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Hello, I am Thanil

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चिट्ठी वाला चिड़ा- खुन्द्राकपम ब्रजचाँद अनुवाद – थोकचोम मोनिका देवी


(चौथा अंक )
 

चिड़ा : प्रेम का संदेश लेकर आया हूँ |

         प्रेम की आग में जलती किसी की

आसूँ भरी कथा लाया हूँ

पैसे की खबर लाया हूँ |

कानों में सजे फूलों की कहानी भी लाया हूँ |

शादी की खबर भी |

          दे रहा सबको खबर |

 चारों ओर उड़कर |

(चिड़ा चारों ओर उड़ रहा है, खेल रहा है| एक शिकारी बाहर आता है| जिसके हाथ में तीर कमान है | ज़ोर-ज़ोर से हँसता है| चिड़ा की ओर इशारा करता है | चिड़ा डर के मारे काँप रहा है | )


शिकारी : हा हा........हा हा| (चिड़ा काँप रहा है | रोने लगता है | ) मत भाग ...ओई मत भाग | यह तीर देख तेरे दिल के आर-पार करूँगा |


चिड़ा : मुझे मत मारो | मैं बहुत जरूरी काम के लिए निकला हूँ | मैं चिट्ठी वाला चिड़ा हूँ | आँसूओं की कहानी लाया हूँ , किसी के मन की हजारों शिकायतें पहुँचाने आया हूँ| लाखों भूखे पेट की शिकायतें सुनाने आया हूँ |


शिकारी : मत सुनाओ | कोई काम की नहीं है | उल्टा तुम्हें पत्थर खाने पड़ेंगे| उसके कान नहीं ही, आँखें नहीं हैं | उसको न सुनाई देगा न कुछ दिखाई | उससे अच्छा है अपनी दाँई टांग मेरे भूखे बेटे के लिए देते जाओ |

चिड़ा : नहीं नहीं | मुझे मत मारो | मैं बहुत जरूरी खबर लेकर आया हूँ |

शिकारी : चुप रह | यहाँ किसी की भी खबर जरुरी नहीं है | सब फालतू हैं | काम अगर नहीं भी हुआ तो किसी को कोई फरक नहीं पड़ने वाला | मखौल करना क्या जरूरी होता है ? मैं तुम्हें मारने वाला हूँ .........मैं तुम्हें मारूँगा |


(तीर से निशाना साधता है | तभी चाचाजी बाहर आते हैं |)


चाचाजी : रुको बहादुर, रुको योद्धा | मन को शांत करो, उसे मत मारो | टूटे दिलों की शिकायतें हैं, जो यह ले जा रहा है | उसको वहाँ तक पहुँचने दो | मत मारो उसे, मत मारो |


शिकारी : नहीं सुनना चाचाजी | शिकायत शिकायत | क्या होगा शिकायतों से ? मेरा बेटा भूखा है | मुझे इसे मारना है |

चाचाजी : रुको बहादुर, रुको योद्धा | मत चलाओ अपना नुकीला तीर |

शिकारी : हा हा ........|

( हँसता है, तीर चलाता है | चिड़ा को लग जाता है |)

चाचाजी : अरे शैतान | जानवर | क्या तुममें थोड़ी सी भी दया नाम की चीज नहीं है ?


शिकारी : मैंने जो किया है, यही दया है | जिन लोगों ने शिकायत की है, उनकी जान बचाई है | उन सभी भूखे पेट से पूछो – अभी कुछ और दिन घास खाकर गुजारा करना ठीक है या डंडा खाना ठीक है| डंडा खाने से अच्छा घास खाना नहीं है क्या ? मैंने उन लोगों की जान बचाई है |

( चाचाजी चिड़ा के पास जाते हैं | प्यार से उसपर हाथ फेरते हैं |)

चिड़ा : (कराहते हुए )

हे दयालु, मुझे नहीं लगता कि में जिन्दा रह पाउँगा | मरने से पहले आपसे एक बात कहना चाहता हूँ |

