ads header

Hello, I am Thanil

Hello, I am Thanil

नवीनतम सूचना

संजय खाती की हिन्दी कहानी ‘पोस्टर’ और सोनामणि की मणिपुरी कहानी ‘दो सौ रुपए और छतरी’ कहानियों का तुलनात्मक अध्ययन : श्री नोड्थोमबम गुणचन्द्र सिंह


(राजनैतिकविसंगतियों के परिप्रेक्ष्य में)

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। चाहे हमारे धर्म, जाति, भाषा, वेशभूषा, खान-पान, संस्कृति, विचारधारा, दर्शन, कानून-व्यवस्था आदि में विभिन्नताएँ क्यों न हों। उन विभिन्नताओं के बीच ऐसे भी कई तत्व हैं जो एक जैसे हैं। जैसे शादी-विवाह, पूजा-पाठ, पर्व-त्योहार, परिवार, आदि की पारम्परिक अवधारणाएँ और मूल चेतनाएँ सदियों से हमारे समाज में विद्यमान हैं। इन्हें मनाने की प्रक्रिया अलग हो सकती है मगर इनके मूल प्रयोजन, उद्देश्य एवं महत्व प्रत्येक समाज में एक जैसा है। दो भिन्न भाषा-समुदायों का सामाजिक अध्ययन साहित्य द्वारा किया जा सकता है। यह अध्ययन तुलनात्मक अध्ययन द्वारा संभव है। जिसमें तुलनात्मक प्रविधि के साम्य और वैषम्य जैसे घटक तत्वों का सक्रिय रूप से प्रयोग किया जाता है।

हिन्दी साहित्य और मणिपुरी साहित्य की बात की जाय तो, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात हिन्दी-मणिपुरी साहित्य के बीच साहित्य के विभिन्न विधाओं में साहित्यिक आदान-प्रदान का कार्य प्रारंभ हो गया था। अनुवाद के द्वारा हिन्दी की अनेक महत्वपूर्ण रचनाएँ मणिपुरी भाषा में अनूदित हो चुकी हैं और मणिपुरी साहित्य की अनेक उल्लेखनीय रचनाओं का अनुवाद भी हिन्दी में हो चुका है। इस गतिविधि को मौलिक स्तर पर ले जाने का कार्य तुलनात्मक अध्ययन द्वारा सम्पन्न हुआ है। अब तक हिन्दी-मणिपुरी साहित्य के विभिन्न विधाओं में कई शोध हो चुके हैं और हो रहे हैं। अतः इस क्षेत्र में कई संभावनाएँ हैं, केवल जरूरत है तो प्रोत्साहन व सही दिशानिर्देश की । जहाँ तक कहानी विधा की बात की जाय तो दोनों ही भाषाओं में साहित्य के अन्य विधाओं में से केवल कहानी विधा ही पाठकों के लिए सबसे लोकप्रिय विधा रही है। प्रत्येक कहानी की कथावस्तु में पाठक अपने और अपने आस-पास घटनेवाली विभिन्न घटनाओं से मिलते-जूलते भाव-बोध का अनुभव करता है। अतः कहानियों की अभिव्यक्ति साहित्य की विभिन्न विधाओं की अभिव्यक्तियों में से सबसे सशक्त अभिव्यक्ति माना जा सकता है। संजय खाती हिन्दी साहित्य के और सोनामणि मणिपुरी साहित्य के प्रसिद्ध कहानिकारों में से हैं।

कथाकार संजय खाती का जन्म सन् 1962 ई. में अल्मोड़ा (उत्तराखंड) में हुआ। पिछले कई वर्षों से कथा लेखन और पत्रकारिकता के क्षेत्र में वे सक्रिय रहे हैं। विशेष लेखन कार्य के लिए उन्हेंआर्य स्मृति सम्मानपुरस्कार दिया गया है। इसी तरह कहानीकार सोनामणि की बात की जाय तो मणिपुरी साहित्य में कथाकार सोनामणि का विशेष स्थान है। उन्हें साहित्य अकादमी और स्टेट कला अकादमी पुरस्कार से सम्मनित किया जा चुका है। एक सरकारी अफसर होने के नाते उन्होंने भारत के कई जगहों का भ्रमण किया है। उन्होंने इस दौरान प्राप्त अपनी तमाम अनुभूतियों पर आधारित कई चर्चित कहानियाँ लिखीं। अतः आधुनिक मणिपुरी कहानी के उद्भव और विकास में उन्होंने महत्वपूर्ण योगदान दिया है।   

