उफ़्फ़ ! तुम्हारी ये जुल्फें : रीतामणि वैश्य
जवानी जब सर चढ़ती है तब बच्चों का दिमाग काम नहीं करता और जब अनुभव का भूत सर पर चढ़ता है तब बुजुर्गों का दिमाग नाकाम होता है । जवानी में प्रेमी के पंख लगते हैं और उन नए लगे पंखों को जड़ से उखाड़ने वाले बुजुर्गों की भी कमी नहीं होती।
‘हैप्पी बर्थडे
तू यू.... हैप्पी बर्थडे
तू यू अंजलि’ कहते हुये एक पंद्रह-सोलह साल की
लड़की घर के अंदर पहुँची और कमरे को सजा रही दूसरी एक हमउम्र लड़की के गले लग गयी।
‘थैंक यू माइ
डियर एंजेलिना’ कहकर अंजलि भी उससे लिपट गयी ।
‘यू आर मोस्ट
वेलकम अंजलि ।’
अंजलि ने जन्मदिन की शुभेच्छा ग्रहण करते हुये उसे
सोफ़े पर बैठाया।
‘केक पहुँच गया
क्या?’ दबी आवाज में
एंजेलिना ने पूछा।
‘अभी नहीं। चुप
रहो। सरप्राइज़ देना है सबको।’ अंजलि ने भी
धीरे से कहा।
अंजलि अपना पंद्रहवाँ साल पूरा कर सोलहवें में कदम रख
रही है। दसवीं क्लास में पढ़ रही यह लड़की अत्यंत सुंदर है। लंबा छरहरा शरीर। सलोना
रंग, बड़ी-बड़ी काली आँखें, कानों तक फैली
भौहें आदि से वह यौवन के इस सोलहवें साल में अनूठी बन पड़ी है। उसके सौन्दर्य का मूल केंद्र है उसके घने,लंबे,काले और सीधे
बाल,जो देखते ही
बनते हैं। उसे भी अपनी सुंदरता के इस राज का पता है। इसीलिए वह अपने बालों का खास
खयाल रखती है। वह नियमित रूप से बाल धोती है, उन्हें गूँथती
है,खोलती है,सजाती है,सँवारती है और
उन्हें सुंदर बनाए रखने के लिए जरूरी हर एक काम करती है। सुबह नहा-धोकर उसने बालों को नए स्टाइल में बाँधा और तरह-तरह की अदाओं
में फोटो खींचकर फेसबुक और व्हाट्सएप के स्टेटस में लगा दी । मिनटों में ही लाइक
और कमेंट से उसके पोस्ट भर गए ।
अपने जन्मदिन
का जश्न मनाने के लिए अंजलि बैठकखाना सजा रही है। जन्मदिन
मनाने के लिए उसकी नानी भी आ गयी थी। इसबार वह बोर्ड की परीक्षा देने वाली है।
दसवीं की लड़की को कितना पढ़ना पड़ता है उसकी नानी को पता है। ऐसे ही क्या उन्होंने
अपने बेटे को कॉलेज का प्रोफेसर बनाया है? बहू एक स्कूल
में टीचर है। पति के जल्दी गुजर जाने के बाद
उन्हें अपने बच्चों को बड़ा करने में तकलीफ हुयी। अकेली औरत के लिए बच्चों
को गढ़ना मज़ाक नहीं होता है। बेटे को तो
उन्होंने खूब पढ़ाया, पर बेटी शिखा
को वे ज्यादा नहीं पढ़ा पायी। जब वह बीए पढ़ रही थी, तभी उसके लिए एक रिश्ता आया, अच्छा रिश्ता। लड़का पी डब्ल्यू डी में काम करता है। सरकारी
नौकरी है। उसे कुछ नहीं चाहिए था, सिवाय लड़की के
। शादी तय करने के दिन लड़का खुद आया था। उसने कहा था-‘माँ जी, शादी के दिन
आपका आँगन और शिखा के सिवा मुझे कुछ नहीं चाहिए।’
लड़का अच्छा था।
जैसी बात वैसा काम। शुभ दिन देखकर शिखा और गौतम की शादी
कराई गयी। शादी के बाद शिखा ने गौतम से कहा-
‘मेरे पढ़ने की ख़्वाहिश अधूरी रह गयी। ’
‘क्या कहना है साफ-साफ कहो न।’ नयी दुल्हन की
तरफ प्यार से देखकर गौतम ने कहा।
‘मुझे पढ़ना है।’
‘तुम्हें पता है एक क्लार्क कितना कमा सकता
है । फिर भी तुम पढ़ना चाहती हो तो मैं मना नहीं करूंगा। पर...