चाचाजी : बोलो, बोलो जो कहना चाहते हो, बोलो |


चिड़ा : आप यह चिट्ठी पहुँचा देना | यह नम्बुल नदी के पास वाले आँसुओं की शिकायत है – गए दिनों में कानों पर सजने वाले फूल की कहानी है | और यह उस कमजोर बूढ़े के पसीने की शिकायत है – अपने प्रिय बेटे के लिए प्रेम है | यह सभी मोहल्ले वालों की तरफ से राजा को शिकायत है | राजा ने उनके साथ धोखा किया है। न खाने को चावल दिए है और बताते हैं कि न लिखने के लिए कागज दिए है | हे दयालु आप यह सब पहुँचा देना, मैं जा रहा हूँ |

(चिड़ा सारी चिट्ठियाँ देकर मर जाता है |)

चाचाजी : चलो मेरे साथ चिट्ठी देने चलते हैं |

शिकारी : मुझे नहीं जाना | क्या काम है इन चिट्ठियों का ?


चाचाजी : यह चिट्ठी बताएगी कानों पर सजे फूल की कहानी, आँसुओं की कहानी | उसको बताएगी मोहल्ले वालों की शिकायतें  |


शिकारी : बताएगी ! आप बातएँगे, उसे बताएँगे ? जो जानकर भी अनजान बना है उसको इससे सब पता चल जाए | ऐसा कभी होगा ही नहीं |

चाचाजी : तुम्हें नहीं जाना तो मत जाओ | मैं जाऊँगा देने |

(चाचाजी चिट्ठियाँ लेकर चलने लगते हैं |)

शिकारी : रुको |

(रोकता है | पकड़कर वापस ले आता है |)

अरे पागल बुड्ढे इतनी क्या जल्दी है ! बेवकूफ हो उसके ऊपर सब्र नाम की कोई चीज ही नहीं है। क्या होगा आपका ? अच्छा पहले यह तो बताओ इन चिट्ठियों से होगा क्या ?


चाचाजी : चिट्ठियाँ उसको मिलेंगी | उन दिनों की तरह वो नम्बुल नदी के किनारे जाएगा | उसके इंतजार में खड़ी उसके बिखरे बालों को वह सहलाएगा | अपनी बाहों में उसको भरेगा| अगली चिट्ठी राजा के पास जाएगी | मोहल्ले वालों की शिकायतों से वह डर के मारे कांपने लगेगा | फिर वो गावँ में पहुँचेगा | सस्ते दामों में कागज बेचेगा | गली का ख़राब बल्ब को बदलेगा | फिर वह ये भी करेगा वो भी करेगा | उसके बाद वह.......|

शिकारी : छोड़ो छोड़ो | मेरे कान पक रहे हैं |

चाचाजी : अच्छा तुम बताओ तुम क्या कहते हो ?

शिकारी : चिट्ठियों को फाड़ दो| कोई फ़ायदा नहीं है | अच्छा चलो चिट्ठी मिल भी गई, तो क्या होने वाला है – मैं बताता हूँ ध्यान से देखो |

(एक चिट्ठी उठाकर पढ़ता है )

टू श्री प्रेमकुमार खुमनचा, असिस्टेंट इंजिनियर पी. डब्ल्यु.डी. कॉलोनी, जिरिबाम – चिड़ा जीरी पहुँच गया है | नम्बुल के किनारे के लिए प्यार की चिट्ठी पी. डब्ल्यु. दी कॉलोनी क्वाटर न. 7 पहुँच गई है | फिर........डोंग...डोंग..डोंग....| आपके लिए पेश है नाटक – “प्रेम की आग” | जगह : जिरिबाम | समय : लाङबन महीने का एक दिन, दोपहर के ठीक १२ बजे | नाटक का लेखक, निर्देशक, गीत, मेक-अप वेक-अप – सब मैं| देखने वाला – चाचाजी “प्रेम की आग”|

(एक युवक चिट्ठी पढ़ रहा है | एक औरत आती है | खिड़की दरवाजे बंद करती है | युवक के पास आती है |)

औरत : (गला साफ़ करती है )

तुम तो कह रहे थे, तुम्हारा किसी के साथ सम्बन्ध नहीं है |

युवक : हाँ नहीं है, क्यों ?

