मणिपुर में दो समुदायों के बीच भड़की हिंसा को
आठवाँ महीना होगया है।सन् 2023
के 3 मई को कुकी बहुल क्षेत्रों में चली रैली
के दौरान हिसां भड़की थी। कहा गया कि भीड़ ने मैतै लोगों को भगाया और उनके घरों को
जलाना शुरू कर दिया था। प्रतिक्रिया में इम्फाल में रह रहे कुछ कुकी लोगों पर भी आक्रमण
हुए। दंगा भड़का और देखते ही देखते यह जंगल में लगी आग की तरह बेकाबू होकर फैलता
चला गया। यही दंगा युद्ध जैसा प्रतीत होने
लगा और इसने मणिपुर को हर तरह से प्रभावित किया। जब दो देशों के बीच युद्ध होता है,
तो दोनों ही पक्षों के लोग अपनी रक्षा और आक्रमण के लिए बंकर बनाते हैं और दोनों
देशों के बीच एक बफर जोन भी होता है, यही स्थिति आज मणिपुर की है। भारत का यह छोटा
सा राज्य जगह-जगह बने बंकरों से भर गया और बफर जोन बना दिया गया। यह बफर जोन दोनों
समुदायों के बीच आयी खाई का परिणाम है और बहुत देर होने से पहले कैसे भी हो पहाड़ी
इलाकों और घाटी के बीच की इस दूरी को पाटना बहुत जरूरी है। ऐसा न होने पर भाइचारे
और सहअस्तित्व के साथ जीवन यापन संभव न होगा। आज अधिकांश व्यापार ठप्प है। रोज
कमाकर खाने वालों की तो हालत और भी बद्तर हो गई है। चीजों की कीमत आसमान छू रही
है। अपराध की संख्या बढ़ रही है। समाज-सांस्कृतिक पक्षों के अलावा इस दंगे ने
मणिपुर के आर्थिक पक्ष को पूरी तरह ध्वस्त किया है। अभी भी स्थिति यह है कि एक
समुदाय के लोग दूसरे समुदाय के क्षेत्रों में प्रवेश करना तो दूर की बात है, उन
क्षेत्रों के निकट जाना भी संभव नहीं है । युद्ध में कौन सही है और कौन गलत! किसका फायदा और
किसका नुकसान ! मैतै-कुकी ही नहीं
वह हर व्यक्ति जो मणिपुर में रह रहा है, प्रभावित है। इस दंगे की चपेट में आए, साठ
हजार से भी अधिक लोग इम्फाल के विभिन्न क्षेत्रों में बने राहत शिविरों में शऱण
लिए हुए हैं। ये ऐसे शरणार्थी हैं जो अपने ही प्रदेश में अपनी जमीन और अपने घर से
वंचित हो गए हैं। इनकी आँखों के सामने ही इनके घरों को नस्तनाबूद कर दिया गया है।
ये अपनी जड़ों से उखड़ने का कष्ट सह रहे हैं। इनमें से कुछ लोग सरकार द्वारा
निर्मित फेब्रिकेटेड घरों में रहने को विवश हैं। घर की सुख-सुविधाओं से वंचित ये
लोग राहत शिविरों में बच्चों के रुदन, लाचार माँओँ और विधवा बहनों की सिसकियों के
साथ सहवास कर रहे हैं। बूढ़ी दादी अपने गाँव की ओर मुँह कर नष्ट हो चुके अपने घर
की याद में विलाप करती है। जल्द ही इनकी आँखों से निरंतर बह रहे आँसुओँ को पोंछेने
की व्यवस्था करनी है। शरणार्थियों के साथ-साथ हर एक देशवासी को उस दिन का बेसब्री
से इंतजार है। कुकी राहत शिविरों की हालात भी कुछ ऐसी ही है।
इस घटना के आठ महीने पूरे हो जाने के
बावजूद स्थिति में खास सुधार नहीं आया है। इम्फाल और उसके आस-पास के क्षेत्रों में
भले ही ऐसा लगे कि शांति आ गई है, लोग सामान्य जीवन जीने लगे हैं, पर
सीमावर्ती इलाकों में आज भी स्थिति सामान्य नहीं हुई है। दुख की बात यह है कि गोलियाँ
अब भी चल रही हैं। गोली के शिकार हो रहे लोग अब भी मर रहे हैं। सुरक्षा बलों की
निगरानी में खेतों में काम हो रहे हैं,पर इन पर भी आक्रमण हो रहे हैं। आज भी
अनिश्चितता और अस्थिरता बरकरार है। ऐसे में पहले की तरह शांति और भाईचारे के साथ
सह-अस्तित्व कहाँ तक संभव है? यह एक जटिल प्रश्न
है। वर्तमान स्थिति की वास्तविकता देखकर यह असंभव सा प्रतीत होता है। अभी तक युद्ध
विराम, प्रेम, सद्भावना और सहअस्तित्व के साथ जीने की बात केवल मैतै की तरफ से ही
कही गई है।कुकी समुदाय की ओर से भी ऐसी पहल की जरूरत है। हाल ही में मणिपुर सरकार
की ओर से पहले की तरह इम्फाल से चुड़ाचाँदपुर के लिए बस सेवा बहाल की गई, पर मंजिल
तक पहुँचने से पहले ही उसे काङपोकपी से वापस लौटा दिया गया।जब तक इस तरह की घटना
होती रहेगी लोग सामान्य जीवन नहीं जी पाएंगे।यह समय आत्मान्वेषण का है, समझदारी से काम
करने का है। इस माहौल से सबसे ज्यादा क्षति दोनों समुदायों की हुई है। पहले की तरह
स्थिति को सामान्य करने के लिए दोनों समुदायों की ओर से सद्भावना आवश्यक है। दोनों
समुदायों के नेता, मइरा पाइबी जैसे विभिन्न
सामाजिक संगठनों के लोग, मणिपुर युवा वर्ग आदि सभी संगठनों को एकजुट होकर एक स्वर
में शांति की स्थापना का ईमानदारी से प्रयास करते जाना है। शांति की बात करनी में
पर्यवसित करना चाहिए। मणिपुर की इस जटिल घड़ी में लोगों में सच्चे मन से शांति की
चाहत, एक-दूसरे के प्रति
प्रेम, विश्वास तथा सदाशयता के साथ क्षमा भावना भी आवश्यक है।अतीत में की गयी गलती
स्वीकार कर, दूसरे की गलती माफ
कर और अपने समुदायों एवं राष्ट्र के कल्याण के लिए भविष्य के मार्ग में कदम से कदम
मिलाकर चलने की संकल्पना करना वर्तमान समय की मांग है । अन्यथा वर्तमान लिखे जा
रहे इतिहास पढ़कर आने वाली पीढ़ियाँ सबको सवालों के घेरे में खड़ा करेंगी और तब सुधरने
का अवसर भी बीत चुका होगा।
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