ads header

Hello, I am Thanil

Hello, I am Thanil

नवीनतम सूचना

चिट्ठी वाला चिड़ा : खुन्द्राकपम ब्रजचान्द

अनुवाद : थोकचोम मोनिका देवी

मणिपुरी साहित्य के प्रख्यात नाटककार खुन्द्राकपम ब्रजचान्द  का जन्म सन् 1952 में इम्फाल के थाडमैबन्द नामक स्थान में हुआ था।  वे केवल पैंतालीस वर्ष जीवित रहे। अपने अल्प जीवन काल में उन्होंने 13 नाटक लिखे  । उनका यह नाटक उनके नाट्य संग्रह "श्री तोम्बा अमसुङ कै" से लिया गया है । प्रस्तुत है- चिट्ठी पूबा उचेक के हिंदी अनुवाद का अंश। 

खुन्द्राकपम ब्रजचान्द

      (पहला अंक)

(पेड़ पर एक चिड़ा बैठा है ।  इङेलै बैठकर रो रही है ।  वह रो-रोकर गाना भी गा रही है।  उसकी सखी उसे चुप करा रही है । )

 

गीत : चिड़ा, चिड़ा ओ चिट्ठी वाला चिड़ा,

अनार की कलियों से इधर एक बार देख तो जरा ।

एक बार देख तो मुझे, उस दिन मेरी खिड़की पर

जो राजकुमार बैठा था, देना उसको यह

उसकी चिट्ठी तुम ही लाए थे, मेरी चिट्ठी उसको देना ।

उससे जवाब भी लेते आना ।

 

(चिड़ा भी रोने लगता है ।  रुमाल से अपने आँसू पोंछता है । )

 

सखी : चुप हो जाओ मत रो,  सुनोगी नहीं ।  इतना प्यार करती है उस शराबी से ।

इङेलै : ‘शराबी’ – मत बोलो उसे शराबी, ‘शराब को पागल बनाने वाला’ बोलो ।  उसी ने शराब को पागल किया था । उससे मिलने के बाद मैं भी पागल हो गई हूँ ।  रोऊँगी।  पागल हो गई हूँ मैं, आज मैं जैसी हूँ– मैं वैसी बन गई थी ।  जिसने कहा कि आएगा वह नहीं आया, जिसने कहा था वो वापस आएगा वापस नहीं आया ।

सखी : जिसने कहा था हँसेगी,वह रो रही है ।  जिसने कहा था शादी होगी, उल्टा उसका श्राद्ध होने वाला है ।

इङेलै : मेरा मजाक मत उड़ाओ ।  मेरा विश्वास करो, जिस दिन उसे चिट्ठी मिलेगी, वह जरूर वापस आएगा ।  ले लिख, मैं बोलती हूँ ।

( सखी एक कागज निकालती है, एक लम्बा सा पंख हाथ में लेती है ।  )

 

इङेलै : मेरे आँसू नहीं थमते ।

( जोर – जोर से रोने लगती है ।  )

 

सखी : ठीक है, बोल लिखती हूँ ।

इङेलै : ब्लेड है क्या सखी ।  अपना दिल थोड़ा सा ब्लेड से काट लेती हूँ ।  उससे जो खून

          निकलेगा उससे लिखना चिट्ठी ।

सखी : नहीं, ऐसा नहीं करेंगे ।  उसके लिए अपना दिल मत काट। दिल उसका है , दर्द भी काफी होगा ।  आँसुओं की कहानी है न, आँसुओं का संदेश है, इससे अच्छा है,  आँसू से लिखते है ।

( बाएँ हाथ में आँसुओं को लेती है ।  दाएँ हाथ से लिखने की तैयारी करती है । )

यह ले, फिर रोना शुरू कर ।  याद कर पिछली बार क्या क्या हुआ था, याद करके देख रोना आता है कि नहीं ।  आँसुओं को बाहर निकाल, उस दिन के प्लास्टिक के तखेलै का फूल याद कर ।  टूरिस्ट लॉज याद कर ।  फुबाला सेन्द्रा याद कर ।  आँसुओं को बाहर निकाल.....हाँ हाँ ऐसे ...हाँ बस काफी है ।

इङेलै : दाएँ तरफ लिख – “मन के प्रिय” ।

सखी : अरे क्या वो सिर्फ मन का प्रिय है ? ..........और तन किसके लिए बचाया ?