औरत : नहीं है...अच्छा नहीं है ? फिर यह सब क्या है ? कहाँ से आई यह चिट्ठी ? कौन है इङेलई ?

युवक : कौन है ? कौन है इङेलई ?


औरत : सच सच बताइए | नम्बुल नदी किनारे की इङेलई कौन है ? कानों पर लगे फूल की कहानी, कौन सी कहानी है ? तुम्हारा उसके साथ क्या सम्बन्ध है ?


युवक : जो तुम सोच रही, हो मै भी वही सोच रहा हूँ | मुझे भी समझ नहीं आ रहा | कौन इङेलई, मैं भी नहीं जनता | इङेलई नाम का कोई फूल इस पृथ्वी पर खिलता ही नहीं, उगता ही नहीं, लगता ही नहीं |

(इङेलई धीरे से बाहर आती है | दरवाजे से चुपचाप देखती है | रोती है |)

तुम्हारे अलावा किसी लड़की को कभी देखा नहीं है, न कभी पहचान हुई है | लईरिक......मन की शिकायत....मन होता क्या है ? क्या चीज है ? किससे बनता है ? लोहे का या प्लास्टिक का ? और कानों के फूल क्या होता है ? हमम..........मुझे समझ नहीं आता...नहीं आता | कुछ नहीं पता.....नहीं पता |

(चिट्ठी फाड़ता है )

मैं यही जानता हूँ कि पिताजी कछार गए हैं और तुम घर वापस नहीं जा रही, यहीं रात बिताने वाली हो |

(दोनों अन्दर चले जाते हैं |)

इङेलई : प्रेम की आग लगी हुई है मन में | मैं जहर खाऊँगी | सुनो मोहल्ले वालों मैं जहर खा रही हूँ | (इङेलई जहर खा लेती है | मर जाती है | सफ़ेद कपड़े से उसके मृत शारीर को ढका जाता है | दो लोग उसके मृत शारीर को बाहर ले जाते हैं, गाना गाते हुए |)

गीत

इङेलई............... इङेलई

नम्बुल नदी के किनारे रहने वाली इङेलई

शादी के दिन

श्राद्ध हुआ इङेलई का |

शिकारी : कैसा है नाटक चाचाजी ?


चाचाजी : बहुत खूब बेटा | नई पीढ़ी का थिएटर है | फिर भी रेअलिस्टिक नहीं था | लेखक के विचार शुरू में थोड़े अस्त व्यस्त थे लेकिन अंत में शांति प्राप्त हुई | इङेलई की अभिनेता ने बड़ा सुन्दर अभिनय किया है | फिर भी कहीं कहीं मेलोड्रामा जैसा लग रहा था | प्रेमकुमार का रोल करने वाले हमारे पी.के. लूवाङचा ने बहुत मन लगाकर अपना काम किया है, भविष्य में बहुत आशा रखने वाले कलाकार हैं |


शिकारी : चाचाजी यह सत्य कथा पर आधारित है | नाटक में बदलने के लिए कुछ कुछ बदला है मैंने | क्या देखने लायक नहीं है ?

चाचाजी : मैंने कब कहा देखने लायक नहीं है ?


शिकारी : वहीँ तो चाचाजी, चिट्ठी मिलते ही जो हुआ था वही है | उस युवक को पता ही नहीं कि वो कब नम्बुल नदी के किनारे पिकनिक गया था | उसे यह तक नहीं पता कि नम्बुल नदी नाम की कोई नदी भी है | उन समय की कानों के फूल की कहानी चिट्ठी सुना आई | चिट्ठी फाड़ दी गई, फिर जो इतने दिनों से इंतजार कर रही थी मर गई | अगर चिट्ठी नहीं दी गई होती तो शायद वो जिन्दा होती | मन जल भी गया होता फिर भी उसकी बाहें तो मजबूत हैं, मजबूत थी इसलिए शायद अब तक नम्बुल नदी में मछली पकड़ रही होती | लम्बे समय तक जिन्दा रहती | इस मोहल्ले के कम से कम दो किलो मछली तो उसके जिम्मे होती | क्या चिट्ठी नहीं पहुँचाना ज्यादा ठीक नहीं है ?


