हिजम इरावत की कविताओं में युग चेतना – शिप्रा कुमारी
“ शिक्षा के प्रसार , सामाजिक - धार्मिक रूढ़ियों के विरोध तथा निर्धन लोगों के दुःख दर्द को समझ कर उसे दूर करने के प्रयास के बिना कोई भी स्वाधीनता अधूरी ही है ।
"हिजम इरावत को अपने मातृभूमिं से अटूट लगाव था । उन्होने जब महिला सम्मेलनी मंच से आवेशित होकर भाषण दिया, तो उनको राजद्रोही जो उस समय का देश द्रोह माना जाता था, कहा गया । देश द्रोही घोषित कर इरावत को जेल भेज दिया गया । जेल में रहकर उन्होंने अपनी मातृभूमि को याद करके बड़ी ही हृदय स्पर्शी मर्मांतक कविताएँ लिखीं। माँ की आराधना नामक कविता की कुछ पंक्तियाँ दृष्टव्य है
"चिपटा कर प्यार
से
अपनी गोद में
सम्मुख कर दिया
अमृत
उस अमृत से
शिशु का
नहीं भरा मन , नहीं भरा उस
स्वार से ! "
कवि इन पंक्तियों में अपने देश से दूर जेल में रहकर अपनी जन्म भूमि माँ धरती के प्रेम को याद कर रहे हैं और कह रहे हैं कि मेरा मन उस अमृत रूपी स्वाद से नहीं भरा जिसे तुमने अपने प्रेम रूपी गोद मे मेरे सामने रख दिया था ।
हिजम इरावत को इम्फ़ाल सेंट्रल जेल से वर्तमान बाँग्लादेश के सिलहट नामक जेल में भेजा गया। वहाँ उनके बैरक में किसी अपराधी को भेजे जाने पर वे उसे अतिथि के समान स्वागत करते औऱ प्रसन्न भाव से उसकी सेवा करते था । जेल से मिले भोजन में से उसको भी भोजन कराते थे । अतिथि के आने की ख़ुशी का वर्णन ' रमेश ' नामक कविता में इस प्रकार करते हैं
“अचानक आ पहुँचा
एक अतिथि
श्री हट्ट जेल
की मेरी बैरक में ।
था रात का समय ,
था मैं एकाकी
खुशियों से भर
की सेवा अतिथि
की खूब ।
हिजम इरावत ने मणिपुरी समाज की उन्नति के लिए तमाम ऐसी
युक्तियाँ अपनाई होगी जिससे मणिपुरी समाज का विकास हो सके। लेकिन अँग्रेज सरकार
अपनी सत्ता कायम करने के लिए हिजम इरावत के किसी भी कार्य का समर्थन न कर बल्कि
उन्हें अरोपित ठहराकर जेल में बंद कर दिया। वर्तमान समय से यदि तुलना की जाए तो
स्थितियाँ कुछ आज भी वैसी ही दिखाई पड़ती है । उनमें थोड़ा परिवर्तन हुआ है लेकिन
आज भी भ्रष्टाचार की नीति खत्म नहीं हुई है। इरावत को अपने देश , राष्ट्र व
राज्य की प्रकृति से अत्यंत लगाव था । हिजम इरावत को अपने देश व राज्य को
शक्तिशाली बनाने के लिए राजनीति अथवा कूटनीति का सहारा जरूर लेना पड़ा होगा ।
अंग्रेजों ने मणिपुर के महाराजाओं को अपने हाथों की कठपुतली बना लिया और मणिपुर
राज्य पर अपना प्रभुत्व स्थापित कर लिया । हिजम इरावत के ' ये ही है ' कविता में
अंग्रेज सरकार द्वारा किए गए निकृष्ट कार्यों का उल्लेख इस प्रकार है
" ये ही है प्राक
प्राक जलाने वाला
मार डाला , मार डाला कहा
जाता जिसके लिए
न खाते चैन
न सोते चैन
बेहाल तड़पते
लोग । ”
इस कविता में इरावत ने अंग्रेज़ सरकार की बर्बरता का वर्णन
किया है । अंग्रेज़ सरकार की बर्बर सत्ता ने मणिपुरी जनता का सोना खाना हराम कर कर
रखा था । भूखे लोग तड़प रहे थे । जिसे देख कर हिजम इरावत के संवेदनशील हृदय को
आघात पहुँचा । इरावत ने अंग्रेज़ द्वारा किए जा रहे सामंतवादी षड्यंत्रों को पहचान
लिया और प्रण किया कि मणिपुरी समाज को इन षडयंत्रकारियों से मुक्त कराना है, जिससे
मणिपुरी जनता स्वतंत्र हो सके । इरावत के लिए मणिपुर की एक-एक वस्तु रत्न के समान
था जिसे बचाने के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया। अंग्रेज़ो द्वारा मणिपुर की भूमि
पर अपना वर्चस्व स्थापित करना कठिन नहीं रह गया था।विकास के नाम पर जो भी कार्य हो
रहे थे वे भी आम जनता के लिए किसी काम के सिद्ध नहीं हो रहे थे। ' विकास ' कविता में कवि