संजय खाती की कहानीपोस्टर’- का संक्षिप्त सारांश इस प्रकार है- चुनाव नज़दीक था। वीरप्पा और करीम अपनी गरीबी के कारण घर-गृहस्थी चलाने हेतु शहर के महत्वपूर्णे सार्वजनिक जगहों के दिवारों पर उम्मीदवारों के चुनावी प्रचार से संबंधित पोस्टर लगाने का काम करते थे। दोनों गुप्त तरिके से चालाकी के साथ एक दूसरे के विपक्षी उम्मीदवारों के लिए पोस्टर चिपकाने का काम करते थे। स्वयं द्वारा लगाए हुए पोस्टर को फाड़कर उसके स्थान पर दूसरा पोस्टर लगाया करते थे। पोस्टर फाड़ने तथा लगाने की योजना वीरप्पा बनाता था और करीम उसका साथ देता था। कभी-कभी फटे पोस्टर या नालों में फैंके गए पोस्टर को लेकर दोनों उम्मीदवारों के कार्यकर्ता या गुण्डे आपस में लड़ते भी रहते थे। पुलिस भी ज्यादा पैसा देनेवाले का ही पक्ष लेती थी। एक दिन वीरप्पा रोज की तरह अपने कामों को अनजाम देने के लिए अकेला ही निकल पड़ा | चुनाव नजदीक आने के कारण दोनों ही नेता सिरपत बाबू और मोरे के कार्यकर्ता काफी गंभीर और सतर्क थे। बढ़ते खतरे की आशंका के कारण करीम की पत्नी ने किसी तरह बहाना बनाकर पति(करीम) को वीरप्पा के साथ नहीं भेजा। उस दिन मोरे के कार्यकर्ताओं ने वीरप्पा को अपने ही नेता मोरे का पोस्टर फाड़ते हुए और सिरपतबाबू के चुनावी पोस्टर लगाते हुए देख लिया था। उसी क्षण बहुत ही बेरहमी के साथ चाकू से मारकर उसकी हत्या कर दी गई। शहर में यह हत्या 50वीं थी। लोगों को इस हत्या की सच्चाई का पता नहीं चल पाया। लोगों के लिए यह घटना हर चुनाव में होनेवाली आम घटनाओं की तरह थी। ऐसी घटनाओं को कोई अधिक समय तक याद नहीं रखता।

सोनामणि की कहानीलुपा चनी अमशुङ छाटिन(दो सौ रूपए और छतरी)का संक्षिप्त सारांश इस प्रकार है- चुनाव का गरम माहौल था। चार प्रतिद्वन्द्वी उम्मीदवार भिन्न राष्ट्रीय पार्टियों की ओर से चुनाव लड़ने जा रहे हैं। सार्वजनिक दिवारें चुनावी पोस्टरों से भर गई थीं, साथ ही सड़कों के दोनों किनारों पर पार्टी के झंडे लगाये जा रहे थे। दिन-रात कैम्प चल रहा थाजहाँ युवकगण ताश, लूडो खेलते हुए मिलते। चुनाव और नजदीक आया तो मतदाताओं की कीमत भी बढ़ने लगी। प्रति व्यक्ति को 50 रुपए से लेकर 100 रुपए तक बाँटे जाने लगे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार चुनाव अभियान के जनसभाओं में दी जानेवाली अपनी भाषणों में गांधी, नेहरू आदि के त्याग और बलिदानों के बारे में बढ़चढ़कर बोलते रहते थे। साथ ही पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत भारत को एक विकसित देश बनाने पर जोर देते। जनता दल के उम्मीदवार अपनी दमदार भाषण के द्वारा जनता के सामने कांग्रेस के 40 वर्षों के शासन में होनेवाले तमाम भ्रष्टाचार और विसंगतियों का विश्लेषणात्मक विवरण रखते । बाढ़, पीने के पानी, बेरोजगारी आदि समस्याओं को अनदेखा किये जाने की आलोचना करते। साथ ही मणिपुरी भाषामीतै लोनको आठवीं सूची में शामिल करवाने तथा मणिपुर से सशस्त्र सेना विशेषाधिकार अधिनियम 1947’ हटवाने के मुद्दों पर विशेष जोर दिया जाता। इसी क्रम में मणिपुर पीपल्स पार्टी के उम्मीदवार भी उक्त दोनों पार्टियों के अनैतिक प्रवृत्तियों का पोल खोलते हुए अपनी सैद्धान्तिक विचारधाराओं को जनता के समक्ष रखता है। यह पार्टी भी कांग्रेस के 40 साल के शासन की विफलता को मुख्य मुद्दा बनाता है। स्वतंत्र उम्मीदवार भी इस तरह की मिलती जूलती विचारधाराएँ जनता के सामने रखता है। सभी पार्टियों के भाषणों से आम जनता काफी प्रभावित होती है। कहानी नायक श्री बोकुल किसी सार्वजनिक जनसभा में नैतिकता और अनैतिकता के विषय पर आक्रामक भाषण देता है। वह सभी मतदाताओं से अपने वोट के मूल्य को समझने तथा युवाओं को नशीली पदार्थों से बचाने के अपील करता है। वह 14-15 वर्ष की उम्र में ही राजनीति में कदम रख चुका था। अपनी व्यस्तता के कारण गृहस्थी का भार उठाने में पत्नी की कुछ भी मदद नहीं कर पाता है। गृहस्थी का भार उठाने और बच्चों की परवरिश करते-करते बोकुल की पत्नी की तबीयत बहुत खराब हो जाती है। जब बोकुल किसी जनसभा में व्यस्त रहने के दो दिन बाद घर वापस आया तो देखा कि भूख और बीमार होने के कारण पत्नी बिस्तर पर पड़ी हुई है। पत्नी के बगल में तीन छोटे बच्चे भूख से व्याकुल होकर चिल्ला रहे थे। अंततः अपनी लाचारी और गरीबी के आगे हार मानकर अपने सिद्धान्तों को किनारे पर रखकर एक बड़ी पार्टी के लिए मोहल्ले में पैसे बाँटनेवाले कोनूङसना(एक व्यक्ति का नाम) के घर जाकर 200 रुपए और एक छाता ले आता है। घर लौटते समय हाथ में एक ताजी मछली, दाल, तेल-चावल से भड़ा थैला और एक छाता लेकर आता है । सारा सामान खरीदने के बाद बचे हुए 120 रुपए पत्नी को सौंपते हुए कहता है कि शादी के बाद यही मेरी पहली कमाई है।

