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इमोइनू की कथा – थोकचोम रेणुका


लाइनीङ्थौ अशीबा ने देवता और मनुष्य को पृथक कर अपना सिंहासन मङाङ् वंश के निङ्थौ अपान्बा को सौंपने का निर्णय लिया। उन्होंने अपनी पत्नी से कहा कि उन्होंने अपनी जादुई अंगूठी अपान्बा निङ्थौ को सौंप दी है, जिसकी उसे पूजा करके सुरक्षित रखनी है। अगर अंगूठी को कोई भी हानि होती है तो मनुष्य जाति पर प्रकोप पड़ेगा। दोनों लाइनीङ्थौ और लाइरेम्बी अपने निर्णय पर विश्वास रखते हैं। तभी कुछ मनुष्य वहाँ दोनों देवताओं से मिलने आ पहुँचते हैं। उनके आने का कारण बताते हुआ कहते है कि उनके अङोम् वंश के राजा(निङ्थौ) की नियुक्ति की जाए। इस बात से खुश होकर लाइनीङ्थौ अपना निर्णय उन्हें सुनते हुए घोषणा करते है कि वह हर एक वंश के लिए एक लाइनीङ्थौ की नियुक्ति करेगा। सभी मनुष्य खुश हो जाते है। मनुष्य उनसे आग्रह करते है कि अङोम् निङ्थौ इबुधौ खाख्पा पूलैलोम्बा के पुत्र अरिबा को नियुक्त किया जाए। साथ ही देवता अरिबा को अर्धांगिनी के रूप में लाइनीङ्थौ की पुत्री  खोंङ्दोम्बी का हाथ दिया जाए। यह बात लाइनीङ्थौ ख़ुशी ख़ुशी मान जाते है

अपान्बा निङ्थौ बड़े परेशान, सुस्त और अस्वस्थ दिखते है। ईपू लाईजाहन्बा समाचार लाते है कि पूरे संसार में उथल-पुथल मची है केवल मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षी भी दुख एवं मृत्यु से पीड़ित है। अपान्बा निङ्थौ समझ जाते है कि लाइनीङ्थौ द्वारा दी गई अंगूठी खो गई है। वह याद करते हुए बताते है, कुछ दिनों से वह सुस्त और अस्वस्थ थे तो वे लिवा नदी में स्नान करने गए थे। तब उन्होंने अपने वस्त्र के साथ अंगूठी निकालकर नजदीक के पत्थर के ऊपर रखी थी। लेकिन जब वह स्नान कर आए तो केवल वस्त्र ही पाया, अंगूठी गायब थी। इस स्थिति का उपाय निकालने हेतु ईपू माइचौ पुरेन से मिलने गए थे। तब पता चलता है कि लाइनीङ्थौ ने अपान्बा निङ्थौ के व्यवहार से क्रोधित होकर संसार में उथल-पुथल हुआ है। इसका निवारण बताते हुए वे कहते हैं कि फिर से पूरी श्रद्धा के साथ उनकी पूजा करे तथा अपने मन के अहंकार को मिटाए। अपान्बा निङ्थौ घोषित करते है कि जो कोई भी उनकी अंगूठी उन्हें वापिस करेगा उससे मनचाहा इनाम दिया जाएगा। अगर कोई युवक अंगूठी ढ़ुढ़ँकर लाएगा उसे आधे राज्य के साथ राजा बनाया जाएगा और अगर कोई युवती ढ़ुढ़ँकर लाती है तो उसे लैमा (राजकुमारी) का पद दिया जाएगा।

दूसरी ओर एक माता चिंतित होकर अपने पुत्र की राह देख रही थी तब अपान्बा निङ्थौ की घोषणा सुनाई पड़ती है। अपने बेटे को आते देख माता राहत की सांस लेती है। बालक माता को एक मरा साँप दिखाते हुए कहता है कि माता आपने खाली हाथ वापस न आने का आदेश दिया था इसलिए मै यह लेकर आया हूँ। खेलते-खेलते वक्त के गुजरने का पता नहीं चला और अँधेरा होने के कारण मैं कुछ नहीं ले पाया। माता बालक की बात सुनकर घबरा जाती है । वह कहती है “पुत्र, तुम्हारे ताऊ जी अङोम् निङ्थौ की मृत्यु के बाद से हमारे लिए कोई सहारा नहीं रहा इसलिए अगर कोई तुम्हारे ताऊ जी के बारे में कुछ कहे तो उल्टा जवाब देकर झगड़ा मत करना, उनकी बातो को सहन कर लौट आना। अब जाओ इस साँप को कही दूर फेंक आओ मै तुम्हारे लिए भोजन बनाती हूँ”। बालक माता की बात मानते हुए साँप को फेंकने की जगह ढ़ुढ़ँता है, अँधेरे में कोई जगह ना मिलने पर घर के छत पर फेंक आता है।

