मणिपुर की कबुई जनजाति की लोककथाओं में वर्णित लोकविश्वासों का अध्ययन
भूमिका
कबुई मणिपुर की एक प्रमुख जनजाति है। इस जनजाति के लोग
बहुतायत मात्रा में पूर्वोत्तर भारत के
मणिपुर राज्य में स्थित तमेङलोंङ जिले में निवास करते हैं, साथ ही इस जनजाति के
लोग मणिपुर के इम्फाल,सेनापति,विष्णुपुर
इत्यादि जिलों में भी छिटपुट रूप से निवास करते हैं। मणिपुर राज्य के सीमावर्ती
राज्यों जैसे - असम,नागालैंड तथा
पूर्वोत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में भी इस जनजाति के लोगों का निवास स्थान है।
नागालैंड राज्य में कोहिमा, दिमापुर
तथा ज़लूके में और असम राज्य में कछार से लेकर सिलचर तक इस जनजाति के लोग निवास
करते हैं। इस जनजाति के जादोनंग और रानी गाईदिन्लू जैसे महान विभूतियों ने भारतीय
स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। वर्तमान समय में कबुई जनजाति के लोग स्वयं को
'रोंग'एवं
'मै'जिसका
शाब्दिक अर्थ दक्षिण एवं जन अर्थात दक्षिण जन से संबद्ध करते हैं ।
जब से सृष्टि का निर्माण हुआ है तब से लोककथा का भी जन्म माना
जा सकता है। प्राचीनकाल से ही लोगों में
कथा कहने और सुनने की प्रथा प्रचलित रही है। आदिम युग से ही मानव अपने मनोभावों को
कथा के रूप में अभिव्यक्त करते रहे हैं । लोककथा का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है और
समय के अनुसार लोककथा में भी बदलाव आया है।लोकविश्वास को ऐसा विश्वास होना चाहिए,
जो जन-सामान्य के जीवन को आगे बढ़ाए और उनका कल्याण करे। जिनको जीवन में धारण करने
से जनसामान्य का कल्याण हो ।
बीज
शब्द - लोकमानस,
लोकविश्वास,जिजीविषा,अलौकिक,प्रतीकात्मक,लाङ्दाई,
हार्नबिल
विषय प्रवेश
मणिपुर राज्य की कबुई जनजाति की लोककथाओं में प्रमुख रूप
से निम्नलिखित लोकविश्वास प्रचलित हैं –
1) सृष्टि उत्पत्ति से संबंधित लोकविश्वास
कबुई जनजाति में मनुष्य की उत्पत्ति में
निम्न विश्वास मिलता है। इसके अनुसार भगवान द्वारा मनुष्य के निर्माण के संबंध में
प्रकृति की देवी 'दम्पापुई'को
मनुष्य बनाने की इच्छा प्रकट की तभी प्रकृति की देवी ने मनुष्य की जगह विभिन्न
आकृतियों के जानवरों का निर्माण किया। देवी द्वारा मनुष्य न बना पाने के कारण अंत
में भगवान स्वयं साक्षात रूप में प्रकट हुए और कहा कि मुझे देखकर मनुष्य का
निर्माण करो। ऐसा कबुई जनजाति में लोकविश्वास है कि कबुई भगवान का ही प्रति रूप
हैं। इस तरह प्रकृति की देवी दम्पापुई द्वारा मनुष्य बनाने के पश्चातउसे जीवित
करने के लिए साँस भर दी गई और अभी वह पूरी तरह परिपक्व नहीं था इस कारण उसे एक
गुफा के अंदर डालकर पत्थर से बंद कर दिया गया। ऐसा ही कुछ समय के तकउस पत्थर को कोई
