आजिलामू लोक नाटक (एक परिचय)
अरुणाचल प्रदेश भारत के ‘उत्तर-पूर्व की आठ बहनें’ या ‘अष्टलक्ष्मी’के नाम से जाने वाले राज्यों में से एक है। यह हिमालय की गोद में बसा बहुत ही सुंदर प्रदेश है, जहाँ सत्ताईस प्रमुख जनजातियाँ और सौ से अधिक उप-जनजातियाँ निवास करती हैं। ये जनजातियाँ जैसे न्यीशी, आदी, आपातानी, गालो, इदु, मिजी, खाम्ती, नोकटे, तांगसा, वाङ्ग्चो, शेर्दुक्फेन, मोन्पा, तागिन,पोरिक आदि प्रमुख है।यहाँआदिवासी समुदाय ही वास करती हैं। इन सभी जनजातियों का लोक साहित्य बहुत ही समृद्ध है, जो मौखिक रूप में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होता आया है। ये सभी समुदाय अपने सभी कार्यों को पूर्ण करने के लिएआज भीअपनेइष्ट देवता के अनुष्ठानिक ढंग से आश्रित हैं। यहाँ लोक गीत, लोक कथा, लोक सुभाषित व लोक नृत्य बहुत प्रसिद्ध हैं। प्रत्येक गीतों में लोक कथा को गाया जाता है। इन कथाओं को नृत्य के माध्यम से भी प्रत्येक समाज के विशेष अवसरों पर प्रस्तुत किया जाता है। यहाँ लोक नृत्य बिलकुल लोक शैली में ही प्रस्तुत होती है। यही कारण हैं कि कई लोक विधाएँ एक ही शैली में स्थापित हो गई।
ऐसा माना जाता है कि इस प्रदेश में लोक नाटक
जैसी कोई विधा नहीं है क्योंकि तकरीबन सभी समाजों में लोक नृत्य ही अत्यधिक
प्रस्तुत होती है, जिस कारण प्रत्येक विधा जिसकी प्रस्तुति नृत्य से होती है,
उसे ही लोक नृत्य मान लिया जाता है। परंतु लोक नाटक की प्रकृत में नृत्य-संगीत
प्रधान होता है, जिसकी शुरुआत मनुष्य के विकास के साथ हुई। इस संबंध में जेटी
शिपली बताती हैं कि “लोक नाटक की शुरुआत आदिम प्रांगण संस्कार गीत और नृत्य के
जादू समारोह में हुई।”[i] लोक नाटक के तत्व जो कथावस्तु, पात्र-योजना, देशकाल, रंगोपकरण, प्रस्तुति, भाषा-संवाद व
गीत-संगीत के साथ अभिनय आदि होते हैं। आजिलामू नामक लोक नाटक में भी ये सारे तत्व
पाए जाते हैं। यह नाटक अरुणाचल प्रदेश में प्रस्तुत होता है। यह एक गीत-संगीत व
नृत्य अभिनय पर आधारित नाटक है, जिसे प्रदेश में लोक नृत्य की बहुलता के चलते लोक
नृत्य की संज्ञा से ही पूरे प्रदेश में परिचित है, जबकि लोक नाट्य
तत्वों से युक्त है। इसी के समान ही कर्नाटक के यक्षगान, हरियाणा का स्वांग, असम की भावना व
बंगाल की जात्रा आदि की प्रस्तुति की किए जाते हैं,जो विश्व में प्रसिद्ध है।
आजिलामू लोक नाटक अरुणाचल प्रदेश के मोन्पा व
शेर्दुक्फेन जनजाति में ही प्रस्तुत किया जाता है। ये लोग बौद्ध धर्म के महायान
शाखा के अनुयायी हैं। ये दो जनजातियाँ प्रदेश के प्रत्येक कोने में वास करती है।
परंतु ईस्ट कामेङ के तवांग, बोमडिला, रूपा व कालकतांग
क्षेत्र में ही आजिलामू नाटक की प्रस्तुति होती है। इसकी मंडलीहर छोटे से छोटे
