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मणिपुरी कहानियों में स्त्री चेतना : लोङ्जम रोमी देवी

मणिपुरी कहानी का इतिहास इस दृष्टि से समृद्ध है कि यहाँ अलग-अलग विषयों से संबंधित कहानियाँ रची गई हैं
| मणिपुरी कहानियाँ अपने समय के यथार्थ को सजगतापूर्वक रेखांकित करती हैं | मणिपुरी कहानियों की विशेषता यह है कि इनमें भावुकता और प्रेम, सहयोग की भावना, सामूहिक प्रयास पर जोर और जीवन के उज्ज्वल और सकारात्मक पक्षों पर प्रकाश डाला गया है साथ ही मणिपुरी कहानियाँ समाज के उस वैशिष्ट्य को भी रेखांकित करती है जहाँ एक दूसरे के प्रति सहयोग का भाव प्रदर्शित किया गया है | समाज की अनेक समस्याएँ- गरीबी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, उग्रवाद, बेमैल विवाह की समस्या, विधवाओं की दुर्दशा, युवाओं में नशाखोरी की प्रवृति आदि समस्याएँ इन कहानियों में चित्रित हैं | मणिपुरी समाज इस दृष्टि से उल्लेखनीय है कि यहाँ देश के दूसरे हिस्सों की तरह स्त्रियों को दबाया नहीं जाता या दोयम दर्जे का नहीं माना जाता, यहाँ की स्त्रियाँ स्वावलंबी, स्वाभिमानी और विद्रोही चेतना से युक्त है तथापि प्रवृति प्रदत्त सौंदर्य और कोमल भावनाओं से संयुक्त है | स्त्री चेतना की दृष्टि से मणिपुरी कहानियाँ महत्वपूर्ण स्थान की अधिकारी है | अनेक कहानीकारों ने अपनी कहानियों के माध्यम से जहाँ एक तरफ मणिपुरी स्त्री के जीवन संघर्ष और उसकी जिजीविषा को रेखांकित किया है, वही दूसरी ओर उसके स्वाभिमानी और विद्रोही व्यक्तित्व को भी उजागर किया है | विभिन्न रचनाकारों ने चाहे वे पुरुष हो या स्त्री सभी ने अपनी कहानियों में स्त्री जीवन के विविध पक्षों को कुशलतापूर्वक अंकित किया है | स्त्री चेतना की कहानियों में इबोहल सिंह काङ्जम की बदला’, लमाबम वीरमणि की अतिथि’, ‘क्यों इतनी देर’, ‘मणियों की खान’, ‘दिग्भ्रान्त’, ‘पंछी के उड़ जाने पर’, ‘गृहणी का गीत’, एम.के.बिनोदिनी की छोटी माँ’, नोङ्थोम्बम श्रीबिरेन की  आदमी को पीसने वाला कोल्हू’, अरिबम चित्रेश्वर की इस खून की धारा के बाद’, अराम्बम ओङ्बी मेमचौबी की बिटिया तेरी माँ जिन्दा है अभी’, वरकन्या कीजिद’, राजकुमारी हेमाबती की प्रेम या दायित्व’, शिजगुरुमयुम नीलवीर शास्त्री की इण्टरव्यूआदि उल्लेखनीय हैं|