चाचाजी : अच्छा अपना अगला शो दिखाओ | और सुनो तुम नाटकारों की आदत कुछ भी मत लिख देना |

शिकारी : अगला शो अगली चिठ्ठी.........

(एक चिट्ठी लेकर पढ़ता है |)

टू कुल्ल गोरैया | बेवफ़ा फैशन कोर्नर, प्रेमनगर – मोरेह | माँ के इलाज के लिए दो हजार रुपए भेजने को कहा है | चिट्ठी मोरेह के कुल्ल गोरैया को प्राप्त होती है | आगे देखिए क्या होता है |

चाचाजी :  कितनी रील की है, ज्यादा लम्बा मत दिखाना | आजकल की फिल्में बड़ी उबाऊ

   होती है।

शिकारी : सत्रह रील, सबसे छोटी वाली है | रिजल्ट थोड़ी साफ नहीं है | जिस कैमरा से हमारी

         माँ का झूठन फिल्म शूट हुआ था, वही कैमरा है | देखिए – ड्रेंग...ड्रेंग

( दिख रहा है – कुल्ल गोरैया शराब की एक बोतल और एक चिट्ठी पकड़े अनिमेष खड़ा है | शिकारी बैकग्राउंड से चिल्लाता है |)

एस.के. फिल्म प्रसेंट्स – “पिता का आज्ञाकारी कुल्ल गोरैया” | एक दिन आधी रात के दो बजे, १६ तारीख को कुल्ल गोरैया १६ हजार लिए मोरेह पहुँचता है | तीन दिनों तक पिता से झगड़ा कर समझा कर मिले थे १६ हजार | सोचा था कोई कारोबार करेगा, जिंदगी सवारेगा | अब तो दूसरों के और १६ हजार ब्याज हैं | पिता के १६ हजार तो जिंदगी सवारने में ही लग गए | कौन सी जिंदगी – समय पर एक नियम के अधीन चलने वाली जिंदगी | नियमित रूप से उठने और डूबने वाली जिंदगी | अब शराब को ही ले लो, रोज़ नियमित रूप से सुबह आधी बोटल | दोपहर के बाद दूसरी आधी मिलती है | और रात को नियमित रूप से तीन पाव की एक बोटल पीता है | एक दिन मोरेह में चिट्ठी वाला चिड़ा आया | पिता की चिट्ठी कुल्ल को दे दी | फिर.......

कुल्ल : (चिट्ठी पढ़कर )


चैलेंज चैलेंज, मैं कुल्लचन्द्र मङाङ हूँ | क्या कोई पंगा ले सकता है मुझसे | किसका पिता – मेरे कोई पिता नहीं है | अगर माँ के साथ तुम्हारी मुलाकात नहीं होती, तो क्या मैं भी राजमहल में जन्मा नहीं होता ? मैंने तुमसे १६ हजार लिए क्या इसलिए पंगा ले रहे हो | अबे बुड्ढे, बता तुझे कितने किलो १०० रुपए चाहिए | दे सकता हूँ बता रहा हूँ | मैं कुल्ल गोरैया | बहुत कर सकता हूँ मैं, सुन लो | मैं किसी से नहीं डरता, मेरा कोई घर नहीं है | पिता नहीं है, माँ नहीं है | चलेंजे चैलेंज कौन है बाहर आओ |

         ( कुल्ल ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगता है | )


चाचाजी : बेटा, बेटा बंद करो | स्पीकर फट जाएगा | बंद करो, बोला न बंद करो |

शिकारी : अच्छा बंद करता हूँ, बंद करता हूँ |

 ( कुल्ल मायूस सा अन्दर चला जाता है |) कैसा रहा चाचाजी ?

