निर्गुण प्रेम - डॉ. अयिनम इरिङ
निर्गुण प्रेम
एक बार मैंने पूछा था ये निर्गुण क्या है ?
तुमने कहा था निर्गुण प्रेम है ।
जैसे गन्ने में
शक्कर का घुले रहना,
गुलाब की पंखुड़ियों में
खुशबू का महकना,
जैसे किसी मछली का
समन्दर को न देख पाना।
तुम कहते गये और मैं सुनती रही एक शागिर्द की तरह ।
उस क्षण जो उबटन तूने मेरे चेहरे पर मल दिया था,
आज भी दमकता है,
निर्गुण प्रेम की तरह ।
नदी
सदियों पहले की बात है
गांव के किनारे किनारे एक निर्मल नदी बहा करती थी ।
नदी गांव भर को शीतलता देती,
नदी किनारे बैठकर लोग घण्टों आराम करते ।
एक दिन लोग प्रतीक्षा करते रहे, पर नहीं आई नदी ।
कोई कहता
नदी के नीचे बिछी जमीन पर किसी ने छेद कर दिया है ।
कोई कहता
किसी ने जंगल के विशाल पेड़ों को
एक एक कर काट गिरा दिया है
और पानी धरती के किसी तहख़ाने में कैद पड़ा है ।
आज भीषण गर्मी में तपती भू लोगों के तलवें जला रही है ,
और नदी की लाश के ऊपर मछलियों की भी लाशें बिछने लगी हैं ।
डॉ. अयिनम इरिङ
असिस्टेंट प्रोफेसर
हिंदी विभाग
गवर्मेंट मॉडल कॉलेज गेकू
अरुणाचल प्रदेश
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