गालो लोक कथा – आबो तानी का रिली दुम्ची : तुम्बम रीबा‘लिली
काफी सोचने के बाद एक दिन उन्हें एक जबर्दस्त युक्ति सूझी। उन्होंने ऐसी योजना बनाई कि बिना किसी युद्ध लड़े ही दुश्मनों का खात्मा हो जाए अर्थात साँप तो मरे ही और लाठी भी न टूटे। उन दिनों कपड़ों का आविष्कार नहीं हुआ था। वैसे भी, जानवर तो कपड़े पहनते नहीं है और अकेले इंसान आबोतानी को किसी से क्या ढँकना ? क्या छुपना-छुपाना? अत: आबोतानी नंगे ही रहते थे। उन्होंने अपनी युक्ति के अनुसार कहीं से लाल रंग के धागे लेकर उसे अपने गुप्तांग यानि कि लिंग में पूरी तरह से लपेट लिया। धागों को बडे़ ही सुंदर ढंग से कुछ ऐसे लपेटा कि अब उनके लिंग की जगह सुंदर सा लाल धागों का गुच्छा बहुत ही आकर्षक लग रहा था। आबोतानी बहुत खुश हुआ उसने अपने आपसे कहा, ‘अब तो हर कोई मुझ पे फिदा हो जायेंगा, इन बंदरों की क्या औकात है? मैं ऐसा चाल चलूँगा कि देखना, ये सब मेरे चाल के मुताबिक मेरी ही बात मानने लगेंगे। उसके बाद मैं इन उपद्रवियों का सफाया करके ही रहूँगा।‘ यह कहकर आबोतानी ने एक बार फिर खुद को निहारा, लाल धागों से सुसज्जित अपने गुप्तांग को देखा और संतुष्ट होकर खड़े हो गये और फिर गुनगुनाते हुए बंदरों की बस्ती की ओर चल दिया।
हमेशा की तरह ही सभी बंदर पेड़ों पर उछल –कूद मचा रहे थे, अचानक एक छोटे बंदर ने दूर से ही आबोतानी को अपने इलाके की ओर आते देखा तो वह सहसा ठहर गया। उसने बड़े ध्यान से लालधागोंमेंलिपटीआबोतानीकेगुप्तांगकोदेखाऔरचिल्लाया, ‘देखोतोआबोतानिनेक्यापहनरखाहै? ‘सभी बंदर अचानक रुक गये और सबने एक साथ आबोतानी की ओर देखा तो सब घोर आश्चर्य मे पड़ गये। आबोतानी को सबने घेर लिया और कुछ बंदरों ने तो छू-छूकर भी उस खास चीज़ को देखने लगे। वे सभी उस विशेष वस्तु से भरपूर प्रभावित एवं आकर्षित हुये और अब वे सभी चाहते थे कि उनके भी आबोतानी जैसे ही सुंदर गुप्तांग लग जाये। इसलिये सबने मिलकर विशेष आग्रह कर आबोतानी को अपने सरदार के पास ले आये। बंदरों के सरदार आबोतानी से बहुत प्रभावित हुए और उसने पूछा कि आखिर यह चमत्कार कैसे हुआ?
आबोतानी ने रौबदार स्वर में उत्तर दिया, “ये मेरे गुप्तांग पर रिलीदुम्ची हुआ है, जिसके कारण ये इस तरह से हो गया।“
यह सुनते ही सरदार बोल उठा, ‘मुझे भी रिली दुम्ची होना है। मेरे भी रिली दुम्ची कर दो।“ यह सुनते ही सभी बंदर एक साथ चिल्ला उठे, “हमें भी हमें भी। हमें भी रिली दुम्ची होना है।“
सभी जल्द से जल्द रिली दुम्ची होना चाहते थे। आबोतानी ने एक बार उस अधीर वानर दल की ओर देखा फिर उसके चेहरे पर एक चमकीली मुस्कान आ गई। वह बहुत खुश था, कि उसका पहला वार खाली नहीं गया ,बल्कि सही निशाने पर लगा .... उनकी चाल एकदम सही तरीके से काम कर रही है। उन्होंने एकदम गम्भीर मुद्रा में सरदार की ओर मुखातिब होकर कहा, “इसके लिये बहुत कठिन तपस्या करनी होती है और वह भी एकदम गुप अंधेरे बंद गुफा में। गुफा के अंदर चारों तरफ से बंद होकर सप्ताह भर घोर तपस्या में लीन होना पड़ता है तभी रिली दुम्ची होने का सौभाग्य प्राप्त होता है वरना नहीं।“
यह सुनते ही बंदरों के सरदार ने कहा, ‘अंधेरा गुफा हमारे इलाके में है ही बस तुम हमें तपस्या का समय और तिथि बता दो हम सब वहाँ एकत्रित हो जायेंगे और हमारा पूरा वानर समाज़ वहाँ उपस्थित हो जाएँगे। मैं अभी अपने मंत्री को हुक्म देता हूँ वह सारी व्यवस्था कर दें।‘ यह कहकर उन्होंने अपने मंत्री को हुक्म दिया, ‘मंत्री ! सारी व्यवस्था करवाओ। गुफा की सफाई करवाओ और गुफा के बाहर आबोतानी के कहे अनुसार ढेर सारी सूखी लकड़ियाँ एवम् सूखे घास–फूस भी जमा करवाओ।और हाँ, देखो तपस्या के दिन हर किसी को वहाँ उपस्थित होना पडे़गा। बच्चे, बड़े, मर्द, औरत हर किसी का इस तपस्या में शामिल होना अनिवार्य है। देखो, कोई भी छूटने न पाये। ‘ऐसा आदेश देकर उन्होंने अपनी दरबार समाप्त की।