मणिपुरी कहानियों में स्त्री विविध रूपों में अंकित हुई है इन कहानियों में स्त्री किसी न किसी संबंधों में बंधी हुई है। कहा जा सकता है स्त्री की विवाह से लेकर विधवा होने की स्थिति तथा वृद्धावस्था को सफलतापूर्वक इन कहानियों में प्रस्तुत किया गया है | स्त्री यहाँ न केवल अपने अस्तित्व के लिए लगातार संघर्ष कर आगे बढ़ती है वरन् हर उस सामाजिक समस्याओं एवं यंत्रणाओं से गुजरती है जिसका निर्माण पुरुषसत्तात्मक समाज द्वारा किया गया था | मणिपुरी स्त्री रचनाकारों में एम. के बिनोदिनी कीछोटी माँकहानी का उल्लेख किया जा सकता है | कहानी 18 साल की स्त्री थामचा को केंद्र में रखकर रची गई है जिसका विवाह एक वृद्ध से कर दी जाती है | स्त्री मानसिकता का जितना मार्मिक ढंग से वर्णन इस कहानी में हुआ है अन्यत्र दुर्लभ है | संबंधों को सहेजकर रखना, गरीबी दूर करने हेतु किए गए विवाह को वह चुपचाप स्वीकारती है और अंत तक मर्यादा का पालन करती है | गतिशील समय में स्त्री किस प्रकार संबंधों को जोड़े रखने का दायित्व निभाती है अंतर्मन में आए उतार- चड़ाव को दबा देती है इसे व्यंजित किया गया है | वहीं दूसरी ओर कहानीकार मणिमतुम कीमणियों की खानकहानी का महत्व विशिष्ट है| गरीबी मनुष्य को कितना विवश, तुच्छ बना देती है कहानी में सिद्ध हुआ है,‘मणियों की खानमें थादोई परिवार की आर्थिक स्थिति को और अपने छोटे से बीमार बेटे को लेकर सदा चिंतित रहती है| किसी के सामने उधार के लिए हाथ पसारना किसी भी इंसान के लिए बहुत कष्ट की बात होती है फिर भी वह उधार लेती है। बीमार बेटे की दवाइयां खरीदने हेतु मिले पैसों से खाने का सामान खरीदती है | कहानी की पंक्तियाँ द्रष्टव्य है –‘‘मौत के इस पल तक वह हमें खिला रहा है, उसके चले जाने के बाद हमारा क्या हाल होगा | कोई भी हमसे सहानुभूति नहीं रखेगा| इसके शव की दाह-क्रिया के लिए लकड़ी खरीदने को एक पैसा तक हमारे पास नहीं है |....तभी बाहर कराहने का स्वर सुनाई पड़ा| थादोई घबराने लगी | -बेटे को एक बार देख आए ? – एक-दो कौर ही बचे हैं, पहले इन्हें तुरंत निगल लो | -नहीं, अच्छा नहीं लगता | थादोई बाहर निकल गई | बाहर निकलते ही थादोई अस्पष्ट शब्दों में जोर से चिल्लाई | याइमाँ उस आवाज का अर्थ जानता था, वह नहीं घबराया|’’1 इस कहानी में क्षरित होती संवेदना का वर्णन हुआ है जहाँ बेटे की मृत्यु से वे चकित नहीं होते | कहानी यहाँ उस माँ की छवि को उकेरती है जहाँ वह भावुक होकर बेटे के स्वस्थ होने की आशा करती है परन्तु दूसरी ओर भूख निपटाने का प्रयास भी | नोङ्थोम्बम श्रीबिरेन कीआदमी को पीसने वाला कोल्हूकहानी की चर्चा भी की जा सकती है एक ओर समाज में कलाकार की परिस्थिति का यथार्थ चित्रण किया गया वहीं किस तरह एक कलाकार की आय उसे जीने को अभिशप्त करते हैं | कहानी में तोम्बी वास्तविकता और निरर्थकता को स्वीकारती हुई वेश्या बन जाती है |इस कहानी में गरीबी, आर्थिक विपन्नता, बढ़ती महंगाई का सजीव चित्रण हुआ है जिसके फलस्वरूप एक अकेली स्त्री बहुत कमजोर, असहाय बन जाती है | परिस्थति से हार मानकर नैतिकता को छोड़ देती है | 

मणिपुरी कहानियों की दूसरी प्रमुख विशेषता है स्त्री चेतना का विकास अथवा शोषणकारी शक्तियों के विरुद्ध संघर्ष | संघर्ष करते हुए कहीं स्त्री संबंधों, दायित्वों को निभाने की कोशिश करती है तो कही उसके साथ ही अमानवीय व्यवहार होता देखते है। और अनेक बार उसे समझौते भी करने पड़ते है | कहानीकार बरकन्या कीजिद’, राजकुमारी हेमाबती कीप्रेम या दायित्वकहानियाँ इस दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है | जहाँजिदकी मेमचा गृहस्थ जीवन सँभालते हुए अपनी इच्छा-आकांक्षा को नहीं छोडती, गायिका के रूप में स्वाभिमान की रक्षा कर, अस्तित्व को बनाए रखने की प्रक्रिया में परिवार से प्राप्त तिरस्कार सहने को विवश होना पड़ता है | यहाँ मेमचा स्वच्छंद होना चाहती है, सम्मान चाहती है। मात्र संभोग की वस्तु न बने रहकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करने हेतु सास, ननद और पति तीनों से जिद करती है | 