हटा नहीं पाया। तभी भगवान को ही स्वयं बैल का रूप धारण करना पड़ा। इससे हमें मनुष्य
से पहले जानवर का पृथ्वी में रहने का प्रमाण मिलता है। इस तरह बैल द्वारा गुफा के
पत्थर को हटा देने पर मनुष्य निकलकर बाहर आया और वहीं से निकलने वाले मनुष्य ही 'कबुई'नाम
की जनजाति है। इस तरह कबुई जनजाति के रूप में मनुष्य की उत्पत्ति सबसे पहले यहीं से
हुई है, ऐसा कबुई लोगों का विश्वास है।
2) धान की देवी से संबंधित लोकविश्वास
मणिपुर में धान मुख्य फसल है जिससे उत्पन्न चावल यहाँ का प्रमुख खाद्य पदार्थ है। इसलिए यहाँ पर 'धान की देवी'से संबंधित लोकविश्वास मिलता है। एक कथा में वर्णित लोकविश्वास ‘अंरुणा मचिन मपुआ अमसुंग फऊओइबीगी वारी’ के अनुसार- “उस बुढ़िया ने दोनों भाई-बहन को पड़ोस से 'फौरा' (एक प्रकार से धान को फैलाकर सुखाने या साफ करने के लिए बाँस का बना हुआ पात्र) सोने के लिए मंगाती है। रात को जब दोनों भाई-बहन सो जाते हैं तब वह बुढ़िया अपने असली स्वरूप में आ जाती है । वह बुढ़िया एक साधारण स्त्री न होकर (हाईपै मदोल्लू) धान की देवी थी। उस रात बुढ़िया जब भी करवटें बदलती धान के खनकने की आवाज़ें निकलने लगती और सुबह उठकर दोनों भाई-बहन ने धान से भरा हुआ ढेर पाया।”1
तब से प्रत्येक घर की महिलाओं द्वारा खाना बनाते वक्त चावल
रखने के घड़े में कम से कम एक मुट्ठी चावल के दानों को बचाकर रखना अनिवार्य होता है
और यह विश्वास इसलिए है कि घड़े में चावल थोड़ी बहुत बचाकर रखने से और अधिक चावल के
आने की संभावना होती है। इसके विपरीत खाली रखने से इंसान की आशाएँ,
क्षमताएँ,
प्रेरणाएँ
तथा जिजीविषा सब खत्म हो जाती हैं। इसे कबुई भाषा में 'कमलेंगमै
– कमलांगमै’ कहते हैं और दूसरा अर्थ यह है कि किसी भी कार्य की शुरुआत में सफलता
की प्राप्ति न होना तथा कुछ बुरा होने का संकेत देना। ऐसी कबुई जनजाति का
लोकविश्वास है।
3) सर्प से संबंधित लोकविश्वास
लोकमानस में सर्प से संबंधित अनेक लोकविश्वास प्रचलित हैं। मणिपुर में लाइरेन अर्थात अजगर के अलौकिक लोकविश्वासों का वर्णन यहाँ की लोककथाओं में बहुतायत से मिलता है। 'माईपुई-काइताऊ'की कथा के अनुसार कबुई जनजाति यह विश्वास करते हैं कि भगवान और इंसान के मध्य सबसे निकटतम अजगर हैं। अजगर में भगवान के थोड़े गुण पाए जाने के कारण भगवानइसे अपना पुत्र मानते हैं इस तरह 'माईपुई-काइताऊ'की लोककथा में अजगर के माँस को खाने की वजह से श्रापित गाँव वालों का भू-स्खलन में मारे जाने वाली कहानी भी है। इस कथा में केवल विधवा औरत काम में व्यस्त होने की वजह से अजगर की माँस को खाना भूल जाती है और इसी तरह कहानी के अंत में वह अकेली ही बच जाती है। इसलिए कथा का नाम 'विधवा की घाटी'पड़ गया। कबुई जनजाति के लोग आज भी यह विश्वास करते हैं कि 'माईपुई-काइताऊ'के आसपास के क्षेत्र में जितने भी अजगर देखे गए हैं उनके कानों में 'तदिप'या 'नथन'अर्थात बाली पहने हुए अजगर पाए गए हैं और यह अजगर वही गाँव वाले हैं जो आज भी जीवित होकर अजगर के रूप में जी रहे हैं।