इङेलै : अच्छा फिर लिख मन और तन का प्रिय ।

सखी : “आत्मा के प्रिय” कैसा रहेगा ? या “मेरी आत्मा की आत्मा” ?

इङेलै : ऐसा करते हैं “आत्मा के मन” लिखते हैं ।

सखी : उससे अच्छा “मन की आत्मा” ठीक नहीं रहेगा ?

इङेलै : (थोड़ी देर सोचती है ।  अचानक बोल उठती है । )

छोड़...समझ नहीं आ रहा।  शुरुआत को छोड़ जो बोलना है वहीं से लिखना शुरू करते हैं ।

सखी : अच्छा ठीक है – बोलना शुरू करो ।

इङेलै : लिख सखी – नम्बुल नदी के पास वाले गाँव से यह चिट्ठी है ।

क्या आपको मैं याद हूँ , आपने कहा था कि आप वापस आएँगे, फिर क्या हुआ ? प्लास्टिक का वह तखेलै फूल अभी तक नहीं मुरझाया, वैसा ही है ।  क्या आप भूल गए वाकचिङ 1 के उस दिन को .......................।

 

(ज़ोर – ज़ोर से रोने लगती है। )

सखी : हाँ बोल ।  उस दिन जो हुआ था, उसी को लिखते है, ताकि उसे याद आ जाए ।

इङेलै : भूल गए क्या? वाकचिंङ के उस दिन, दोपहर की तेज धूप में नम्बुल नदी के उस पार भुने हुए झींगुर के रंग की एक कार दिखी था । पिकनिक आने वाले उन लोगों में एक प्यारी आँखों वाला था । सुन ‘प्यारी आँखों वाले’ को घुमाकर बड़े अक्षरों में लिखना।  

सखी : इससे अच्छा तो कमल के पत्तों में नाख़ून से काट काटकर लिखना अच्छा था फिर किसी हिरणी को देने के लिए भेज दिया होता ।  जैसे पहले ज़माने में हिरण के चमड़े पहनने वाली और नाख़ून बड़े बड़े रखने वाली करती थीं ।  हाँ बोल फिर क्या हुआ था ।

इङेलै : उस दिन नम्बुल नदी में 7 शादी-शुदा औरतें और एक कुंवारी,  मछली पकड़ रहीं थीं।  उस दिन उस कुंवारी के जाले में एक ङापेम्मा मछली, वह प्यारी आँखों वाला और एक आधी व्हिस्की की बोटल थी।

( फिर ज़ोर – ज़ोर से रोने लगती है ।  )

जब वह दिन याद आता है, मेरा दिल टूट जाता है । सखी, मुझे कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा ।  आँसूओं से भर गया है, आँखें नहीं खुल रहीं । ऐसा लग रहा है, मेरे दिल में आग लग गई है ।  मुझे कुछ हो गया है ................कुछ अजीब हो गया है ।

 

( बेहोश हो जाती है ।  उसकी सखी कपड़े से हवा करती है, पानी छिड़कती है, धीरे-धीरे होश आता है ।  )

 

इङेलै : क्या भूल गए उस दिन को जब हम पहली बार मिलें थे, विराम ।  उस दिन तुमने कोमा ।  मन को मेरे मन को तुम ले गए थे, कोमा ।  हम दोनों की इस नजदीकी को क्या नाम दोगे, कोमा ।  क्यों बदल गए, एक लम्बा सा डेश खींच– बड़े अक्षरों में लिख “दूर हो गए” ।  फिर एक विराम ।  फिर से दो बार विराम खींच सखी ।  फिर निचे लिख – मुझे मत छोड़ना ।  तुम्हारे इंतजार में मैं थक गई हूँ ।  प्रिय मैं तुम्हारे संदेश का इंतजार कर रही हूँ प्रिय ।  कहिए मुझे कब ससुराल लेकर जाएँगे ?