चाचाजी : तुम्हारा यह करेक्टर कुछ अति लगता है | उसके शब्द कुछ ज्यादा ही कठोर है | वो उसके पिता हैं |

शिकारी : चाचाजी आप नहीं जानते | मोरेह का जो कुल्ल गोरैया है | वो यही है| देखा अपने पिता की चिट्ठी मिलते ही उसने क्या क्या कहा ? दिखाऊँ क्या और ?


चाचाजी : बहुत हुआ.....बहुत हुआ, बस | अब आगे क्या होने वाला है मुझे सब पता चल गया |


शिकारी : आगे तो सब एक्शन है | फुल एक्शन देखकर पिता बेहोश हो जाएंगे और फिर कभी नहीं उठेंगे | यहीं है चाचाजी, चिट्ठी की वजह से जो कुछ भी घटित हुआ था | अब बताओ चिट्ठी पहुँचाये ? बूढ़े को मारना चाहते हो क्या ?


चाचाजी : मैंने ऐसा तो नहीं कहा कि पहुँचाना जरूरी है | अब अगले का क्या हुआ ?

(शिकारी अगली चिठ्ठी पढ़ता है |)


शिकारी : अब यह चिट्ठी मोहल्ले वालों की तरफ से राजा को की गई शिकायत है |


चाचाजी : वो वाली चिट्ठी तो पहुँचानी जरूरी है | मोहल्ले की बात है, बहुत जरूरी, राज्य का मामला है |


शिकारी : कल के भविष्य का हाथ तोड़ना चाहते हैं क्या ? घास खाने दीजिए क्या होता है, डंडा खाने से तो वही अच्छा है |


चाचाजी : जो कहना चाहिए था, वही तो कहा | डंडे को मात देने वाले बहुत हैं |


शिकारी : कहने लायक कोई बात नहीं है | डंडे को मात देने वाला कोई नहीं है, राजा को हराने वाला कोई नहीं है | क्या कहा है ?

( चिट्ठी पढ़ता है – हँसता है |)

रास्ता बनाओ, खाना दो यही न | अच्छा चलो राजा को चिट्ठी मिल भी गई | पता है फिर क्या होगा ?

चाचाजी : बताओ........|


शिकारी : आप नहीं देख पाओगे | एक बाल्टी खून बहेगा | आँख नहीं खोल पाएँगे आप | अच्छा तो देखिए | मोहल्ले की शिकायत राजा तक पहुँच जाती है | फिर ड्रेंग......ड्रेंग....... पेश है नाटक – “क्रांतिकारी और बंसी बजाने वाला”, अभिनय करने वालों में –

राजा के रूप में.........नौकर | क्रांतिकारी के रूप में......झगड़ालू |

पेश है – “क्रांतिकारी और बंसी बजाने वाला”

(राजा और उसके कुछ दास बाहर आते हैं | राजा चिट्ठी पढ़ता है |)


राजा : मोहल्ले वाले बहुत शोर मचा रहे हैं | शोर से हवा ख़राब होती है | शांति भंग होती है | बहुत लोग शिकायत में बहुत चिल्ला रहे हैं | सच में तो जो कुछ भी हो रहा है इसको मानने की कोई वजह नहीं है और नहीं मानने की भी कोई वजह नहीं है | फिर भी किसी को भी शिकायत में चिल्लाने की इजाजत नहीं है | जिसने चिट्ठी लिखी है उसे बाहर लाओ |

(कुछ दास बाहर चले जाते हैं – इबोहल को हाथ बाँधकर लाया जाता है |)

अबे....कहाँ के रहने वाले हो ?