आधी रात में चमकते हुए प्रकाश से माता की नींद खुल जाती है। देखने पर पता चलता है कि वह प्रकाश घर के छत से आ रही थी। माता अपने पुत्र को जगा कर प्रकाश के तरफ चल पड़ती है। बालक को साँप फेंकने की बात याद आती है और माता से कहता है कि यह वही साँप होगा। माता को साँप से प्रकाश निकलने पर शंका होती है। बालक सीढ़ी पर चढ़कर देखता है कि साँप गायब है उसकी जगह एक अंगूठी चमक रही थी। उसे लाकर माता को दिखाता है। माता को अपान्बा निङ्थौ की घोषणा याद आती है और वह समझ जाती है कि अंगूठी अपान्बा निङ्थौ का वही जादुई अंगूठी है। माता अंगूठी को उसके मालिक को दे देने के सुझाव पर बालक प्रश्न करता है कि जादुई अंगूठी को क्यों वापस करे? अंगूठी उनके भाग्य में लिखी है इसलिए उनके पास खुद आई है। लेकिन माता के समझाने पर बालक अंगूठी वापस करने को मान जाता है।

इधर कुछ समय बाद लाइनीङ्थौ अपान्बा निङ्थौ की भक्ति से खुश होकर अपनी अर्धांगिनी इमोइनु से अपान्बा निङ्थौ की सुख सम्पति वापस कर देने का आग्रह करते है, जिस पर इमोइनु मान जाती है। अपान्बा निङ्थौ और ईपू लाईजाहन्बा के कारण मनुष्य एवं पशु पक्षी की स्थिति में सुख शांति लौट आती है। दोनों प्रसन्न होते है और जादुई अंगूठी की चर्चा होती ही है तभी द्वार पर मैले फटे कपड़े पहने माँ-बेटे दिखते है। अन्दर आते ही माता अंगूठी अपान्बा निङ्थौ को दिखाती है जिस पर अपान्बा निङ्थौ की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता। वह प्रसन्न हो कर जो चाहे इनाम माँग लेने को कहते है। वह बालक को आधा राज्य और माता को मनचाहा इनाम देने को राजी था। लेकिन माता कुछ भी लेने को तैयार नहीं थी। अपान्बा निङ्थौ के बार बार आग्रह करने पर माता कुछ देर सोचकर निवेदन करती है कि मणिपुरी महीने वाकचिंङ् के बारहवे दिन में राज्य के हर कोने तथा जगहों पर कोइ आग्नि प्रज्वलित नहीं करें। इस निवेदन को अपान्बा निङ्थौ स्वीकारते है तथा पूरे राज्य में इसकी घोषणा करवाई जाती है।

वाकचिंङ् के बारहवे दिन में पूरे राज्य में कोई अग्नि प्रज्वलित नहीं करता है। जब ईमा इमोइनु भ्रमण के लिए निकलती है तो उन्हें कहीं भी आग नहीं दिखता। सर्दी का समय होने के कारण ठण्ड अधिक थी तभी उनकी नज़र एक छोटी की कुटिया पर जाती है जहाँ आग जल रही थी तथा कुटिया के द्वार के इर्द-गिर्द द्वीप जल रहे थे। ईमा इमोइनु उस कुटिया में अपना वेश बदल कर आती है। वह घर उन माँ बेटे का होता है। माता बेटे को सुलाकर ईमा इमोइनु के इंतजार में बैठी हुई थी। माता को पता था कि इसी दिन ईमा इमोइनु धरती पर आएगी और हर घर में दर्शन देगी। जो घर निर्मल होगा उन्ही के यहाँ सुख संपत्ति का आशीर्वाद देंगी। माता को यह भी मालूम था कि ईमा इमोइनु प्रज्वलित घर में ही प्रवेश करेगी। ईमा इमोइनु वेश बदल कर अंदर आकर आग सेंकने का निवेदन करती है तो माता उन्हें अन्दर बुलाकर बैठने की जगह देती है। बात करते करते माता ईमा इमोइनु से कहती है “मुझे बाहर कुछ काम निपटाने जाना है तब तक क्या आप मेरे सोते पुत्र का ख्याल रखेंगी ? मै जल्दी वापस आऊँगी।”

ईमा इमोइनु जल्दी वापस आने की बात सुनकर मान जाती है। माता बाहर खड़ी हो कर एक बार घर को देख कर अपने पुत्र को अलविदा कहकर आँखों से आँसू बहाते हुए चल पड़ती है। माता  अपने पुत्र को ईमा इमोइनु के हवाले छोड़ उसकी सुख संपन्नता की कामना कर चल देती है। इधर बालक की नींद खुलने पर अपनी माँ को न पाकर वह रो पड़ता है। ईमा इमोइनु बालक को माँ के जल्दी आने का दिलासा देते हुए सहलाती है। लेकिन घंटो बाद भी माता वापस नही आती। ईमा इमोइनु माता को दिए हुए वायदे को तोड़ न सकने के कारण उस बालक का ख्याल रखने का निश्चय करती है। धन धान्य की देवी इमोइनू बालक के साथ रहने लगती है।


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