‘पर क्या?’
‘मेरे पैसे बर्बाद तो नहीं होने दोगी न?’
‘बिलकुल नहीं । मैं इतना आपसे कह सकती
हूँ कि जितना आप मुझ पर खर्च करेंगे मैं उससे कुछ अधिक कमाकर दूँगी। ’
‘मैं तुम्हें कमाने के लिए नहीं कह रहा
हूँ। बस मेरे पैसों का सद व्यवहार हों, बस इतना ही।’
‘ठीक है।’
गौतम ने ही
शिखा को पढ़ा-लिखाकर बीए पास
कराया था। जल्दी उसे नौकरी भी मिल गयी।
नानी ने सोचा कि नातिन को परीक्षा की शुभेच्छा देना भी हो
जायेगा और जन्मदिन का आशीर्वाद भी वे देती आएंगी। वह इस साल जी लगाकर पढ़ें और फिर
रिज़ल्ट के समय वे फिर आएंगी। अंजलि ने
अपनी दोस्त से नानी का परिचय करवाया-
‘शी इस माइ ग्रांड मदर। मेरी इकलौती नानी
हैं।’ हँसते हुये
उसने कहा।
‘हाई नानू।’ दाये हाथ की
उँगलियों को हिलाते हुये एंजिलाना मुस्कुराई ।
नानी की असहजता बढ़ गयी। उन्होंने कृत्रिम मुस्कराहट से उसकी
ओर देखा और अंदर चली गईं। जाते-जाते उन्होंने
अंजलि को बुला लिया।
‘यह कैसी लड़की
है?’
‘अच्छी है, मेरी फ्रेंड
है ।’
‘तेरी फ्रेंड ऐसी है? मुझे हाई नानू
कहा। न नमस्कार, न प्रणाम।
चरणस्पर्श तो दूर की बात !’
‘नानी, जमाना बदल गया
है। अब ऐसा ही चलता है।’
कुछ आधे घंटे
बाद दरवाजे की घंटी बजी। अंजलि ने दरवाजा
खोला। रेपोज का एक बड़ा पार्सल आया। एक बड़ा-सा केक और एक
गुलदस्ता। अंजलि ने पार्सल को लेकर
डाइनिंग टेबल पर रखा। फिर धीरे से उसने पैकेट खोला । तीन परतों का एक
केक, ऊपर आइसिंग
किया हुआ था ‘To my LOVE’। केक को देखकर
एंजेलिना बोली-
‘OMG...कितना बड़ा केक!’
‘तू जल रही है?’ अंजलि ने कहा।
‘क्यों नहीं?’
इतने में शिखा
अंदर से आई और केक को देखकर लगभग चिल्ला पड़ी -
‘हाय राम ! यह केक कहाँ से आया? मैं तो केक
बना चुकी थी।’
‘केक कहाँ से
आया छोड़ो। यह बताओ कि केक कैसा है? देखो न कितना
सुंदर , कितना बड़ा! है न?’ अंजलि माँ से बोली।
‘इतना सुंदर और
इतना बड़ा ! क्या मतलब है
इसका? मतलब कितने पैसे उड़ाए? अजी,क्या जरूरत थी....’
‘नहीं, माँ। केक पापा
नहीं लाये।’ अंजलि बोली।
‘तो तू लायी है? कहाँ मिले
इतने पैसे?’
‘मैं भी नहीं
लायी।’
‘तो कहाँ से आया?’
‘मेरे दोस्त ने
भेजा है।’
‘यह दोस्त कौन
है? और यह क्या
लिखा है? To my
Love क्या मतलब है इसका?’