इबोहल : जहाँ केव, पानी नहीं, राल कंगाली है। रास्ता नहीं, बिजली, नहीं मैं वहीँ से हूँ |


राजा : अच्छा तो तू तो वहीँ से है, जहाँ हमेशा थाबल होता है | जहाँ हमेशा लाई हराओबा होता है, बहुत सारे एसोसिएशन हैं, बहुत सारे क्लब वाला मोहल्ला है न| चिट्ठी तूने लिखी है?

इबोहल : यह हजारों मोहल्लों की कहानी है |

राजा : मैंने पूछा चिट्ठी किसने लिखी ?

इबोहल : मोहल्ले में पढ़ा-लिखा, सुन्दर लिखने वाला अगर किसी को ढूढें तो वो मैं हूँ |

राजा : तेरे इन सुन्दर हाथों को अगर काट दिया जाए तो क्या होगा ?


इबोहल : मत काटो मुझे अपने हाथों से बहुत से काम करने हैं | एक दो लोगों का गला घोंटना है|


राजा : तुझे क्या काम इन हाथों से ? तेरे पास बोलने के लिए, झगड़े के लिए मुह है न | तेरे लिए हाथों का कोई काम नहीं | तेरे लिए सिर्फ बक-बक करने वाली तेरी जुबान और कभी न भरने वाला तेरा पेट, काफी है | अच्छा मैंने सुना तू चिल्ला रहा था कि तुझे शिकायत है, बता क्यों ?


इबोहल : शिकायत है, तभी चिल्ला रहा हूँ कि शिकायत है | मैं तो अब भी बोल रहा हूँ कि शिकायत है, शिकायत है, शिकायत है |


राजा :  अबे ! बोल कोई शिकायत नहीं है |

इबोहल : नहीं बोलूँगा |

राजा :  बोल शिकायत नहीं |

इबोहल : शिकायत है |

राजा :  बोल शिकायत नहीं है |

इबोहल : शिकायत है |


राजा :  बड़ा बुद्धू है रे तू | बोल शिकायत नहीं है, नहीं तो तू जरुर मरेगा | बोल कोई शिकायत नहीं है |

इबोहल : नहीं बोलूँगा | शिकायत है, शिकायत है |

राजा : (अपने दास से )

मार डालो इसे |

( राजा के दास इबोहल को मारते हैं | मारने के साथ साथ उसे कोई शिकायत नहीं है कहने को कहते है | इबोहल थक गया है, कराहने लगता है, रोने लगता है | राजा पास जाकर प्यार से बात करता है |)

राजा : (बहुत प्यार से पुचकारते हुए )

कोई शिकायत नहीं है, बोल दे तो मैं तुझे ठेका दूँगा, ठेका दूँगा |

(यह सुनकर इबोहल के कान खड़े हो जातें हैं | ऊपर देखता है | राजा प्यार से गीत गाने लगता है |)

बोल शिकायत नहीं है, ठेका दूँगा |

आओ, तुझे ठेका दूँगा आओ |

एक बार तो बोल शिकायत नहीं है |

बोल शिकायत नहीं हैं, ठेका दूँगा |

(दास बंसी बजाते हैं |)


इबोहल : वाह ! इतना प्यारा गीत तो कभी जीवन में नहीं सुना | कानों ने  इतनी मीठी आवाज, इतना सोम्य, इतना सुन्दर, इतनी सुरीली आवाज कभी नहीं सुनी | कभी यमुना नदी के किनारे जिसने बंसी बजाई थी – कभी जिसने महाभारत में शंख नाद किया था, तुम अब भी जिन्दा हो ? इतना सुरीला गीत आज पहली बार सुन रहा हूँ |


शिकारी : उस नौजवान ने कभी अपनी जिंदगी में इतना सुरीला गीत, इतना सोम्य, इतने प्यारे शब्द कभी नहीं सुने थे | चूँकि कभी इतनी सुरीली आवाज नहीं सुनी थी इसलिए उसके कानों में खुजलाहट होने लगी | ऐसा लग रहा था जैसे एक मुलायम सा कीड़ा कानों में घुसा जा रहा हो | यमुना नदी के किनारे बंसी की धुन सुनकर बैड़ियों में बंधी स्त्रियाँ, जैसे बेहोश हो गई थीं, उसी तरह वह नौजवान भी बेहोश हो गया |