अपनी योजना सफल होते देख आबोतानी फूले नहीं समा रहे थे। उसे पता था कि सारी वानर सेना उसके झाँसे में ज़रूर आ जायेंगी पर इतनी जल्दी और इतनी आसानी से इसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी। अब तो उसे इंतज़ार था उस शुभ दिन का जब उनकी योजना पूरी तरह से काम कर जाये और इस संसार को हमेशा के लिए इन उपद्रवियों से छुटकारा मिल जायेगा।
कुछ दिनों बाद निश्चित तिथि पर जंगल के बीचों बीच बहुत बड़े अंधेरे गुफा के पास सारी वानर सेना पहुँच गई, आबोतानी ने वहाँ पहुँच कर पूरे इलाके और सारी व्यवस्था का बड़ी बारीकी से ज़ायजा लिया। उन्होनें अपनी योजना के अनुसार सब कुछ एकदम ठीक-ठाक पाया। सभी बंदर बहुत उतावले हो रहे थे। आबोतानी ने सबको क्रम से एक-एक कर अंधेरे गुफा के अंदर जाने दिया। सबके अंदर जाने के बाद उन्होंने एक बार फिर ज़ायज़ा लिया और निश्चित कर लिया कि कोई बंदर तो नहीं छूट गया। जब वे निश्चिंत हो गये कि सबके सब बंदर अंदर ही बैठें है तब उन्होंने बंदरों को अपना हाथ लहराकर इशारा किया मानो उन्हें आखिरी सलामी दे रहे हो।
इसे देख संभी बंदर खुश हो गये और उनके सरदार ने कहा, ‘जल्दी करो भई कहीं शुभ महुर्त निकल न जाये।‘ उस पर आबोतानी ने कहा ‘अरे हाँ ! अलविदा दोस्त ! अब खूब तपस्या करना और अब पूरी तरह से रिली दुम्ची होने के बाद ही हमारी मुलाकात होगी।‘ यह कह कर उन्होंने गुफा का मुख्य द्वार सूखे घास फूस और लकडियों से बंद कर दिया और उस पर आग लगा दी। आग धधकर जलने लगी गुफा के अंदर बन्दरों की चीख पुकार मचने लगी। वे ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने लगे और चिल्लाते हुए कह रहे थे, ‘बहुत हो गया रिली दुम्ची, बहुत हो गया, हमें ज़ल्दी बाहर निकालो। हमारा दम घुट रहा है। हमें और रिली दुम्ची नहीं चाहिये। हमें बाहर निकालो। हमें बाहर निकलने दो। दरवाज़ा खोल दो। बचाओ बचाओ। “
बहुत देर तक गुफा के अंदर चीख–पुकार मचती रही और बाहर आबोतानी चुपचाप सुनता रहा। और बाहर से जलती आग को और भी तेज़ करते हुए गुफा के अंदर की ओर काला जहरीला धुँआ और आग की लपटों का रुख गुफा के अंदर की ओर करता रहा। जंगल में चारों ओर उस आग की धुँआ फैलने लगा साथ ही सारा जंगल बंदरों के दर्दनाक चीख–पुकार से गूंजने लगी पर आबोतानी ने रंचमात्र भी दया नहीं दिखाई और गुफा की आग को और तेज़ करता रहा। काफी देर बाद जब अंदर से आवाज़े आनी बंद हो गयी तब आबोतानी ने चुपके से गुफा का द्वार खोल कर अंदर झांका। गुफा के द्वार के खुलते ही एक छोटी सी बंदरिया उछलकर निकल भागी। अंदर सबके सब बंदर जलने और दमघुटने से एक-दूसरे के उपर मरे पड़े हुए थे। सबके सब बंदर मर चुके थे। सिवाय उस छोटी सी बंदरिया के हर कोई परलोक सिधार चुके थे।
चाहे तो आबोतानी उस छोटी बंदरिया को मार सकता था पर उन्होंने सोचा कि ये ‘इतनी छोटी बंदरिया किसी का क्या बिगाड़ सकती है ? बेचारी ये तो ऐसे भी अनाथ हो गई है, अपनी माँ–बाप के बिना जंगल में भूखी–प्यासी भटक कर खुद-ब-खुद मर जायेगी। वैसे भी वह आग में झुलसकर काफी घायल हो चुकी है। आग में झुलसकर कैसे उसका नितम्ब पूरी तरह से लाल हो गई है और यह बात निश्चित है कि उसी ज़ख्म के कारण वह जल्द ही मर जायेगी।‘ मगर यहीं पर आबोतानी मात खा गये, दुश्मन को कभी भी छोटा नहीं समझना चाहिये। क्योँकि आगे चलकर उसी छोटी बंदरिया से और भी बंदर पैदा होते गये और इस संसार में बंदरों की जात बढ़ती गई। क्योँकि उनके पूर्वज़ आग में झुलस चुके थे और जो छोटी बंदरिया बच निकली थी और ऐसा हमारा मानना है कि उसी छोटी बन्दरिया से ही आगे चलकर और भी बंदर पैदा होते गए और आज संसार में उसकी ही संतान अलग-अलग प्रजाति के बंदर कई रुप में मौज़ूद है।
उस आगजनी में उस छोटी बंदरिया का पूरा पिछवाड़ा झुलासकर लाल हो गया था इसलिये आज भी सभी बंदरों के नितम्ब लाल रंग के होते है।आज भी इन बंदरों ने अपनी पुरानी आदतें नहीं छोड़ी है। वे जहाँ भी जाते है उपद्रव मचाते ही रहते है। तभी तो उनके लिये यह कहावत मशहूर है कि बंदर कितना भी बूढ़ा हो जाए पर गुलाटी मारना नहीं भूलता। अर्थात्,अंग्रेज़ी में कहावत है, Old habits die hard क्यों सही कहा न?
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