‘वह मुझे प्यार
करता है।’
शिखा के सर पर
मानो आसमान टूट पड़ा। अंजलि की इस घोषणा ने
घर में तहलका मचा दिया।
‘यह मैं क्या
सुन रहा हूँ अंजलि? यह तुम्हारे
लिखने-पढ़ने का समय
है। अपना कैरियर बनाओ।’ गौतम की इस बात पर अंजलि
चुप रही। इस बार माँ बोली-
‘मुझे पता था कि
यह लड़की जरूर कुछ गुल खिलाएगी। अरे, तुझे हमने
क्या नहीं दिया, तेरे लिए क्या
नहीं किया? तूने हमारी
नाक कटवा दी। हमारी इज्जत को तू सरे आम नीलाम करने पर तुली है.....’
इसी बीच दरवाजे की घंटी बजी। अंजलि के मामा मामी आए हैं।
आते ही मामी ने उसे गले से लगाकर जन्मदिन की शुभेच्छा दी। मामा ने तोहफे का एक
पैकेट उसके हाथों में थमा दिया। सबको
गंभीर देखकर मामा ने कहा-
‘क्या हुआ भाई?जन्मदिन के दिन
सब इतने गुमसुम क्यों?’
मामा के इस सवाल के
उत्तर में कोई कुछ कहता उससे पहले ही फिर से दरवाजे की घंटी बजी। अंजलि दरवाजा
खोलने गयी। दरवाजे के खोलते ही एक सत्रह-अठारह साल का
लड़का अंदर दाखिल हुआ। उसके हाथों में एक डिब्बा था। लड़के का कद लंबा और शरीर पतला
था। उसके बाल लंबे थे। उसने एक काली टी शर्ट और टर्न जींस पहनी थी। जींस जगह-जगह इतनी फटी हुयी थी कि उसके पैरों के काफी हिस्से दिखाई
दे रहे थे। बदन के यहाँ-वहाँ टैटू किया
हुआ था। हाथों में कंगन और कानों में टॉप पहने था। वह कुछ चबा रहा था, जिसकी तीखी बू
ने पूरे कमरे को अपने कब्जे में कर लिया था। उसे देखकर अंजलि असमंजस में पड़ गयी। बोली-
‘तुम यहाँ?’
‘हाँ बेबी। तुम
परेशान होगी और मैं न आऊँ यह कैसे हो सकता है?क्या हुआ?’ सामने खड़े
लड़के ने कहा।
‘अरे तुम हो कौन? इस तरह अंदर
कैसे आ गए?’ मामा ने पूछा।
‘तुमने बताया
नहीं।’ अंजलि की तरफ
देखकर लड़के ने कहा। ‘अच्छा मैं ही बता
देता हूँ। मैं टोनी हूँ, अंजलि का बॉयफ्रेंड।?’
‘टोनी, तुमने जो केक
भेजा है, उसी को लेकर
हंगामा हो रहा है।’ इस बार अंजलि
बोली।
‘अंजलि , यह बोल क्या
रहा है?’ इस बार माँ ने
पूछा ।
‘हाँ, यह सच है। मैं
भी टोनी से प्यार करती हूँ।’ अंजलि बोली।
अंजलि के इस अप्रत्याशित जवाब से सब हक्केबक्के रह
गए। कोई कुछ कहता उससे पहले टोनी ने कहा-
‘आंटी, प्लीज अंजलि को कुछ मत कहिएगा। हम दोनों एक दूसरे से बहुत
प्यार करते हैं।’
टोनी ने अपने
डिब्बे को अंजलि के हाथों में थमाते हुये कहा-‘उफ़्फ़ ! तुम्हारी ये जुल्फें! ये जुल्फें
मुझे बहुत पसंद हैं। यह हेयर केयर बॉक्स है। इसमें शैम्पू कंडीशनर, सीरम सब हैं।
सॉरी, मैं इतनी
हड़बड़ी में था कि गिफ्ट पेक कर न सका ।’
टोनी ने सबके सामने अंजलि
के बालों को सूंघा और फिर उन्हें चूम लिया और ‘बाय’ कहता हुआ वह
फिल्मी अंदाज में तेजी से कमरे से बाहर निकल गया। टोनी के पीछे-पीछे एंजेलिना भी चल पड़ी। टोनी तो चला गया, जाते-जाते मानो शिखा के मन में लगी आग में घी डाल गया। उसने
अंजलि के बालों को
जकड़ लिया और उसके गाल पर एक जोरदार थप्पड़ जड़ दिया। वह अंजलि को घसीटकर अंदर के
कमरे में ले गयी। वह रोने लगी- ‘ माँ, मत मारो, दर्द हो रहा
है। माँ, बाल छोड़ दो।
ये टूट जाएँगे। मेरा सर फटा जा रहा है।’
यह सब इतनी
जल्दी हुआ कि बाकी लोगों को क्या करें क्या न करें सोचने का मौका ही न मिला।
मामा-मामी, नानी, पापा सब शिखा
के चंगुल से अंजलि को बचाने में लग गए और
कुछ समय बाद यह संभव हो पाया। अंजलि ज़ोर-जोर से रो रही थी। शिखा की मुट्ठियों में अंजलि के कुछ बाल
रह गए। उसने अपने उखड़े हुये बाल देखे तो चिल्लाते हुये माँ से पूछा- ‘ अरे, तुमने ऐसा
क्यों किया? क्यों मेरे
बालों को नोच डाला?’