गाँव व कस्बों में मौजूद हैं। इन दोनों समाजों के प्रमुख त्यौहारों में इसकी
प्रस्तुति होती है। परन्तु वाङ, छोकर व तोरग्या उत्सव में आजिलामू की प्रस्तुति
अनिवार्य रूप से की जाती है। खासकर जून के महीने मेंइसकी प्रस्तुति होती है, जब
सभी फसल बो कर किसान खेती से मुक्त हो जाते हैं।इस नाटक की गुरु परंपरा बहुत
समृद्ध है। गुरु मजेगी कहते हैं,“आजिलामू नाटक के लिए गुरुका चयन नाटक के
प्रतिभाशाली अभिनेता का ही होता है। जिसका चुनाव कई गुरु मिलकर करते हैं।”[ii]
मोन्पा व शेर्दुक्फेन जनजाति बौद्ध धर्म के महायान शाखा में आस्था रखते हैं परन्तु
आजिलामू नाटक बौद्ध धर्म के प्रभाव से बिल्कुल स्वतंत्र है। इसका संबंध लोक से है।
आजिलामू नाटक के नाट्य तत्वों पर प्रकाश डालें,
तो इसकी कथावस्तु पौराणिक घटना पर आधारित होती है। जो “नामथर”[iii]
नामक तिब्बती पुस्तक में तिब्बती लिपि में मौजूद है। इसकी कथा अलौकिक है। इसका
विकास इन दोनों ही जनजातियों के प्रारम्भिक काल से मानी जाती है। वैसे तो इसकी
गुरु परंपरा बहुत प्राचीन समय से चली आ रही है परंतु वर्तमान में गुरु परंपरा
19वीं सदी से ज्ञात है। आज इसकी करीब दस पीढ़ी का विवरण प्राप्त होता है।इसकी
कथावस्तुस्वर्ग की खूबसूरत ल्हामू नामक अप्सरा व पृथ्वी के आकर्षक राजकुमार
नोर्जांग के मध्य अति सुंदरप्रेम कथा पर आधारित है। इसमें परिलोक जैसी कथा का पाठ
होता है। यह करीब एक से दो सप्ताह तक चलता है।इस नाटक की खास बात यह है कि इस नाटक
के पात्रों का अभिनय पुरुष ही करते हैं। यहीं पुरुष अभिनेता स्त्री से पुरुष, पुरुष से स्त्री की
भूमिका वेश-भूषा बदलकर करते हैं। वर्तमान में भी आजिलामू के अभिनेता पुरुष ही होते
हैं। इन किरदारों को बदलने के लिए विशेष प्रकार के मुखौटों का प्रयोग किया जाता
है। पात्र-योजना देखें, तो इस नाटक में प्रमुख पाँच पात्र होते हैं। जिसमें न्यापा
(मछुवारा), न्योराक (मछुवारे का मित्र), ल्हामू (नायिका
परी), लुमू (ल्हामू की छोटी बहन) व नोर्जांग (राजकुमार) है। इसके
साथ ही गौण पात्रों की संख्या तेरह से पंद्रह तक होती है। इन पात्रों के चयन पर
गुरु वांगदी कहते हैं, “कोई भी अभिनेता इन प्रमुख पाँच पात्रों को अपनी इच्छा से
नहीं चुन सकता। गुरु की पैनी नज़र से ही अभिनेता को वह भूमिका दी जाती है।”[iv]ये
अभिनेता जीवन भरसमाज में अपने वास्तविक नाम से ज्यादा इन किरदारों के नाम से ही
अधिक पुकारे जाते हैं। आजिलामू नाटक का देशकाल परिलोक कथा पर आधारित है। जो
पौराणिक परिवेश को दर्शाता है। जिसमें पारियों की दुनिया,राजा महाराजाओं का
दरबार व युद्ध जैसी वीर रस के वातावरण को दर्शाया जाता है।
1.
विश्व साहित्य का शब्दकोश: आलोचना, रूप, तकनीक, जेटी शिपली, 2009, पृ: 242


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