अनेक कहानियों में मणिपुरी स्त्री की स्वतंत्र प्रियता और विद्रोही चरित्र को उजागर किया गया है किन्तु अनेक कहानियां ऐसी भी है जहाँ स्त्री पारंपरिक संस्कारों से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाती हैं | मणिपुरी कहानियों की स्त्री चेतना के संदर्भ में प्रो.देवराज लिखते है – ‘‘प्रेम और नारी स्वतंत्रता संबंधी इन कहानियों की एक विशेषता बरबस हमारा ध्यान खींचती है | वह है परंपरागत संस्कार को पूरी तरह न तोड़ पाने की विवशता | इन कहानियों पर आधुनिकता का इतना प्रभाव तो अवश्य पड़ा है कि इनके पात्र स्वतंत्रता के लिए कसमसाते है, एक सीमा तक विद्रोह करते है और अपनी स्वतंत्रता को जीने के लिए पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियों से भी जोरदार बहस करते है, किन्तु इतना होने पर भी अंत में दब जाते है |’’2 इस प्रकार मणिपुरी कहानियाँ स्त्री के समर्पण, सत्यवादिता को सरल शब्दों में अभिव्यक्त करती है | ‘प्रेम या दायित्वकहानी की स्त्री एक पत्नी है, बहू है और एक माँ भी। साथ ही ऑफिस भी संभालती है पर उसे वह सम्मान नहीं मिलता, कहानी की पंक्ति देखने योग्य है – ‘‘मेमचा शशि को याद कर सोचने लगी, चाहे एक ही बच्चे को संभाल लेते, जैसे-तैसे तरह-तरह के व्यंजन बनाकर खाना तैयार किया कि तभी शशि बोलते हुए लौट आया.... इसलिए कहाँ-कहाँ घूमता रहा और अब लौट रहा हूँ | एक पल भी आराम नहीं मिलता | पत्नी भी ऐसी है कि बस| दूसरों की पत्नियाँ तो फीस भरना, बैंक जाना, किताबें खरीदना....पुरुष के बदले सब जिम्मेदारियाँ उठाती हैं| हमारी तो नखरे दिखाते हुए कितने मजे में रहती है | मेमचा कुछ न बोली | सोचने लगी, अपने कष्टों को याद करना तक अपराध हो गया है |’’3 स्त्री की छटपटाहट, पीड़ा को इस कहानी में बखूबी दिखाया गया है | मेमचा प्रेम भरे शब्दों को सुनने के लिए बेचैन है | ‘दिग्भ्रांतकहानी एक विधवा स्त्री की उदासीनता को प्रस्तुत करती हुई समाज में पुनर्विवाह की रीति को प्रकाश में लाती है | पुरुषसत्तामक व्यवस्था में स्त्री किस तरह अपमानित, पीड़ित, शोषित है यहबिटिया तेरी माँ जिंदा है अभीकहानी के माध्यम से सामने आता है | आतंकवाद की आड़ में स्त्रियों का जो निरंतर शोषण होता रहा है इसका लेखा जोखा रचनाकार प्रस्तुत करते है | वहीइण्टरव्यूकहानी भ्रष्टाचार, राजनीतिज्ञों की कुटनीति, बेरोजगारी, मूल्यों का ह्रास जैसी समस्याओं को उजागर करतीहै| सरकारी कार्यालय में भ्रष्टाचार किन-किन विधियों द्वारा होता है उसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया का वर्णन प्रस्तुत है | जहाँ लक्ष्मी ऑफिस की कर्मचारी होने के बावजूद शरतचंद की नियुक्ति करवाने के लिए समझौता करती है | 