सखी : रुक स्याही ख़त्म हो गई है ।  हाथ में आँसू ख़त्म हो गए हैं ।

( पंख को झारती है, स्याही खत्म होने को दिखाती है । )

           आखरी पंक्ति ही बची है ।  स्याही ख़त्म हो गई है – यह ले थोड़ा और रो ले। सिर्फ दो तीन बूँद और ।  अंतिम पंक्ति ही बाकी है ।

इङेलै : रोना नहीं आ रहा ।  आँसू नहीं निकल रहे ।

सखी :  याद कर ।  कुछ भी याद कर ।  ऐसा कर प्यार के उस चिन्ह को याद कर ।  वही प्यार के चिन्ह व्हिस्की की बोतल को याद कर जो तू अपने तकिए के नीचे रखती है।

( थोड़ी देर रुकती है ।  इङेलै रोने की कोशिश करती है । )

नाटक में रोने का सबसे अच्छा तरीका है ।  आँखें न झपकाना और किसी एक चीज को ध्यान से देख।  बिना आँखें झपकाए साँस रोककर किसी एक चीज को देख ।  उससे भी नहीं हो रहा तो विक्स जानती है न ? उसे आँखों में लगा ले ।  फिर आँसू अपने आप निकलने लगेंगे ।

इङेलै : पता नहीं रोना क्यों नहीं आ रहा, मुझे गुस्सा आ गया तो देखना यहीं पर हाथ पैर पटककर रोने लगूंगी ।

                  

( वह गुस्से से हाथ पैर पटकर रोने लगती है ।  )

 

सखी : ओ हाँ हाँ निकल रहे हैं आँसू, निकल रहे हैं ।

(हाथों में लेती है ।  उसमे पंख को डुबोकर )

हाँ बोल आखरी पंक्ति ।

इङेलै : तुम्हारी प्यारी बातों का इंतज़ार है प्रिय ।  मैं कब ससुराल जाऊँगी? तुम्हारी इङेलै।

( पंक्ति लिखी जाती है ।  सखी चिट्ठी को ठीक से मोड़ती है और इङेलै को देती है ।  )

चिड़ा ओ चिड़ा ।  ओ चिट्ठी वाला चिड़ा ।  भैया यह चिट्ठी जरा दे देना उन्हें ।  जीरी किस तरफ है सखी ?

सखी : पश्चिम की ओर है सखी ।

इङेलै : देखो भैया यहाँ पता लिख दिया है ।  पी. डब्ल्यू. डी कॉलोनी, जीरीबाम, क्वाटर नं.7।

( चिट्ठी चिड़ा को देती है )

 

चिड़ा मैं तुम्हें रास्ता बताती हूँ ।  यह देखो नम्बुल नदी से सीधा उड़ जाना ।  थोड़ा चलकर तुम्हें पूरी तरह भीगी एक औरत नदी के तट से फिसलती दिखाई देगी ।  पीछे मुड़कर मत देखना, कोई पत्थर मार देगा सीधे ही उड़ जाना ।  फिर थोड़ा सा चलकर घर के जैसा दिखने वाला एक पुल दिखेगा, उसके पास एक मूर्ति, एक आदमी दिखेगा जिसे कोई हाथी फैंकने जा रहा होगा ।  उसी के पास खाकी पहनने कुछ लोग मिलेंगे ।  कुछ मत बोलना, दो रुपए दे देना ।  वहाँ से पश्चिम की ओर सीधे उड़ जाना ।  एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी लांघते जाना ।  वहाँ से एक छोटा सा शहर दिखेगा जहाँ खिड़की के पास एक पतला सा युवक बैठा होगा – मेरे बारे में सोच सोचकर खाना- पीना छोड़ने से पतला होने वाला एक युवक मिलेगा ।  टेबल पर ऐश ट्रे, ऐश ट्रे सिग्रेट से भरा मिलेगा ।

चिड़ा : अगर किसी ने पत्थर मारा तो ?