संजय खाती की कहानीपोस्टरमें सिरपत बाबू और मोरे ऐसे नेता और उम्मीदवार है। जो किसी भी हाल में बल और पैसे के दम पर चुनाव जितना चाहते हैं। उनके लिए राजनीति शब्द का जो वास्तविक अर्थ है, उससे कोई मतलब नहीं है। उन्हें मतलब है तो लोगों को धोखे में रखकर राजनीतिक शक्ति हासिल करना है। उनके लिए वीरप्पा जैसे गरीब मजदूर जीए या मरें उससे कोई मतलब नहीं है। ठीक इस तरह की भ्रष्ट राजनीति से उत्पन्न अस्वस्थ परिवेश का चित्रण सोनामणि की मणिपुरी कहानीलुपा चनी अमशूंग छाटिन(दो सौ रूपए और छत्री)में देखने को मिलता है।

इस कहानी का नायक श्री बोकुल चुनावी अभियानों में आयोजित होनेवाली सार्वजनिक जनसभाओं में नैतिकता और अनैतिकता के विषय पर आक्रामक भाषण देता है। वह खुलकर दो राष्ट्रीय पार्टियों की समीक्षा सार्वजनिक जनसभाओं में अपने भाषण के द्वारा करता है। ताकि आम जनता सही पार्टी को चुन सकें। पर घर लौटने पर जैसा कि ऊपर वर्णित है, दयनीय स्थिति देख विचलित हो उठता है। उसके सामने अपने आदर्शों की तिलांजलि देने के सिवाय कोई रास्ता नहीं बचता। ऐसी स्थिति में वह समझौता करने के लिए मजबूर हो जाता है। उसकी मजबूरी का जिम्मेदार गरीबी और भ्रष्ट नेताओं द्वारा फैलाए गए लालच का चक्रव्यूह है। जिसमें किसी गरीब, लाचार आम आदमी का फंसना तय होता है। 

ठीक इस तरह, गरीबी और भूख के कारण विवशताओं से ग्रस्त वीरप्पा और बोकुल की दयनीय दशा में समरूपता दिखाई देती है। वीरप्पा द्वारा दो विपक्षी नेताओं के लिए ही पोस्टर फाड़ना, लगाना उसकी इच्छा न होकर मजबूरी और गरीबी है। इस संदर्भ में  सिरपतबाबू और मोरे इन दोनों नेताओं के संदर्भ में वीरप्पा का कथन है -दोनों साले हमको अपनी-अपनी पार्टी का मेम्बर समझे है। गरीब क्या किसी का मेम्बर ? वो तो अपने पेट का मेम्बर होएला है- जो पेट भरेला है उसका मेम्बर।’(पोस्टर- पृष्ठ 73, पिंटी का साबून- संजय खाती)। ठीक इस तरह, बोकुल न चाहते हुए भी चुनाव के लिए प्रत्येक व्यक्ति को दिया जाने वाला 200 रुपए और एक छाता ले आता है, जो  उसकी मजबूरी थी। बीमार पत्नी और भूख से व्याकुल बच्चों का समाधान करना ही उसके लिए प्राथमिक आवश्यकता थी। इस निर्णय के बाद चुनाव का मुद्दा आता है। अतः दोनों कहानियों के पात्र अपनी-अपनी जगह सही ठहरते हैं। यही दोनों कहानियों में पाए जानेवाली समानताएँ हैं।