ने शिक्षाके नाम पर रचे गए षडयंत्रों का उल्लेख इस प्रकार करते हैं
“ विकास क्या
यहीं है
जो है चर्चित लोगों में ? यह कैसी विद्या है
आधुनिकतम जगत
की ।
बंधे पैर लोग
करते पीड़ा मुक्त लोगों का
कैसे पकड़
पाएँगे
स्पर्श किया
पृथ्वी का खम्बा ने पहले नहीं रोकने वाला कोई ”
इस कविता में कवि ने विकास के नाम पर आधुनिक ' शिक्षा
व्यवस्था की विसंगतियों का उल्लेख किया है जिसे अंग्रेजों ने विकास का चोला पहनाना
चाहा पर विकास की कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई। कवि ऐसी शिक्षा व्यवस्था से खुश
नहीं था । जिसने शिक्षा के नाम पर व्यक्ति को किसी के नीचे दब कर रहना पड़ता है ।
और नीचे दबे पैरों से ही मुक्त घूम रहे लोगों का पीछा करते हैं । जिनको पकड़ पाना
मुश्किल था। हिजम इरावत के कविता संग्रह को हिन्दी भाषा में सिद्धनाथ जी द्वारा
अनुवाद किया गया है जिसमे विविध विषयों पर लिखी गई कविताएं शामिल है । इरावत किसान
एवं श्रमिकों पर भी कविता लिखते हैं । किस प्रकार श्रमिक कड़ी धूप में कार्य करता
है और सेठ साहूकार गाड़ियों में बैठ कर मौज करते हैं । इसी यथार्थवादी दृष्टिकोण
का चित्रण इरावत ने ' वे ही हैं ' कविता में किया
हैं
" ऊँचे पर्वत के
लाल माटी वाले
रास्ते के किनारे कुछ लोग तोड़ रहे पत्थर हथौड़े सेड़े ठक ठक
गर्मी की कड़ी
धूप में ।
पास में पेट
भरे मोटर
जा रहे ऐंठते
हुए लगातार ।
दूर , दे रहा पहरा एक
इंजन ।
कुछ लोग देख कर चले गए ।
उनके कुत्तों
ने भी एक झलक देखी "
इस प्रकार इरावत ने श्रमिकों के अथक परिश्रम पर दु:ख प्रकट
किया है। ईश्वर ने किसी को तो गाड़ी बंगला दे दिया । लेकिन किसी से इतनी मेहनत
करवाया कि वह दो वक्त की रोटी के लिए पूरा दिन कड़ी धूप में परिश्रम करता रहता है
ताकि उसका और उसके परिवार का पेट भर सके । हिजम इरावत की ' वे ही हैं ' कविता
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की वह तोड़ती पत्थर की याद दिला जाती है। भिन्नता सिर्फ
इतनी है कि निराला की कविता में कड़ी धूप में सड़क के किनारे हथौड़े से पत्थर फोड़
रही मजदूर के रूप में स्त्री है । लेकिन इरावत की कविता में पर्वत के किनारे सड़क
पर कड़ी धूप में हथौड़े से श्रमिक पत्थर फोड़ रहे हैं । हिजम इरावत को जेल से
छूटने के बाद मणिपुर में प्रवेश नहीं मिला, तो वे कछार के किसानों से जा मिले और
कछार किसान आंदोलन प्रिय नेता बन गए और किसानों के लिए उन्होने ' अधिक अन्न
उपजाओ ' आंदोलन भी
चलाया । हिजम इरावत ने किसानों के संघर्षशील जीवन का यथार्थ का चित्रण अपनी कविताओ
में किया है। संघर्ष के चलते उसकी जिंदगी भी छीन ली गई। मणिपुर के किसानों की दशा
भी कुछ अच्छी नहीं थी । जब किसान के पास धान पैदा होता था तो धान की कुटाई करने
वाले बड़े व्यापारी उस धान को बाहर निर्यात कर देते थे । जिसके कारण यहाँ के
स्थानीय लोगों को चावल नहीं मिलता था। इसलिए मणिपुरी जनता आक्रोशित होकर उनके बंद
दुकानों को खोलने के लिए कहा और चावल को बेचने की मांग करने लगी । डॉ देवराज ने ' माँ की आराधना ' नामक कविता
संकलन के ' इरावत : अनथक
यात्रा का उत्कर्ष ' में कहते हैं
कि “ रात को लाइश्रम
कबोकलै देवी , लाइश्रम पीशक
देवी , अमुबी अरिबम , चाओबीतोन , येवोम खोइम आदि
महिलाओं ने व्यापारियों के यहाँ धान लेकर आ रही चार गाड़ियाँ पकड़ ली । ” 9 इस प्रकार
देवराज जी के कथनों से यह साबित हो जाता है कि मणिपुरी समाज भी सामंतवादी समाज
व्यवस्था का गुलाम था । अनेक राजनेताओं ने सामंतवादी समाज व्यवस्था को खत्म करने
का प्रयास किया जिससे अब तक सावंतवादी ,