माहौल बिगड़
चुका था। अंजलि ज़ोर-ज़ोर से रो रही
थी और शिखा ज़ोर-ज़ोर से गालियाँ
दे रही थी। कुछ समय तक बाकी सब मंत्रपूत मूर्तियों की तरह मौन दर्शक बन देख-सुन रहे थे।
अंजलि की मामी ने अंजलि को अपने कमरे में ले जाकर प्यार से पूछा-‘ अंजलि, क्या है यह?’
‘आज कल सबके
बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड होते हैं।’
‘अच्छा।’
कुछ समय की
चुप्पी के बाद मामी फिर से बोली-
‘ठीक है तुम्हें टोनी से प्यार है। पर
टोनी कौन है, क्या करता है?’
‘उसके बारे में
मैं ज्यादा नहीं जानती।’
‘जिंदगी
तुम्हारी है, आज के बाद कल
तुम बालिग हो जाओगी। जो मन में आए तुम कर सकोगी। पर इस पर ध्यान रखना कि तुम किनके
साथ दोस्ती कर रही हो। दोस्त जीवन की अनमोल संपदा होते हैं। अच्छे दोस्तों के साथ
रहने से अच्छा होता है,खराब दोस्त
बर्बाद कर छोड़ता है।’
‘मेरे दोस्त ही
तो हैं कि जिनके आगे मैं सब कुछ बोल सकती हूँ, अपने को खोल
सकती हूँ। पापा का समय ही नहीं मेरे लिए। काम काम और काम । अगर कभी समय मिल भी गया, अपनी मर्जी से तो कुछ कर ही नहीं सकते। हर एक बात पर माँ की
रजामंदी लेनी पड़ती है। और माँ! बचपन से अब तक मेरे लिए फुर्सत नहीं निकाल सकी। केवल खाना
खिलाने के लिए माँ और जरूरत की चीजें देने के लिए पापा होते हैं क्या?’
‘यह कब से चल
रहा है?’ मामी अंजलि की
बातों पर कुछ न बोलते हुये मूल मुद्दे पर आई।
‘परसो ही मैंने
टोनी से येस कहा है।’
‘क्या है उसमें
कि वह तुम्हें अच्छा लगा?’
‘वह मेरी हर एक
बात सुनता है, मानता है।’
‘परसो तुमने येस
कहा और आज तुमने उसे घर बुला लिया?’
‘मैंने उसे नहीं
बुलाया। बस एक मेसेज किया था कि उसके भेजे हुये केक को लेकर घर में हंगामा मच गया
है। मुझे यह नहीं पता था कि वह घर आ जाएगा और.... ’
‘उसने तो ठीक
नहीं किया। माँ का गुस्सा आना जायज है न !’ मामी ने
अंजलि के मन में माँ के प्रति उठ रहे
विद्वेष की भावना को कम करने की कोशिश की।
‘माँ को गुस्सा
करने के सिवा कुछ आता भी है क्या? माँ ने हमेशा
से कहा कि क्या नहीं करना चाहिए । पर उसकी न करने की लंबी लिस्ट में यह कभी शामिल
नहीं हुआ कि लड़के से ऐसे मिलना गलत है। उसने कभी नहीं सिखाया कि क्या करना है। कभी
कुछ बताती या पूछती हूँ तो बोलती है ‘ चुप रह बेशरम’।’
‘ठीक है,माँ को
तुम्हारी हर बात पर नाराज नहीं होना चाहिए । पर आज जो कुछ भी हुआ क्या वह सही है?’
