बूढ़ा-बूढ़ी, कौवा और साँप की कहानी संकलन : डॉ॰ संजीव मण्डल
रात बीत जाने पर बूढ़ी बूढ़े को खोजने निकली । कौवा बूढ़ी के पीछे-पीछे उड़ता हुआ आ रहा था । एक बड़े बरगत के पेड़ के नीचे बूढ़े को पड़ा हुआ देखकर बूढ़ी उसके पास बैठकर बिलख-बिलख कर रोने लगी । बूढ़ी को रोता हुआ देखकर कौवा जमीन पर उतर आया और बूढ़े का शरीर ताकने लगा । कौवे को देखकर बूढ़ी डर गयी और उसे भगाने लगी । इस पर कौवा बोला‘ बूढ़ी अम्मा डरो मत, मैं नुकसान पहुँचाने नहीं आया हूँ। आप लोगों ने मेरा बहुत उपकार किया है । इसलिए मैं आपकी विपत्ति में सहायता करूँगा । पू: (नाना) को असल में साँप ने डसा है । इस पेड़ पर रहने वाला साँप मेरा मित्र है । मैं उसे जानता हूँ । जरूर अंधेरे में गलती से पू: के पैर उस पर पड़ गया होगा । इसलिए मेरे मित्र ने आत्मरक्षा हेतु उन्हें डस लिया । मैं अभी उसे बुलाता हूँ । वह आकर यदि विष निकाल ले, तो पू: अभी उठ बैठेंगे। यह कहकर कौवा उड़कर पेड़ पर जा पहुँचा ।
कुछ समय बाद सचमुच एक साँप पेड़ पर से उतर आया और बूढ़े को जहाँ डसा था, वहाँ से विष निकाल लिया । तुरंत बूढ़ा नींद से जागे आदमी की तरह उठ बैठा । एक साँप और कौवे के साथ बूढ़ी को देखकर बूढ़ा हैरान हुआ । बूढ़ी ने बूढ़े को सारी बात बतायी । सारी बातें जानकर बूढ़े की आँखों से आँसू बहने लगे । बूढ़े ने हाथ जोड़कर साँप और कौवे को धन्यवाद कहा और बोला ‘हम तुम लोगों को बेकार में अपना शत्रु मान लेते हैं । आज तुम लोगों के कारण ही मुझे फिर से जीवन मिला ।‘ तब कौवे ने कहा ‘नाना जी, आपने हमारा कोई अनिष्ट नहीं किया है, बल्कि हमेशा पशु-पक्षियों को मुट्टी भर खाने को देकर ही खुद खाते हैं । ऐसे में आपकी विपत्ति के समय हम से जो बन पड़ा वही हमने किया ।’
बूढ़े ने बूढ़ी से कहा, ‘देखा, तुमने
इस दुनिया में किसी का अनिष्ट न करके उपकारकरने पर जीवन कितना सुंदर होता है !’इसके
बाद बूढ़ा-बूढ़ी अपने घर चले गये ।
सम्पर्क सूत्र-
हिंदी विभाग, गौहाटी
विश्वविद्यालय
असम
मो- 9365246416
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