कहानीकार इबोहल सिंह काङ्जम कीबदलाकहानी स्त्री सशक्तिकरण, अन्याय को सहन न कर उसका प्रति उत्तर देती हुई सामने आती है | इबेचाओबी पति बोराजाओ के मंत्री बनने पर, पति की कामयाबी पर अत्यधिक प्रसन्न तो होती है पर दूसरी पत्नी को ले आने पर उतनी ही दुखी भी हो जाती है | वह पति द्वारा किए गए अपमान का बदला लेती है विरोधी पक्ष के रूप में चुनाव लड़कर| कहा जा सकता है मणिपुरी स्त्री की पारंपरिक मान्यताओं का खंडन कर अपने ही पति के विरुद्ध वह आवाज उठाती है इबेचाओबी सोचती है - ‘‘वह मैते स्त्री है | मैते स्त्रियों का अपना अलग रूप है | फिर सोचती-उस रूप को संभाले रखने के लिए अपना ही पतन कर लेना आज के समाज के अनुकूल है ? अपने बेटे की भी चिंता करती है | उसे मिली उपेक्षा के कारण उसके अन्तर में एक आग सी धधक रही थी |....एक दिन अचानक कोर्ट से एक कागज बोराजाओ को मिला | इबेचाओबी ने अपने और अपने बेटे के लिए भरण-पोषण की माँग की थी |’’4 स्त्री अपने हक़ का दावा करती दिखाई पड़ती है| संबंधों में दरार, स्वाभिमानी स्त्री का स्वरूप, संवादहीनता आदि विशेषताएंअतिथिकहानी में देखने को मिलती हैं | ‘सुनहरा मार्गकहानी शहरों, गांवों में स्त्री विकास संबंधी योजना का यथार्थ सफलतापूर्वक प्रकट करती है साथ ही इस योजना की असफलता के पीछे निहित कारणों की तरह ध्यान आकर्षित करती हैनिर्णय’, ‘पतझर की साँझ’, ‘गृहिणी का गीत’, ‘पंछी के उड़ जाने परआदि कहानियां इस दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं| 

मणिपुरी कहानियों के अध्ययन के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि बिना किसी विमर्श का आश्रय लिए मणिपुरी कहानियाँ स्त्री चेतना को सशक्त ढंग से उद्घाटित करती हैं | कहने का आशय यह कि स्त्री विमर्श जैसी किसी सैद्धांतिकी से प्रभावित न होते हुए भी मणिपुरी कहानियाँ एक स्त्री की शक्ति और उसके सामर्थ्य को गहराई से रेखांकित करती हैं | अनेक कहानियों में स्त्री पात्रों ने जिस प्रकार प्रतिरोध और प्रतिकार को प्रदर्शित किया है, वह इसका साक्ष्य प्रस्तुत करता है | चाहे वे पुरुष रचनाकार हो अथवा स्त्री रचनाकार उन्होंने मणिपुर की स्त्रियों के स्वाभिमानी और स्वावलंबी चरित्र को अपने अनेक कहानियों के द्वारा उजागर किया है | अनेक सामाजिक समस्याओं से संघर्ष करते हुए भी मणिपुरी स्त्री किस प्रकार बिना हताश और निराश हुए अपने पथ पर बढ़ती चली जाती है, अनेक कहानियाँ इसका सुंदर उदाहरण प्रस्तुत करती हैं | इस प्रकार हम कह सकते है कि मणिपुरी कहानी का परिदृश्य स्त्री चेतना की दृष्टि से उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण है |

संदर्भ संकेत

1.     पंछी के उड़ जाने पर, लमाबम वीरमणि, अनुवादक:डॉ.इबोहल सिंह काङ्जम, राइटर्स फोरम, इंफाल, प्रथम संस्करण 2015 , पृष्ठ-42

2.     प्रतिनिधि मणिपुरी कहानियाँ, (सं.) डॉ.देवराज, अनुवादक:डॉ.इबोहल सिंह काङ्जम, राधाकृष्ण प्रकाशन, प्रथम संस्करण 1994 , पृष्ठ- 186

3.     क्षितिज मणिपुरी कहानियाँ, अनुवादक: डॉ.विजय लक्ष्मी, यश पब्लिकेशन्स, दिल्ली, प्रथमसंस्करण 2013 , पृष्ठ-81

4.     धरती, अनुवादक: डॉ. एलाङ्बम विजयलक्ष्मी, परिलेख प्रकाशन, नजीबाबाद, प्रथम संस्करण 2008 , पृष्ठ- 56


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