संजय खाती की कहानीपोस्टरभ्रष्ट राजनीतिवालों के चरित्र ओैर उनके लिए एक एजेंट के रूप में काम करनेवाले भ्रष्ट पुलिसवालों के चरित्र का पोल खोलने का प्रयास करता है। कथाकार द्वारा कहानी के नायक वीरप्पा से कहलवाता है कि - ‘‘ लोग तो सीढ़ी हैं, सीढ़ी। नेताओं के नखरों पर तबाह होने को तैयार।’(पोस्टर- पृष्ठ 71, पिंटी का साबून- संजय खाती)। मोरे ने बदला लिया है। उसके गुण्डों ने सिनपत बाबू के आदमियों को सरेआम रेल पटरी के पार मैदान में ले जाकर इतना पीटा कि वे हाथ-पैर हिलाने के काबिल भी नहीं रहा। सिरपत बाबू ने पुलिस में रपट की। दो-चार लोग गिरफतार हुए और बाद में छूट गए। लोगों ने कहा, मोरे ने अब थानेदार को पटा लिया है।’(पोस्टर- पृष्ठ 75, पिंटी का साबून- संजय खाती)। 

अपनी कहानी के माध्यम से किसी अज्ञात राजनीति पार्टी की किसी अज्ञात बड़ी नेता की ओर संकेत करते हुए व्यंग्यात्मक शैली में लिखा है कि‘............। कहीं कोई उधड़ा-सा पोस्टर भी नजर आ जाता हैजिसमेंप्रधानमंत्री परम्परागत महाराष्ट्रीय साड़ी में मुस्करा रही हैं।’( पोस्टर- पृष्ठ 71, पिंटी का साबून- संजय खाती)। इस तरह नेताओं के चुनावी मैदान पर किए जानेवाले दिखावे आदि का पर्दाफाश करने का प्रयास भी किया गया है। इसी संदर्भ में सोनामणि अपनी कहानीलुपा चनी अमशूंग छाटिन(दो सौ रूपए और छत्री)में दो राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी और स्थानीय पार्टी मणिपुर पीपल पार्टी के चुनाव से संबंधित घोषणा पत्र पर प्रकाश डालता है। जिसमें कांग्रेस के 40 वर्ष के शासन में होनेवाले तमाम भ्रष्टाचार और विसंगतियों के संदर्भ से यह स्पष्ट होता है कि उस कार्यकाल में भ्रष्टाचार किस चरम पर था। दोनों कहानियों में भ्रष्ट राजनीतिक पार्टियों से संबंधित तथ्यों को उजागर किया गया है, वहाँ समरूपता का भाव परिलक्षित होता है। मगर मणिपुरी कहानी में जिस तरह पूरी निर्भाकता से राष्ट्रीय पार्टियों के नाम सहित पंचवर्षीय योजनाओं की विफलता पर प्रकाश डालने का प्रयास किया गया है, उस तरह का प्रयास संजय खाती ने अपनी कहानी में नहीं किया है। उन्होंने कानूनी मर्यादाओं के अंदर रहकर सांकेतिक ढंग से भ्रष्ट राजनीति की आलोचना की है। अतः यहाँ असमानता दिखाई देती है।

अतंतः दोनों ही महान कहानीकारों ने व्यंग्यात्मक ढंग से भ्रष्ट राजनीति और गरीबी के कारण लाचार आम जनता की दयनीय स्थिति को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त किया है। दोनों कहानियों में कथावस्तु, परिवेश, पात्रों के चरित्र आदि को सरलतापूर्वक व व्यंग्यात्मक भाषा-शैली में अभिव्यक्त किया है। अतः यह कहना गलत नहीं होगा कि साहित्यकार इंसानों में सबसे संवेदनशील होते हैं। दोनों कहानियों में प्रयुक्त कहानी के सभी तत्व काल्पनिक न लगकर वास्तविक ही लगते हैं। उनकी कहानी दूसरों की न लगकर अपनी ही कहानी लगती है। जिसके सभी तथ्य व्यवहारिक रूप से यर्थाथ के समीप लगता है। इसतरह दोनों कहानियों में समरूपता के अनेक तत्व मिलते हैं। अतः कहा जा सकता हा कि दोनों ही कहानियाँ अपने-अपने परिवेश को भली भाँति प्रकट करते हुए भी समग्र रूप से भारतीय राजनीतिक परिदृष्य को दिखाने में सफल हुई हैं।

पीडीएफ संस्करण डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें

कोई टिप्पणी नहीं