‘नहीं।’ धीमी आवाज में
अंजलि बोली।
‘तो?’
‘वही तो मामी।
गलती हो गयी।’
‘कोई बात नहीं।
गलती तो इंसान से होती ही रहती है। बस समय रहते गलती समझ जाने से सुधारने का अवसर
मिलता है। जिंदगी में हर दिन छोटी-बड़ी घटनाएँ
होती रहती हैं। उनसे हमें सीख लेनी चाहिए। जो अच्छा हैं, उनको लेना है, जो खराब हैं, उन्हें छोड़ना
है। क्या तुम टोनी से मिलना, बात करना छोड़
सकोगी?’
‘हाँ, मामी। छोड़
दूँगी। आज ही से मैं उसे भूलने की कोशिश करूंगी।...पर मामी मेरे बाल किस बेरहमी से माँ ने उखाड़ दिये देखिये न।
हाय मेरे बाल....’ अंजलि सिसकने
लगी।
मामी ने
अंजलि के सर को देखा । कुछ बाल टूट चुके
थे। वह बोली-
‘सर इधर-उधर सूज गया है,लाल हो गया है।
रुको थोड़ा-सा आइस लगा
देती हूँ।’ वह आइस लेने खड़ी हुयी। इतने में अंजलि बोली-
‘आइस लगाने से
क्या होता है मामी?’
‘आइस लगाने से
जलन कम होता है,दर्द मिट जाता
है।’
‘रहने दीजिये ।
आइस तो बाहरी इलाज ही करेगा न !’
अंजलि मामी के गले से लगकर रोने लगी। मामी ने उसे
सहारा दिया। उसने अंजलि का माथा चूमते
हुये बिस्तर पर लिटा दिया। उसने अंजलि का
सर सहलाते हुये कहा-
‘तुम अच्छी
बच्ची हो। मैं जानती हूँ तुम बड़ों की बात जरूर मानोगी। मैं भैया और भाभी से बात
करूंगी। अभी तुम थोड़ा आराम करो। जितना रोने का मन करे रो लेना। रोने से मन हल्का
होता है। शाम होने को आई। अब हम चलेंगे। अच्छी तरह से खाना और पढ़ना। अपना खयाल
रखना।’
बैठकखाने में
सब गंभीर मुद्रा में बैठे थे। वे बातें कम और चिंतन अधिक कर रहे
थे। बैठक में प्रवेश करते हुये मामी बोली- ‘दीदी और जीजा जी, अंजलि अभी नादान है। उम्र में वह बड़ी हो रही है, पर उसका मन
छोटे बच्चे की तरह ही है । वह आप सबके प्यार के लिए तरस रही है। इस फूल सी बच्ची
को सावधानी से संभालिए। उसके साथ कठोर
होने से उसके किशोर मन में विद्रोह घर कर जाएगा । उसे कुछ मत कहिए। उसे थोड़ा समय
दीजिये । सब ठीक हो जाएगा।’
जन्मदिन का केक
फेंक दिया जा चुका था। खाना खाने का किसी का मन नहीं रहा। फिर भी मामी ने सबके लिए
खाना परोसा,पर खाया किसी ने नहीं। जाते-जाते नानी
अंजलि के कमरे में गयी। वह दीवार की तरफ
मुड़कर लेटी हुयी थी। तभी उसका सिसकना कम नहीं हुआ। वह अपने सिर को सहला रही थी।
उसे नानी के कमरे में दाखिल होने की खबर नहीं थी। नानी धीरे से जाकर उसकी पीठ की
ओर बिस्तर पर बैठ गयी। अंजलि ने मुड़कर देखा कि भीगी
आँखों से नानी उसे देख रही है। वह नानी की छाती में समा गयी और छोटी बच्ची की तरह
फुट-फुटकर रोने लगी। नानी उसे पुचकारती रही,पर बोली कुछ
नहीं। आँखों के सामने तेजी से घटी अनाकांक्षित घटनाओं को उन्होंने निगल लिया था, उन्हें वे
पगुरा रही थीं। बेटे के बुलाने पर वह एक गंभीर मन के साथ अंजलि को वैसे छोड़ घर के लिए निकल पड़ी।
शिखा को मानो
इसी का इंतजार था। उनके जाते ही वह अंजलि के कमरे में गयी। वह
बोली,
‘तैयार हो जा ।चल मेरे साथ। ’
‘कहाँ?’