इङेलै : बोलना मैं नम्बुल नदी के पास वाले गावँ से हूँ।  यह चिट्ठी देनी है। दो पके फल खिला देगा ।

( चिट्ठी चिड़ा को देती है )

चल चलते हैं सखी ।

 

( दोनों रोते-रोते चली जाती हैं ।  चिड़ा भी रोता हुआ रह जाता है ।  )

                  

( दूसरा अंक )

 

( अन्दर से किसी के कराहने की आवाज आती है “हाय......हाय...अरे बहुत दर्द हो रहा है ।  हाय....गर्दन टूट गई रे, पूरा तोड़ डाला । ” इबोहल का मुँह टूट गया है ।  किसी ने मुँह पर लात मार दी है ।  एक हाथ से अपना मुह पकड़े हुए है ।  दर्द के मारे रोता है ।  हाय हाय ।  मामाजी हाथ पकड़कर बाहर आते हैं । )

इबोहल : हाय हाय

मामाजी : चुप कर ।  मैंने मना किया था न बार- बार  – मत कर मत कर ।  अपनी शक्ल तो पहले देखी होती ।  मैंने कहा था नहीं होगा तुझसे ।

इबोहल : किस्मत देख रहा था, अपनी किस्मत ।  आदमी हूँ इसलिए मैं भी आजमा रहा था अपनी किस्मत ।

मामा :किसने कहा तू आदमी है ? सुना, क्या हुआ था ।

इबोहल : वह सर-सर ऊपर चढ़ता गया, चढ़ता गया ।  विश्वास नहीं होता वो लड़की जैसे दिखने वाला कैसे चढ़ता गया ? उसके चढ़ने के पीछे का कारण समझ नहीं आता।  मामाजी मैं भी चढ़ सकता था ।  चढ़ना भी चाहिए था ।  आधे रस्ते, मुह में उसने ऐसा लात मारा ।  अरे इतना दर्द हुआ – हाय हाय ।

मामाजी : दिखा... हाँ हाँ हिलना मत

( उसके टेढ़े मुँह को सीधा करते हैं ।  )

 

इबोहल : उसकी खोपड़ी को मैं बन्दुक से उड़ा दूंगा ।  देखता हूँ कितना ऊँचा चढ़ता है ।  नीचे से उतारता हूँ ।  एक बार में आँखों के बीचों बीच गोली नहीं दागी तो मेरा नाम भी इबोहल नहीं । मामाजी मेरा विश्वास कीजिए ।  ऊँचाई में है न , वहाँ से मरती चिड़ा की तरह नीचे उतारता हूँ ।  उसकी खोपड़ी तोड़ डालूँगा ।

मामा : चुप रह इबोहल ।  कुछ दिमाग तो है नहीं और पागलों की तरह चिल्ला रहे हो ।

इबोहल : क्यों मामाजी आप राजी नहीं हैं क्या ?

मामा : कौन राजी है ?

इबोहल : अगर राजी नहीं है तो कहेंगे नहीं राजी हैं ।  राजी नहीं....राजी नहीं......राजी नहीं.....बिलकुल राजी नहीं हूँ ।  कौन रोकेगा ? सुनिए मामाजी वह  राजा बना कैसे ? मैं बिलकुल राजी नहीं हूँ ।  नहीं मेरा मतलब है वो राजा बना कैसे ?