4) पक्षी से सम्बंधित
लोकविश्वास
कबुई लोककथाओं में पक्षियों से सम्बन्धित लोकविश्वास भी प्रचलित
है।‘खुरुणा’ नामक कहानी में अपनी सोतेली माँ द्वारा नायक पर अत्यधिक अत्याचार करने
की वजह से (लाङ्दाई अर्थात हार्नबिल) पक्षी विशेष बनने की एक मार्मिक लोककथा है
।इस लोककथा को स्मरण करने पर मनुष्यता की भावना और अधिक प्रबल हो जाती है।कहानी
में सोतेली माँ द्वारा हैवानियत से सलूक करने पर नायक ‘खुरुणा’ पक्षी बनने को
मजबूर हो जाता है। इस तरह कहानी के माध्यम से यह व्यक्त किया गया है कि मनुष्य को
एक-दूसरे के प्रति प्रेम की भावना हमेशा बनाए रखनी चाहिए न कि उसे बुरा-बर्ताव
करके उसके जीवन को नरक बना देना देना चाहिए । ऐसी ही लोककथा का संदेश है और कबुई
समाज में इस लोककथा से सम्बन्धित लोकविश्वास देखने को मिलता है कि‘खुरुणा’ नायक
द्वारा पक्षी बनने के बावजूद भी अपने प्रेम को व्यक्त करते है। उदाहरण के तौर पर –उत्सव
के नजदीक आने पर खुरुणा अपने अन्य पक्षियों के संग आकाश में उड़ता हुआ प्रतीत होता
है। नीचे धरती पर युवक-युवतियाँ उत्सव कीतैयारी में ‘जऊ’ अर्थात चावल की शराब
बनाने की प्रक्रिया में जुट रहे थे। तभी आकाश में खुरूणाअपना एक पंख उखाड़कर नीचे धरती
की ओर गिराता है और वह पंख उसकी प्रेमिका के मूसल के ठीक ऊपर लटक जाता है।आज भी
कबुई समाज में कोई भी त्यौहार के नजदीक आने पर युवक-युवतियाँ शराब बनाने की तैयारी
करते समय खुरूणा की याद में ओखली के मूसल के ऊपरी भाग में पक्षी(लाङ्दाई,हार्नबिल)
का एककृत्रिम पंख लगा देने की परंपरा है और दूसरी ओर यह इसका संकेत है कि आज भी
पक्षी बने हुए इंसान को सब प्रेम करते हैं और साथ भी उसके द्वारा गिराए गए पंख को सम्मान देते हुए
विशेष अवसरों पर उसे भी प्रयोग में लाते हैं।
5) प्रेम से संबंधित लोकविश्वास
प्रेम एक शाश्वत सत्य है जो सृष्टि की उत्पत्ति के साथ
सर्वत्र विद्यमान रहता है। प्रेम मनुष्य के लिए ईश्वरीय वरदान है जो उसे आपस में
मिल-जुलकर रहना सिखाता है। कबुई समाज में प्रचलित एक लोककथा के अनुसार - 'गैरेम्नांग'और
'गुईरेम्नै'दो
प्रेमी थे। दोनों एक दूसरे से बेहद प्रेम करते थे परंतु दोनों जीवन में कभी एक
नहीं हो पाए। इस प्रेम कथा में ऐसी घटना घटी जो बहुत ही दर्दनाक है। बुरे इंसान और
उनकी जलन की भावना की वजह से दोनों मिल नहीं पाए। कहानी के अनुसार प्रेमी ने अपनी
प्रेमिका से वादा किया था कि मैं जब तक वापस लौट कर न आऊं तुम इस कंगन को मेरे