शोषणवादी समाज
व्यवस्था बदलाव तो आया है लेकिन पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है। हिजम इरावत ने ' एक स्वप्न ' कविता में
जापान जिसे देश का शत्रु राष्ट्र माना जाता था उसने सुभाष चंद्र बोस को सम्पूर्ण
सहयोग दिया । और ब्रिटेन जिसे मित्र राष्ट्र कहा जाता था वह छली एवं विश्वासघाती
निकला । इरावत ने इस कविता में युद्ध का यथार्थ वर्णन इस प्रकार किया है
चलकर निधि के
उस पार से पूर्वी भारत वर्मा के रास्ते
लगता , पहुँच गए
स्वर्ण- देश मणिपुर ।
बमों तोपों के
गोलों से
आदमी टुकड़े
टुकड़े हवा में ।
हवा द्वारा लाई
गई खून की बूंदें
मेघ बन बरस रही
धरती पर । ”
इस प्रकार कवि
ने स्वर्ण देश मणिपुर की प्रकृति पर हो रहे भीषण नर संहार का वर्णन किया है जहाँ
बमों और तोपों के गोले लेकर बर्मा के रास्ते जापानी सिपाही स्वर्ण भूमि मणिपुर
पहुँच चुके हैं । भीषण युद्ध में मणिपुर की भूमि पर आदमी के शरीर के टुकड़े एवं
रक्त की कणिकायें बादल बनकर बरस रही हैं ।
मणिपुर धर्म व
संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है । यहाँ की स्थानीय स्त्रियाँ के वात्सल्य को कवि ने
बड़े ही मार्मिक रूप में चित्रित किया है । जिससे मणिपुरी स्थानीय मैंते नारी का अपने
संतान के प्रति प्रेम का पता चलता है । हिजम इरावत के शब्दों में
“ संतान- वत्सला
मेते नारी !
सुख - दुख ,
पाप - पुण्य
में मनुष्य बनाओ संतानों को
मत बैठाओं यों
ही अपनी गोद में । ”
इस प्रकार
इरावत ने मणिपुरी मैतैं स्त्रियों को संबोधित कर यह कविता लिखी हैं । कवि का कहना
है कि पुत्र स्नेही मणिपुरी मैतै स्त्रियाँ अपने बच्चों को सुख-दख या पाप - पुण्य
में मनुष्य जैसे शिक्षित करो उन्हें सिर्फ अपनी रक्षा के लिए अपने प्रेम रूपी गोद
में मत बैठाओ। इस प्रकार इरावत ने अपनी कविताओं के माध्यम से मणिपुरी समाज के वास्तविक
समस्याओं एवं संकटों से अवगत कराया है । उन्होंने अपनी कविता में मणिपुरी के लोगों
के संघर्ष को दिखाया है । किस तरह प्रकृति के साथ जीवन यापन करने वाले लोगों को
बाहय रूप से क्षति पहुँचती है उसका वर्णन अपनी कविताओं में करते हैं । इरावत ने
समाज को परतंत्रता , सामंतवादी
व्यवस्था से मुक्त करने के लिए तमाम योजनाएँ और आंदोलन भी किए । वे ब्रिटेन और
जापान के युद्ध का वर्णन भी अपनी कविता में करते हैं । क्योंकि युद्ध के दौरान
युद्ध में आम जनता ही मौत के शिकार होते है । स्त्री के संघर्ष का चित्रण भी बहुत
मार्मिक रूप में किया गया है । इस प्रकार मणिपुर के जननेता इरावत ने अपना पूरा
जीवन सामाजिक योगदान में लगा दिया । वे सिर्फ मणिपुर में ही नहीं बल्कि भारत वर्ष
में एक मिसाल के रूप में पूजनीय हैं । इस तरह हिजम इरावत मणिपुरी साहित्य में अपने
सामाजिक एवं रचनात्मक कार्यों के योगदान के कारण विशेष स्थान रखते हैं ।
संदर्भ ग्रंथ
1. माँ की आराधना
- अनुवादक सिद्धनाथ प्रसाद ,
पृष्ठ 75
2. माँ की आराधना
- अनुवादक सिद्धनाथ प्रसाद ,
पृष्ठ 2
3. माँ की आराधना - अनुवादक सिद्धनाथ प्रसाद , पृष्ठ 69
4. मणिपुरी कविता मेरी दृष्टि में - डॉ ० देवराज , पृष्ठ 68
5. माँ की आराधना
- अनुवादक सिद्धनाथ प्रसाद ,
पृष्ठ 25
6. माँ की आराधना
- अनुवादक सिद्धनाथ प्रसाद ,
पृष्ठ 31
7. माँ की आराधना - अनुवादक सिद्धनाथ प्रसाद , पृष्ठ 23
8. माँ की आराधना - अनुवादक सिद्धनाथ प्रसाद , पृष्ठ 79
9. माँ की आराधना - अनुवादक सिद्धनाथ प्रसाद , पृष्ठ 54
10. माँ की आराधना - अनुवादक सिद्धनाथ
प्रसाद , पृष्ठ 67
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