मामा : सबको पता है उसको राजा नहीं बनना चाहिए था ।  खुद राजा को भी पता है उसे राजा नहीं बनना चाहिए था ।  सुनो इबोहल, तुम्हें विश्वास नहीं होता तो खुद राजा से पूछना, धीरे से पूछना, किसी को सुनाई नहीं देना चाहिए ।  भैया क्या आप खुद राजा बनने के लिए राजी हो ? ऐसा पूछना ।  कोई तो कहेगा वो राजा है । लेकिन मन से कोई भी नहीं मानेगा ।  अगर वो खुद को राजा समझता तो क्या ऐसा करता? सुन किसी को बताना नहीं - खुद राजा को पता है वो राजा बनने के काबिल नहीं है ।

इबोहल : फिर लोग क्यों बोलते हैं कि वह राजा है ।  अब देखो क्या हुआ।

सामान खरीदने चलो पैसे नहीं, वो सब खा गया ।  नहीं पैसे कोई खाने की चीज है क्या ? खाने के लिए मन्खंदा है, गोभी है, पालक है, मटर है मणिपुरी अख़बार भी है।  दीवार में तो लिखा था – ये करेगा वो करेगा ।  अब यह भी नहीं किया वो भी भूल गया ।  या तो चावल दो - या तो कागज दो ।  छोड़ो सब उसको तो इससे मार देना ठीक है ।

( भागने लगता है ।  मामा उसे रोकते हैं । )

मत रोको मुझे मत रोको ।  उसकी खोपड़ी को गोली से उड़ा देनी है ।  एक बार में ही उसका सिर फोड़ डालूँगा ।  कितनी ऊँची जाति का है, एक बार में नीचे लाता हूँ।  मत रोको मुझे ।

मामा : चुप कर, यह सब नहीं सुनना ।

(ज़ोर से चिल्लाने पर इबोहल चुप हो जाता है । )

सुन, मेरी बात...... तू मारेगा भी तो उसे नहीं लगेगी ।  मैंने ऐसा कभी नहीं सुना है कि कोई पालकी से गिड़कर मर गया है । छोड़ इन सबको ।  तू जितना भी अच्छा निशानेबाज क्यों न हो उसको गोली कभी नहीं लगेगी ।  अगर गलती से लग भी गई, तो भी वह नीचे नहीं गिरेगा ।  चिपका ही रहेगा ।  अगर मर भी गया न, तब भी कहीं पर चिपका हुआ ही रहेगा, बिलकुल नहीं गिरेगा ।  गोली फालतू में चली जाएगी ।  इससे अच्छा सुन मैं तुझे बताता हूँ, उस पालकी वाले को कैसे नीचे लाया जा सकता है ।

इबोहल : क्या ? मामाजी तो बताइए उस ऊँचाई में जिसको नहीं रहना चाहिए था, उसे कैसे नीचे लाया जा सकता है ।

मामा :किसी को मत बताना ।  जो पालकी पर बैठा है, जरूर गिरेगा वह। अभी तो वह पालकी उसे मुलायम सी लग रही होगी, अब काँटों जैसी लगेगी ।  सुन मेरी बात ।  गोली फालतू में चली जाएगी, हाथ दर्द होगा ।  अगर तू बुद्धुओं की तरह होशियार बनेगा तो शायद जेल भी हो जाए ।  इससे अच्छा उसे कुछ सूखे गोबर दिखा दो   जिस ऊँचाई पर वह है ना, उसके ठीक नीचे सूखे गोबर रख देना ।  उसको देखते ही वह रह नहीं पायेगा और नीचे गिर पड़ेगा ।

इबोहल : क्या आप भी ना, मामाजी ।

मामा : बेटा देख तो सही ।  इसमें तेरा कोई नुकसान भी नहीं होगा ।  जेल भी नहीं होगी और किसी को पता भी नहीं चलेगा ।  उसको गुस्सा भी नहीं आएगा । सिर्फ तुझे  सूखे गोबर रख आना है ।  सुन ले... अगर फिर भी वह नहीं गिरा न, तो देख लेना मैं अपना नाम बदल दूँगा ।

