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दारदई रम : ताङखुल लोक गीत

स्त्रोत :शङनु निङशेन, आयु -६३

स्थान-नम्बासी, 

संकलन तथा अनुवाद :  लोङजम रेस्तिना देवी

(प्रस्तुत लोकगीत मणिपुर के पर्वतीय क्षेत्र में स्थित कमजोङ जिले में रहने वाले ताङखुल जनजाति से संबंधित है। दरदई एक जगह का नाम है,जो अभी नम्बासी गावँ के नाम से जाना जाता है। इस गीत में प्रकृति की सुन्दरता, उपजाऊ भूमि, वन-वनस्पतियों आदि का गुणगान किया गया है।)



दारदई रम

ओ...............दारदई रम.....

लै हाउ...........कचीङ रम......

पैरा नैरा साङ........कसुङ.....रम

म्लि पोङखूम पेङमा.......

खवाट कपां मोक.......रम

 

होसुन रम.....

विलियम पैटीग्रयु ना.....

होरतुन रम.....उपोकता

कथै करान......कसिङना सुक....

ओ........दारदई रम.......

 

कनिङ रम........

मैसु सनाङ पुमनमकना

कथै कराङ कसिङ.....कसोक रम.....

इशोर बोर पेट रम...

इशोर बोर पेट रम...

 

हिन्दी अनुवाद :

दारदई भूमि

हे दरदई भूमि

उपजाऊ भूमि

फल-फूल से भरी भूमि

प्रचुर मात्रा में भरी है

ख़त्म न होगी कभी|

 

प्रकाशमय भूमि

देखा था इसे पैटीग्रयु ने सपनों में

आकर बनाया सबको शिक्षित

हे दरदई भूमि

 

सुन्दर भूमि

विद्वान जहाँ से उभरे

ऐसी है यह भूमि

ईश्वर की कृपा प्राप्त भूमि

ईश्वर की कृपा प्राप्त भूमि... 

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