प्राण-प्रतीक मानकर संभालकर रखना। अगर इस कंगन का मुँह खुल गया तो समझ लेना कि मैं
इस दुनिया में नहीं रहा। गुइरेम्नांग नामक लड़का दोनों के प्रेम से जलता था। वह गुईरेम्नै
को चाहता था। उसने गुइरेम्नांग के जाने के
पश्चात मौके का फायदा उठाते हुए चुपके से कंगन के मुँह को खोल दिया और गुईरेम्नै से
कहा कि तुम्हारे प्रेमी की मौत हो गई है। यह कहकर उसके साथ धोखे से शादी कर ली। इस
कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि इंसान को कभी धोखा नहीं देना चाहिए और दूसरा
विश्वास यह है कि प्रतीकात्मक रूप से प्रिय की जीने की दशा उसका जीवन सुरक्षित है
या कष्टमय है, यह समझने का प्रयास हर प्रेमी या पति-पत्नी को करना चाहिए। आस्था के प्रतीक हमें जीने का संबल प्रदान करते
हैं।
कबुई समाज में विभिन्न प्रकार के लोक विश्वास या लोक मान्यताएँ
हैं जो प्राचीन काल से चलती आ रही हैं। उनमें से कुछ लोक विश्वासों की चर्चा यहाँ
करेंगे -
(¡) 'फाकदान
जाउमै'यह विशेष रूप से यौवनावस्था में
प्राप्त लड़कियों से संबंधित है। इसमें यह देखने का प्रयास किया जाता है कि उन्हें
उनका इच्छित जीवन साथी या प्रेमी मिलेगा कि नहीं। इसकी भविष्यवाणी'फाग'नामक
पत्ते को पाड़कर की जाती है। इसे फाड़ते वक्त आगे-पीछे के पत्ते बराबर हो जाएँ जैसे
ढाई-ढाई हों, तो दोनों प्रेमियों का मिलना निश्चित मान जाता है और अगर फाड़ते वक्त
बराबर न होजैसे ढाई की जगह तीन हो तो प्रेमी का मिलना नहीं हो पाता।
(¡¡) 'गुदुइ'कबुई
जनजाति में प्रचलित एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस त्यौहार में युवक-युवतियों के
समूह में रस्साकसी की प्रतियोगिता होती है और यह विश्वास है कि अगर युवतियों का
समूह जीतता है तो सालभर खुशहाली होगी और फसलों का उत्पादन भी अधिक होगा और यदि
युवकों का समूह जीतता है तो सालभर लड़ाई-झगड़ा और युद्ध होने का संकेत मिलता है।इस
त्यौहार के दौरान अदरक और मुर्गे का रस बनाकर पीते हैं। यह वैज्ञानिक रूप से भी
बहुत स्वस्थकारी, लाभदायक एवं औषधियुक्त है और इसे पीने से सालभर दस्त आदि रोगों
से मुक्ति पाने का लोकविश्वास कबुई समाज में व्याप्त है।
6) स्वप्न से संबंधित लोकविश्वास - 'संजोलू'की
लोककथा में संजोलू स्वप्न में इतना अधिक विश्वास करती है कि ‘पोंगलिंग’ नामक बैल
को एक सुंदर युवक के रूप में प्रेम करने लगती है। उसकी नज़रों में वह बैल एक सुंदर
युवक के रूप में हैं। एक बार उसके प्रेम स्वरूप बैल को उसके पिता भगवान को भेंट
चढ़ाने के लिएचुन लेते हैं क्योंकि कबुई समाज में भगवान को भेंट चढ़ाते समय घर की
सबसे अच्छी चीज़ को ही चढ़ाए जाने का प्रचलन था, जो आज भी है। पिता की नज़र में
पोंगलिंग ही सारे जानवरों में सबसे सुंदर और ईश्वर को भेट चढ़ाने लायक था। संजोलू बैल