(इबोहल थोड़ी देर चुप रहता है ।  उसको भी लगता है कि यही ठीक रहेगा । )

इसलिए सुन प्यारे बेटे, तुम्हारी जो छोटी वाली बन्दुक है ,जो आधी किसीने दी है, आधी तुमने बनाई है ।  फैंक दो उसे या ऐसा करो अगले नाटक के लिए रख दो ।

इबोहल: आप जो कह रहे हैं थोड़ा- बहुत सही तो लग रहा है मामाजी। तो शुरू करें....वन टू थ्री सेट लाइट एक्शन ।

मामा : अरे.....अहिस्ता अहिस्ता इतनी जल्दी क्यों है इबोहल ।  जो बात कहनी थी, वो तो कम से कम बताए ।  मजाक में ही सही कुछ तो बोलकर देखते हैं ।  पहले कुछ बोलते है लिखते है ।  ले कागज निकाल ।  मैं बताता हूँ तू लिख ।

इबोहल :  इससे क्या होने वाला है ? गोबर ही फिजूल में चला जाएगा ।  उससे तो खाद बना सकते है ।  आपको पता है गोबर आजकल कितना कीमती हो गया है ।  कागज फालतू में चले जाएँगे ।  कितनी बार कह चुके हैं ।  लिख चुके हैं ।  कुछ फायदा हुआ ?

मामा : इस बार जो लिखेंगे वह अंतिम होगा ।  अगर यह सफल नहीं हुआ न, तो जो मैंने कहा था वो करेंगे ।  ले लिख।

( इबोहल कागज कलम निकालकर लिखने की तैयारी करता है ।  )

शुरू में बड़े अक्षरों में लिखो – शिकायत ।

इबोहल : नहीं ‘शिकायत’ नहीं ‘आदेश’ लिखते हैं ।  इसमें निवेदन वगेरह की कोई जरूरत नहीं हैं ।  हमारा काम है माँगना उसका काम है देना ।

मामा : ठीक है ।  शिकायत अथवा आदेश ऐसा लिख ।

(इबोहल लिखना शुरू करता है । )

लिखो – चावल या फिर कागज इनमें एक तो दो ।  गली के ख़राब बल्ब को बदलो।  महल में ही मत रहो, उसे गन्दा मत करो ।  वो तुम्हारी जगह नहीं है ।  बीच-बीच में अपने घर भी तो जाओ विराम ।  अपने गावँ से महल तक का रास्ता बनाओ, पत्थर डालो, सड़क पक्की करो , विराम ।  पैसे मत खाओ, पैसे खाने की चीज नहीं है ।  इससे अच्छा मन्खंदा खाओ, ब्राह्मी के पत्ते खाओ, पेट साफ़ रहेगा । किसी और के लिए नहीं तो खुद का तो सोचो ।  एक दिन में 1757 से ज्यादा शब्द मत बोलो, कुछ कौओं के लिए भी छोड़ दो ।

( इबोहल लिख रहा है )

लिख लिया ?

इबोहल : हाँ लिख लिया ।

मामा : अच्छा तो एक बड़ा सा डंडा नीचे बनाना ।  बहुत बड़ा बनाना।  उसका सिर बड़ा सा बनाना ।  साथ में एक शेर का चित्र भी बनाना ।

इबोहल : मामाजी क्या एक बन्दूक भी बना दूँ ?