‘जहाँ मैं ले
जाऊँ।’
अजली कुछ समझ
नहीं पायी। शिखा उसका हाथ पकड़ कर एक प्रकार से उसे खींचने लगी। कुछ अनहोनी की शंका
से वह बोली-
‘मुझे कहाँ ले
जा रही हो? मुझे अभी कहीं
नहीं जाना।’
शिखा अंजलि को
बरामदा तक ले आई। बाहर गाड़ी खड़ी थी। ड्राइवर ने गाड़ी स्टार्ट कर दी। शिखा ने
घसीटते हुये गाड़ी की पीछे वाली सीट पर उसे धकेल
दिया और खुद भी उसके पास बैठ गयी। ड्राइवर ने कहा-
‘मैडम, पिन नंबर
दीजिये।’
‘5769’
गाड़ी चल पड़ी। ड्राईवर सामने के आईने में पीछे वाली सीट की
घटना देख रहा था। पर रिवर्स मिरर में दृश्य उल्टे दिखाई पड़ते हैं। घटना के चाक्षुस
दर्शन की आकांक्षा से वह बार-बार पीछे की ओर
मुड़ रहा था। कुछ दूर चलने के बाद गाड़ी चौराहे के मार्केट के ब्यूटी पार्लर के सामने खड़ी हो गई।
‘मैडम, 155 रुपये हुये।’
शिखा ने तुरंत
पैसे निकालकर उसे दिये और उसे उसी मुद्रा में पकड़कर पार्लर तक खींच लायी। शरम के
मारे अंजलि ने अपने दुपट्टा से सर और मुँह ढँक लिए। वह बोलती रही- ‘क्या कर रही हो
प्लीज माँ ? सब लोग देख
रहे हैं.......’
पार्लर पहुँचकर शिखा ने एक हाथ से दरवाजा खोला और दूसरे हाथ
के पंजे से अंजलि को मुक्त करते हुये कहा-
‘इसे गंजा कर दीजिये।’
अंजलि चौक पड़ी।
ब्यूटीशियन ने भी हैरानी जताते हुये कहा-
‘यह आप क्या कह रही है?
‘हाँ, मैं ठीक कह
रही हूँ। इसे गंजा कर दीजिये।’
‘पर यह तो रो
रही है। ’
‘इसे पूछने की
जरूरत नहीं है।’
‘मैं कस्टमर की मर्जी
के खिलाफ काम नहीं करती।’
‘यह बहुत बदमाश
हो गयी है।’
‘तो?
‘ इसके बाल सब मुसीबतों की जड़ हैं।
इन्हें साफ कर देने से न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी।’
‘देखिये, आपको भी ऐसा
नहीं करना चाहिए।’
‘यह हमारा घरेलू
मामला है। आप दखलंदाजी न करें।’
‘माफ कीजिएगा। मामला अगर घर का है तो घर
में ही क्यों नहीं निपटाती? क्यों अपनी
बेटी को सरे आम बाजार में बेइज्जत कर रही हैं? क्यों आप मुझ
पर दवाब डाल रही हैं? आप खुद इसके
बाल क्यों साफ नहीं कर देती? मैं यहाँ
लड़कियों का श्रृंगार करती हूँ। उन्हें सजाती हूँ, सँवारती हूँ,सुंदर बनाती
हूँ । पार्लर में किसी को कुरूप नहीं बनाया जाता। ’ ब्यूटीशियन की बातों में मानो अंजलि को डूबते को तिनके का
सहारा मिला। उसने सर उठाकर उसकी तरफ देखा। एक पैंतीस-चालीस साल की
महिला। उम्र उसकी माँ के
बराबर की ही होगी। चेहरा शांत, स्थिर और
गंभीर। वह उसके पैरों से लिपट गयी और ‘आंटी आंटी’ कहकर रोने
लगी। ब्यूटीशियन ने अपने हाथ अंजलि के
माथे पर रख दिये।
‘मैं आपसे अपॉइंटमेंट लेकर आई हूँ। शुरू
हो जाइए।’शिखा ने फिर
कहा।
‘आपने मुझे बाल कटवाने के लिए अपॉइंटमेंट
लिया था, गाँजा करने
लिए नहीं। अपनी बेटी के साथ आप क्यों ऐसा कर रही है?’