रूपी अपने प्रेमी को पूरी तरह बचाने का प्रयत्न करती है पर उसकी एक नहीं चलती।
अंतत: उसे मार दिया जाता है। इस
कहानी के अंदर हमें इंसान और जानवर के मध्य प्रेम तथा भावनात्मक लगाव देखने को
मिलता है।
कबुई जनजाति में स्वप्न से संबंधित एक पूजा होती है। जिसे 'मंगतत्मै'अर्थात
स्वप्न की दुनिया में जाना कहते हैं। इसमें पुजारी सोने से पहले बीमार व्यक्ति का
नाम लेकर भगवान को भेंट के रूप में मुर्गे तथा 'जउ'दारू
आदि चढ़ाते हैं और उसी तरह पुजारी भगवान के समक्ष स्वप्न लोक में पहुँचकर उस बीमार
व्यक्ति के बारे में प्रश्न करते हैं कि वह क्यों बीमार है,
कैसे
और किस कारण से तथा इसे कैसे ठीक किया जा सकता है। इस तरह स्वप्न लोक में अगर
बीमार व्यक्ति ठीक होते हुए दिखाई दे और उसे उसके घर तक पहुँचा दिया जाए, तो उसके
ठीक होने का संकेत मिलता है और यदि स्वप्नलोक में उस व्यक्ति की आत्मा को नहीं छीन
पाते हैं, तो कुछ बुरा होने का संकेत मिलता है और ऐसा विश्वास है कि उस व्यक्ति की
मृत्यु निश्चित होती है। ऐसे ही पुजारी द्वारा जितने भी स्वप्न देखेजाते हैं उन्हें
बीमार परिवार के सदस्यों को सूचित कर दिया जाता है। इस तरह कबुई समाज में ‘जीवित
दुनिया'और 'स्वप्न
दुनिया'दोनों में साम्य होने का
लोकविश्वास पाया जाता है और आजतक यह सत्य सिद्ध होता रहा है।
निष्कर्ष
निष्कर्ष रूप से कह सकते हैं कि आज के आधुनिक समाज में भी
कबुई जनजाति में व्याप्त कई ऐसे लोकविश्वासों का प्रचलन मिलता है,जो उसकी आदिम
मनोभावना को अभिव्यक्त करते हैं।साथ ही समाज के लोगों के जीवन को सुखप्रद एवं
कल्याणकारी भविष्य की ओर अग्रसर करना इन लोकविश्वासों क मूल उद्देश्य होता है।
संदर्भ सूची
1. जैलेंगरोंग वारी सिंबूल, मरुलुंग रेमेई, प्रताप प्रिंटर्स वाक्स, पाऊना बाजार , इम्फाल ,द्वितीय संस्करण 1996,पृ- 96.
2. मणिपुरी लोक-साहित्य, संपादक –ह.सुवदनीदेवी,केन्द्रीय हिंदी संस्थान, 282005 प्रथम संस्करण-2007
3. स्वयं संग्रहित लोककथा ‘माईपुई-काइताऊ’, स्त्रोत –गैजइपुथाइमेई, दिनांक – 10.8.2017, संग्रहकर्ता – लुजिकलू पानमेई
4. स्वयं संग्रहित लोककथा ‘खुरूणा’, स्त्रोत – गैजइपु थाइमेई, दिनांक – 12.11.2017, संग्रहकर्ता –लुजिकलू पानमेई
5. स्वयं संग्रहित लोककथा ‘गैरेम्नांग' और 'गुईरेम्नै’, स्त्रोत – गैजइपु थाइमेई, दिनांक – 12.11.2017, संग्रहकर्ता –लुजिकलू पानमेई
6. स्वयं संग्रहित लोककथा 'संजोलू' स्त्रोत –गैजइपु थाइमेई, दिनांक–12.11.2017, संग्रहकर्ता –लुजिकलू पानमेई
यह लेख लुजिकलू पानमेई द्वारा kangla.in के लिए लिखा गया है। शोधार्थी, हिंदी विभाग मणिपुर विश्वविद्यालय, काँचीपुर, इम्फाल–795003


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