(गीत गाता है )


इबोहल : प्यारा गीत, सुरीला गीत, तुमने तो मेरे कानों में खुजली कर दी, खुजली कर दी | मन बैचैन हो गया, मैं पसीने से भर गया | मुझसे अब और नहीं होता - और नहीं होता |

       (इबोहल हाथों से अपने दोनों कानों को बंद करके चिल्लाने लगता है |)

शिकारी : इस तरह बेहोशी में गिर कर उस मोहल्ले का नौजवान कभी नहीं उठा |

( राजा और उसके दास उसका मृत शारीर धीरे धीरे अन्दर की ओर खींच लेते हैं | लाइट ऑफ )

( चाचाजी चुप चाप बैठे हैं – दुखी हैं )

शिकारी : चाचाजी, चाचाजी |

(जवाब नहीं देते, शारीर को हिलाता है )

चाचाजी

(चौंकते हैं )

चाचाजी : हुम......

शिकारी : क्या हुआ ?

चाचाजी : नौजवान मर गया न |


शिकारी : उसको तो मरना ही था चाचाजी | बंसी की तेज आवाज से उसके कान फट गए थें |

चाचाजी : वो लड़की और वो बूढ़ा बाप भी |

शिकारी : जी चाचाजी, सब मर गए | तो बताइए पहुँचाए क्या ये चिट्ठियाँ ?

चाचाजी : (भड़ककर ) मैंने कब बोला पहुँचाना जरुरी है ?


शिकारी : नौजवान घास खाकर कुछ और दिन जिन्दा रह सकता है | वो बूढ़ा बाप भी, वो लड़की भी | चिट्ठियों को फाड़ देते हैं, किसी काम की नहीं है|

चाचाजी : चिट्ठियों का एक प्राप्तकर्ता तो होना चाहिए न |


शिकारी : बहुत बक – बक करता है बुड्ढा | चिट्ठियों का कोई प्राप्तकर्ता नहीं है | यहाँ जो लिखे गए हैं सब गलत एड्रेस हैं | उस बूढ़े का कोई बेटा है ही नहीं | उस लड़की का कोई प्रेमी है ही नहीं | मोहल्ले का भी कोई राजा नहीं | चिट्ठी में जो एड्रेस लिखा गया है, सब गलत है |


चाचाजी : रुको तुम भी, चिट्ठियों का कोई प्राप्तकर्ता तो होना ही चाहिए | चिट्ठियों को पढ़ने वाला कोई तो होना चाहिए | वो सबसे बाद में आने वाली गाड़ी में आएगा | ये चिट्ठियाँ देर से आने वाली गाड़ी में आने वाले लड़के की हैं | चिट्ठियाँ उसको देते है |


शिकारी : लेकिन हम तो वापस जा रहे हैं | और उसको तो सबसे बाद वाली गाड़ी में आना है |

चाचाजी : अच्छा तो चिट्ठी यहाँ रखते हैं | एक गड्ढा खोदो |

(चिट्ठी उसमे गाड़ देते हैं | उसके ऊपर एक साइन बोर्ड लगाया जाता है  – उसमे लिखा है – “देर में आने वाली गाड़ी में आने वाले लड़के, ये चिट्ठियाँ तुम्हारी हैं” | दोनों चले जाते हैं |)

 

( अन्दर से आवाज आती है )

देर में आने वाली गाड़ी से आने वाले लड़के, ये चिट्ठियाँ तुम्हारी हैं |

तुम्हारा चिट्ठी वाला चिड़ा |



थोकचोम मोनिका देवी ने खुंद्रकपम ब्रजचंद की एक कहानी द बर्ड विथा लेटर का अनुवाद किया, वह पीएचडी हैं। मणिपुर विश्वविद्यालय के छात्र




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