मामा : अबे गधे ,तू कौन सा गधा है रे ? अपने दूसरे गधे दोस्तों को देख, सब चुप बैठे हैं ।  मैंने कहा न तीरे बन्दूक की बात अगले साल करते हैं ।  दे मुझे ।

( लिखे हुए पत्र को लेकर चिड़ा की ओर बढ़ाता है )

चिड़ा भैया ! यह तुम्हें महल जरूर पहुँचाना है । इस बार बहुत जरूरी खबर

है ।  शायद किसी का हाथ- पैर भी टूट जाए ।  जरूर पहुँचा देना ।

चिड़ा : क्या मुझे महल घुसने देंगे ? महल में कोई भी चिट्ठी नहीं ले जा सकता ।  कोई मुझे पत्थर से मार देगा, मेरा ही मुँह टूट जाएगा ।  बहुत सिपाही हैं उनके ।

मामा : अगर कोई सिपाही रोके तो कहना चिट्ठी नहीं पैसे हैं ।  जरूर जाने देंगे ।  राजा सो रहा होगा ।  उसके यकाइरोल (जागरण गीत ), मुह हाथ धोने, नाश्ता करने तक कम से कम ५ घंटे तो रुकना पड़ेंगा ।  आपको थोडा कष्ट तो उठाना पड़ेगा ।  जैसे ही उसके बाहर निकलने की लाइट ऑन होगी, फर्स्ट सिन के पहले डायलॉग के ठीक पहले, तभी घुस जाना ।  डरना मत कहना इसमें पैसे हैं ।  कहना गावँ की तरफ से भेंट है ।  हँसकर ले लेगा ।

( चिड़ा गर्दन हिलाता है )

समझ गए न ।

चिड़ा : हाँ समझ गया ।

मामा : जरुर देना ।  चलो इबोहल चलते हैं ।

     ( दोनों निकल जाते हैं )

 

( तीसरा अंक )

 

( एक बुजुर्ग पिता और उसका सबसे छोटा बेटा तोन्डाङ बाहर आते हैं ।  बुजुर्ग दिखने में कमजोर है ।  उसकी कमर भी झुकी हुई है ।  ऐसा लगता है कोई बीमारी भी है – बार बार खाँसता है ।  )

 

पिता : थक गया हूँ । थक गया ।  यह भी कोई जिंदगी है, थक गया हूँ।  ऐसी गँवारों की जिंदगी ।  मरने में भी डर लगता है जीने में भी।  बहुत गुस्सा आ रहा है सोच सोच कर ।

तोन्डाङ : यह सब कुछ इसलिए हुआ है क्योंकि आपके पास नहीं हैं पिताजी ।

पिता : चुप रह भूत कहीं का ।  पैसे नहीं हैं कम से कम अक्ल तो है ।  मेरे पढ़ाए कई लोग राजा के यहाँ नौकर का काम करते हैं ।  पता नहीं क्यों मुझे तुम जैसे भूत की औलाद मिली है ? समझ नहीं आता ।

तोन्डाङ : ऐसा क्यों है बताऊँ पिताजी, आजकल बाघ बिल्ली को जन्म नहीं देती बिल्ली बाघ को जन्म देती है ।

पिता : ( डंडा उठाता है )

          आज समझ ले तू मेरे हाथ से मरेगा ।

तोन्डाङ : जिस बुद्धि को पैसे से नहीं बदल सकते, उस बुद्धि का क्या काम ?

पिता : अबे...मेरा मजाक उड़ा रहा है ?

( उसे पीटने को होता है ।  तोन्डाङ चुप हो जाता है । )

अभी बताऊँ तुम्हें ।  क्या मैं कबड्डी खेलता रहता था ।  तुम लोगों के लिए मैंने क्या नहीं किया । अब पेंसन मिल गई है, सब ख़त्म हो गया है ।  पेंसन के पैसे जी. पी. फंड के बारे में पूछने गया तो बताया पैसों से ही पैसे मिलेंगे ।  जो पैसे थे क्या पता कितने बढ़ गए होंगे ।  वह राशी का बच्चा भी कह रहा था दुकान खोलेगा, महाजन बनेगा ।  पास में खोलेगा तो अच्छा रहेगा, मैं भी एक बार जाता उसकी दुकान ।  तोन्डाङ बेटा इस बार तो मेरा मन भी बार बार उदास हो जाता है ।

(आँसू पोछता है )