शिखा के अहं को
चोट पहुँची। वह क्रोध की जिस तेजी से अंजलि का सर मुंडवाने के लिए लायी थी, उसमें बाधा
पहुँची। कुछ क्षणों के लिए ही सही अंजलि
को किसी का आसरा मिला, अंजलि के सामने उसकी उपेक्षा हुयी, यह उससे सहा
नहीं गया। उसने कहा-
‘अरे, अब टीचर को
नाइन से पाठ पढ़ना होगा !’
‘आप टीचर हैं?’
‘क्या मतलब?’
‘कुछ नहीं।’
‘मैंने इसे जन्म
दिया है,मैं इसकी माँ
हूँ। मैं जो चाहे इसके साथ कर सकती हूँ।’
‘सच है कि बच्ची
को आपने जन्म दिया है। इसे खिलाया है, पिलाया है।
इसीलिए आप इसकी जिंदगी की मालकिन है, आप इस पर अपनी
मनमानी कर सकती है। पर आपको यह गलतफहमी है कि आप इस बच्ची की माँ है। दरअसल में आप
किसी की माँ नहीं हो सकती। माँ ममता का सागर होती है। बच्चे को दुखी देखकर कलेजा
फट जाता है उसका। आपके सामने तो सूखे चट्टान भी शरमा जाये। यह मेरा पार्लर है, यहाँ मैं जो
चाहती हूँ, वही होगा।’
‘मैं जो चाहूंगी, वही होगा।’ ब्यूटीशियन की
ओर देखकर चुनौती के स्वर में शिखा बोली। वह फिर से अंजलि के हाथ पकड़कर उसे घसीटने
लगी। अंजलि ने ब्यूटीशियन के पैर पकड़ लिये और ‘आंटी बचाइए,बचाइए आंटी’ कहकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।
पार्लर के
सामने कई लोग इकट्ठे हो गए थे। उनमें सामने के सैलून का नाई भी था लोगों को बाहर
से कुछ दिखाई तो नहीं दे रहा था, पर अंदर के एक-एक शब्द उन्हें सुनाई दे रहे थे। शिखा और अंजलि के बाहर निकलते ही
नाई ने कहा-
‘मैडम, मेरे सैलून में आइये। मैं अभी आपका काम कर देता हूँ।’
शिखा ने देखा
कि बाहर एक भीड़ जम गयी है। उस माहौल से पराजित होकर उसे लौटना गँवारा नहीं हुआ।
उसने सामने के सैलून की तरफ अपने कदम बढ़ाए। अंजलि
के रोने की आवाज बढ़ने लगी-
‘प्लीज माँ ऐसा
मत करो। मुझे गंजा मत करो। मैं आपकी हर एक बात मानूँगी। माँ...माँ...’ कहकर उसने अपने पैर जमा लिए। शिखा की पूरी ताकत भी उसे अब
हिला नहीं पा रही थी।
‘यह लड़की ऐसे
नहीं मानेगी।’ स्वगत उक्ति
के बाद शिखा ने नाई की तरफ देखते हुये मदद मांगी- ‘क्या कर रहा है? इसे ले चल
अपने सैलून। ’
नाई ने
अंजलि को ज़ोर से पकड़ लिया और लगभग गोद में
उठाकर सैलून के अंदर ले गया। उसने उसे कुर्सी पर बैठाने की कोशिश की ,पर अंजलि को बैठा न सका तो उसे जमीन पर बैठा दिया। नाई ने कहा- ‘छोटू, उस्तुरा ला और
शुरू हो जा।’ एक बारह-तेरह साल का लड़का उस्तुरा लेकर अंजलि के सामने खड़ा हो गया। अंजलि सर हिलाने लगी तो
नाई ने सर को ज़ोर से पकड़ लिया। नाई की जकड़ में वह इस तरफ फँस गयी कि उसके लिए
हिलना डुलना मुश्किल हो गया। उसका सर स्थिर हो चुका था। छोटू ने पहली बार अंजलि के
सर पर उस्तुरा चलाया तो उसके कुछ बाल उसकी आँखों के सामने फैल गए। तब अंजलि ने
अपना शरीर शिथिल कर दिया। पंछी पिंजरे में पूरी तरफ कैद हो चुका था। अब पंख
