुरी कविता के महत्वपूर्ण कवि लाइश्रम समरेन्द्र के काव्य संग्रह दो भागों में - कुछ कहूँ पतंग और कथा एक गाँव की- 2003 में प्रकाशित हुआ
कविता के बाद मणिपुरी कहानियों का अनुवाद सर्वाधिक रूप से हुआ है। युग का
परिवेश तथा आम लोगों की समस्याओं को कहानियों ने व्यापक रूप से आवाज दी है। आधुनिक
युग में बेरोजगारी, विकास का अभाव और उग्रवाद की समस्या के बीच जीवन व्यापार के
लिए मजबूर आम लोगों को कहानीकारों ने विषय-वस्तु के रूप में चुना है। ऐसी अनेक
मणिपुरी कहानियों का हिंदी अनुवाद पत्र-पत्रिकाओं में भी छपती रहीं हैं परंतु
संग्रह रूप में प्रकाशित निम्नांकित पुस्तकों का उल्लेख किया जा सकता है-
1.
आधुनिक मणिपुरी कहानियाँ
(विभिन्न कहानीकार),अनु – सापम तोम्बा सिंह,1991, मणिपुर हिंदी अकादमी, तेरा सापम
लैरक, इम्फाल-795001, मणिपुर।
2.
प्रतिनिधि मणिपुरी कहानियाँ
(विभिन्न कहानीकार)- अनु- इबोहल सिंह काङजम, सं- देवराज,1994 वाणी प्रकाशन, नई
दिल्ली।
3.
भारतीय शिखर कथा कोश(
मणिपुरी कहानियाँ)-एकाधिक अनुवादक-सं- कमलेश्वर, पुस्तकायन प्रकाशन 1997 नई
दिल्ली।
4.
पर्वत के पार (जामिनी
देवी), अनु-ई. विजय लक्ष्मी,2005, रायप्रवीणा ब्रदर्स तेरा बाजार इम्फाल, मणिपुर
5.
धरती (विभिन्न कहानीकार)
अनु- ई. विजय लक्ष्मी, 2008,परिलेख प्रकाशन नजीबाबाद(उ.प्र)
6.
क्षितिज(विभिन्न कहानीकार)
अनु- ई. विजय लक्ष्मी,2012 यश पब्लिकेशंस, नई दिल्ली
7. प्रतिशोध (ई. सोनामणि) अनु- ई. विजय लक्ष्मी 2019 यश पब्लिकेशंस, नई दिल्ली
इन कहानियों के अलावा मणिपुरी उपन्यास भी हिंदी
पाठकों को उपलब्ध हो चुके हैं-
1. माधवी (डॉ.लमाबम कमल) अनु-निशान निङतम्बा, चिङाम्बम
निशान प्र. 1978 क्वाकैथेल इम्फाल मणिपुर
2. इम्फाल और उसकी आबोहवा (पाचा मीतै) अनु-युमनाम
इबोतोम्बी, दशुमती देवी प्रकाशन1989 थाङमैबंद इम्फाल, मणिपुर
3. जहेरा(हिजम अङाङहल) अनु- निशान निङतम्बा, नुमितथोइ
प्रकाशन1998 क्वाकैथेल, इम्फाल
4. माँ (राजकुमार शितलजीत) अनु- सिजगुरुमयुम ब्रजेश्वर
शर्मा, कुलचन्द्र शर्मा एण्ड संस पब्लिकेशंस 2000 ब्रह्मपुर नहाबम इम्फाल मणिपुर
नाटक-
1. थम्बालनु (बी.जयंतकुमार शर्मा)
अनु- अरिबम कृष्णमोहन शर्मा, अरिबम रूपा शर्मा और अरिबम रोज़लीन शर्मा प्रकाशन
1994, शगोलबंद मबुधौ मंत्री लैकाइ मणिपुर।
मणिपुर में हिंदी
की स्थिति को मजबूत बनाने में पत्रकारिता की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसका
आरंभ सन् साठ से माना जा सकता है। प्राप्त तथ्यों के आधार पर क्षेत्र में भी हिंदी को सक्रिय ही माना जाना
चाहिए।णणिपुर में हिंदी की स्थिति की
चर्चा अधूरी रह जाएगी यदि इसमें
पत्रकारिता को शामिल न किया जाएगा। उपलब्ध प्रमाण के अनुसार इस क्षेत्र में भी साठ
के दशक में ही प्रयास शुरू हो गया था। आधुनिक (1960), सम्मेलन गजट(1964), नागरिक
पंथ(1972), पूर्वी पाणी(1977), पर्वती वाणी (1977), गाँधीवाद (1979), युमशकैश (1980),
कुन्दोपरेङ(1983), महिप(1985), मणिपुरी महिला समाज (1988), जगदम्बी(1989), चयोल पाउ
(1998) समय -समय पर निकलती रही पर इनमें से अधिकांश का प्रकाशन काल काफी अल्प रहा।
इनमें महिप, चयोल पाउ और युमशकैश ही ऐसी है जो आज भी निकल रही है। इनमें मौलिक
रचनाएँ, समीक्षात्मक लेख आदि साहित्य संबंधी सामग्रियों का प्रकाशन होता है। चयोल
पाउ साप्ताहिक समाचार-पत्र है पर इसमें साहित्यिक सामग्रियों का भी प्रकाशन होता
है।ये तमाम साहित्यिक रचनाएँ आज हिंदी साहित्य का धरोहर है। यहाँ केवल मणिपुर में हिंदी में रचे जा रहे
साहित्य की चर्चा की गई है। जरूरी इस बात की ओर ध्यान
देने की है कि पूर्वोत्तर में रचे जा रहे हिंदी साहित्य को क्या वह स्थान मिल
पाएगा, जिसकी वह अपेक्षा करता है। इस संबंध में मुझे लगता है कि हिंदी समाज को
पूर्वोत्तर साहित्य के प्रति थोड़ी सदाशयता के साथ विचार करने की आवश्यक्ता है।
पूर्वोत्तर के हिंदी साहित्य को भी पाठक मिलने चाहिए और यह तभी संभव है जब
देश-विदेश में हिंदी पढ़ने वाले लोगों को पूर्वोत्तर संबंधी साहित्य की जानकारी
उपलब्ध हो।
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