तेरी माँ की बीमारी काफी बढ़ गई है ।  मैं तो सोच रहा था कहीं ले जाकर इलाज करवा दूँ ।  प्यारी लोकलै बहुत प्यारी हो तुम, मेरे लिए बेहद कीमती ।  मत जाना मुझे छोड़ कर ।  पैसे नहीं हैं मेरे पास फिर शादी करने के लिए ।

 

( तोन्डाङ बाप बेटे रोने लगते हैं ।  रुमाल से नाक पोंछते हैं । )

अच्छा पढ़ो जो तुमने लिखा है ।  मैं सुनता हूँ ।

 

तोन्डाङ : प्रिय बेटे, तुम्हारी दुकान कैसी चल रही है ? जो पैसे तुम लेकर गए थे, वो कितने बढ़ गए हैं ? अब घर की बुरी हालत को तुम भी जानते हो ।  तुम्हारी माँ की बीमारी और बढ़ गई है, बहुत भयंकर बीमारी है ।  परसों ऑपरेशन करना है ।  मेरा मन तो था कि कहीं ओर भी इलाज कराऊँ ।  चिट्ठी मिलते ही २००० रुपए भेज देना ।  भूलना मत, बहुत जरूरी है ।  मुझे मत भूलना, अब मेरी आखरी आशा सिर्फ तुमसे है ।  पैसे बिलकुल मत भूलना ।  -तुम्हारे पिताजी ।

पिता : दिखा तो मुझे एक बार

( चिट्ठी लेता है )

यह क्या ? यह कैसी लिखाई है ? खुद तो पढ़ सकते हो ना कम से कम ।

तोन्डाङ : इसी को कहते है पढ़े लिखे व्यक्ति की लिखाई ।

पिता :      अच्छा छोड़ पढ़ाई लिखाई तो तेरे भाई को भी तुझ जैसी ही आती है।  वो पढ़ लेगा ।  चल नीचे लिख ।

(चिट्ठी वापस देता है )

तुम्हारे मामाजी ने तुम्हारे लिए एक लड़की भी देख ली है ।  अगर शादी करनी है तो हियन्गई2 के १४ तक आ जाना ।

तोन्डाङ : हाँ, यह बात है तो शायाद खुश हो जाए ।

(लिखता है )

 

पिता : ऊपर लिख – टू श्री अहोंग्बम कुलचन्द्र मङाङ , प्रेम नगर, मोरे

तोन्डाङ : अरे नहीं नहीं अगर वैसे लिखेंगे तो कोई भी नहीं पहचानेगा ।

श्री कुल्ल गोरैया लिखिए ।  भैया कुल्ल गोरैया के नाम से जाने जाते हैं ।

पिता : चलो वो भी ठीक है, सब मेरे बेटे के गुणों के वजह से ही है ।  अलाइस कुल्ल गोरैया लिखो ।

(तोन्डाङ लिखता है ।  चिड़ा की ओर देखकर )

हो चिड़ा भैया

 

चिड़ा : क्या आप मुझे बुला रहे हैं ?

पिता : हाँ हाँ

चिड़ा : जी कहिए

पिता : क्या आप एक चिट्ठी पहुँचा देंगे ? यह यह लीजिए ।  जरूर पहुँचा दीजिएगा ।

                                        (चिड़ा चिट्ठी लेता है )

चलो चलो तोन्डाङ ।

   ( दोनों चले जाते हैं । )

-      शेष आघामी अंक में

 

पाद टिप्पणी-

1-   मणिपुरी वर्ष का दसवाँ महीना

2-   मणिपुरी वर्ष का आठवाँ महीना                                  

 

 

3-   सम्पर्क सूत्र

शोधार्थी, हिंदी विभाग,

मणिपुर विश्वविद्यालय

काँचीपुर इम्फाल- 785003

मो-  7005577501

email – moirangchamonica 93@gmail.com

कोई टिप्पणी नहीं