फड़फड़ाने से क्या फायदा ! वह शांत हो
गयी।
कुछ बीस मिनिट
के बाद अंजलि के सुंदर बाल उससे अलग हो
चुके थे। चैन की साँस लेते हुये शिखा ने नाई से कहा- ‘कितना दूँ बोल।’
‘पचास रुपये
दीजिये।’
शिखा ने सौ रुपये का एक नोट उसकी ओर बढ़ाया और वह वहाँ से
चलने लगी। अब अंजलि को पकड़ने या जकड़ने की
जरूरत नहीं थी। वह शांत हो चुकी थी। वह शिखा के पीछे-पीछे चलने लगी।
बाहर गौतम भी खड़ा था। बेटी की इस हालत को देखकर उसे बहुत बुरा लगा। चौराहे के सारे
लोग अंजलि को इस नए रूप में पाकर ताक रहे थे। पापा ने दुपट्टा से उसका सर
ढँक दिया । अंजलि को न अपनी इज्जत का
ध्यान रहा, न शरीर का और
न ही कपड़ों का । दुपट्टे को आसरा न मिलने से वह खिसक कर जमीन पर गिर गयी। उसे
समेटकर पापा पीछे-पीछे आये।
ये सब कर घर
पहुँचते समय शाम के करीब आठ बज चुके थे। अंजलि
से मोबाइल छीना जा चुका था। उसका स्कूल जाना बंद कर दिया गया था। पापा ने
कहा-
‘आज अंजलि का
जन्मदिन था और यह सब हो गया। दिन भर वह भूखी रही। उसे कुछ खिला तो दो।’
‘आपके लाड़ के
कारण ही वह बर्बाद हो चुकी है। अब से आप मेरे और उसके बीच मत आइयेगा। बच्चे को
कैसे रास्ते पर लाया जाता है मैं जानती हूँ।’
‘वह तो आज तुमने
सबको दिखा ही दिया है।’
‘हाँ, यही उसके लिए
ठीक है। कुछ दिन खाना-पीना बंद कर
दूँगी तो उसकी हेंकड़ी निकल जाएगी।’
‘भली हो या बुरी
अपनी बच्ची है। बदमाश हो गयी तो फेंक तो नहीं पाएंगे न हम?’
गौतम की बात का
शिखा पर कोई असर नहीं हुआ। वह अंदर चली गयी।
अमावस की गहरी रात थी । सब सो चुके थे। अंजलि को नींद नहीं आई थी। बाहर किसी की सीटी बजाने की आवाज आई। कोई उसके घर के सामने टहल रहा था। अंजलि के कान खड़े हो गए। घर का कुत्ता भौंकने लगा। अंजलि के थके तन्तु मानो बिजली गति से सक्रिय हो गए। वह लगभग कूदकर बिस्तर से उठी। खिड़की से बाहर झाँका। नहीं कुछ दिखाई नहीं दिया। उसने धीरे से दरवाजा खोला और बाहर निकल गयी । कुत्ते का भौंकना बंद हो चुका था। घने अंधेरे में वह सहम गयी। वह अपने कमरे की तरफ मुड़ी । हल्की रोशनी में उसकी नजर दरवाजे के ठीक सामने दीवार पर टंगी माँ-पापा की फोटो पर पड़ी। अचानक शिखा के सिर पर दो बड़े-बड़े सींग निकल आए। उसके दाँत लंबे होकर अंजलि की तरफ आने लगे।उसने मदद की गुहार लगाकर पापा की तरफ देखा। लाचार गौतम अपनी जगह पर तटस्थ भाव से मुस्कुराता रहा। अंजलि अंदर से थरथर काँपने लगी। वह तुरंत पलटी और अंधेरे में समा गयी।
रितामोनी वैश्य ने यह कहानी कांगला के लिए लिखी थी लेखिका रितामोनी वैश्य गुवाहाटी विश्वविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर हैं; उनसे +919435116133 पर संपर्क किया जा सकता है
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