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कोरोना-काल में शिक्षा : मणिपुर के विशेष संदर्भ में : डॉ. ई. विजय लक्ष्मी


कोरोना वायरस या कोविड 19 का संक्रमण 2019 से चीन के वुहान प्रांत से शुरू हुआ और महामारी के रूप में पूरे विश्व में फैल गया। इसमें कोई दो राय नहीं है कि आज संपूर्ण विश्व कोविड 19 नामक महामारी से पीड़ित है। ऐसी विकट महामारी की स्थिति में मानव के लिए अपने अस्तित्व की रक्षा सबसे प्रमुख सवाल बना हुआ है। डब्लयू. एच.ओ. द्वारा इसे 11 मार्च 2020 को महामारी घोषित किए जाने के बाद भारत में भी शिक्षा संस्थानों- स्कूल, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय को सुरक्षा की दृष्टि से बंद कर दिया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 25 मार्च 2020 से देश व्यापी लॉक डाउन की घोषणा की गई। यह एक तरह से अनिवार्य भी था पर अगर कहा जाए कि इसी लॉकडाउन के चलते सबकी जीवनचर्या ही बदली हुई है तो गलत नहीं होगा। वैसे भी जीवन अनिश्चितताओं का नाम है और परिवर्तन शाश्वत।यह भी परिवर्तन का एक रूप है। हम सीमित संसाधनों में जीना सीख रहे हैं। बदली हुई परिस्थिति में जीवन को सामान्य बनाने के प्रयास में रत हैं। अनेक असुविधाओं का सामना कर रहे हैं। शिक्षा का क्षेत्र भी इस बदलाव से अछूता नहीं है। इस लॉकडाउन के चलते शिक्षा संस्थानों में शिक्षण को परंपरागत विधि से चलाया जाना संभव नहीं है। विद्यार्थियों के सर्वांगीर्ण विकास के लिए आयोजित होने वाले कार्यक्रमों को सम्पन्न कराने की कोई संभावना निकट भविष्य में तो दिखाई नहीं देती। तात्पर्य यह कि कोविड 19 महामारी का यह संकट हमारी जिंदगी से जल्दी खत्म होने वाला नहीं है। अभी हम बेहद असामान्य परिस्थितियों से गुजर रहे हैं। ऐसा समय पहले न कभी हमने देखा था और शायद भविष्य में कभी देखने को मिले कि सम्पूर्ण विश्व ही एक महामारी के प्रभाव के चलते घरों में बंद है। कहने का तात्पर्य है कोविड-19 के कारण उत्पन्न हुई समस्याओं के कारण हमारी गतिविधियाँ प्रभावित है। इन स्थितियों के बीच जिंदगी के अन्य घटकों की तरह संप्रेषण के नए साधनों का उपयोग करते हुए शिक्षण कार्य को भी आगे बढ़ाना है।

इस महामारी के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिये लागू किये गए लॉकडाउन के कारण स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय की शिक्षा व्यवस्था प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो रही है। इसका एकमात्र समाधान यह है कि शिक्षा आज तेज़ी से ई-शिक्षा की ओर अग्रसर हो रही है। वैसे भी आज के तकनीकी युग में तकनीकी संसाधनों का प्रयोग हमारे जीवन का हिस्सा बन गया है। स्कूलों में कक्षाएँ स्मार्ट क्लासस बन रही हैं। ऑनलाइन परीक्षाएँ भी हो रही हैं। कक्षा अध्यापन में ऑडियो-विसुअल एड्स के प्रयोग हो रहे हैं, जिसमें इंटरनेट बहुत बड़ा साधन है। तात्पर्य यह कि आज ई-शिक्षा शिक्षा का एक अंग बनता जा रहा है।  ई- शिक्षा का तात्पर्य है इंटरनेट तथा अन्य संचार साधनों की सहायता से दी जाने वाली शिक्षा। इस पद्धति के अंतर्गत वेब आधारित शिक्षण, मोबाइल आधारित शिक्षण या कंप्यूटर आधारित शिक्षा तथा ऑडियो विसुअल कक्षाएँ आदि शामिल हैं। हालांकि इन माध्यमों का   उपयोग सामान्य कक्षाओं के साथ भी होता रहा है परन्तु कोविड19 की इस विकट स्थिति में सर्वाधिक रूप से ई-माध्यमों का ही उपयोग हो रहा है, क्योंकि यह आज के समय की माँग है। ई- शिक्षा के प्रमुख दो भेद है-

1.    सिन्क्रोनस- इसमें समय निश्चित होता है और शिक्षक-विद्यार्थी इंटरनेट की सहायता से मोबाइल या लेपटॉप/ कंप्यूटर का प्रयोग करते हुए सीधे जुड़ते हैं। यह एक तरह से कक्षा अध्यापन की तरह ही होता है। उदाहरण के लिए  ZOOM, google meet आदि।

2.    एसिन्क्रोनस- इसके अंतर्गत तैयार अध्ययन सामग्री अपलोड किया जाता है, जिसे विद्यार्थी अपनी सुविधा के अनुसार कहीं भी कभी भी प्रयोग कर सकता है। इसमें web पर सामग्री उपलब्ध कराई जाती है तथा e-mail, whatsapp जैसे साधनों का प्रयोग करते हुए विद्यार्थियों को सामग्री पहुँचाई जाती है।  

ई-शिक्षा परंपरागत शिक्षा व्यवस्था का स्थान तो कतई नहीं ले सकती। शिक्षा का उद्देश्य विद्यार्थियों का सर्वांगीर्ण विकास करना है और ई-शिक्षा के माध्यम से इस उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो पाती। अतः यह नहीं कहा जा सकता कि परंपरागत शिक्षा पद्धति को त्याग कर ई-शिक्षा को पूरी तरह अपना लेना चाहिए। ई- शिक्षा की भी बहुत सारी सीमाएँ हैं। अतः ई-शिक्षा की समस्याओं और सीमाओं का समाधान खोज नहीं लिया जाता तब तक पूरी तरह से शिक्षा के लिए ई-शिक्षा को उपयुक्त नहीं कहा जा सकता। इतना कुछ होते हुए भी आज ई-संसाधनों का उपयोग समय की माँग है। आज के तकनीकी दौर में दुनिया के संग चलना है तो इन संसाधनों का उपयोग किया जाना चाहिए। कहने का तात्पर्य है कि इसे कक्षा आध्यापन के पूरक के तौर पर तो प्रयोग किया ही जा सकता है। ई-शिक्षा की मदद से परंपरागत शिक्षा पद्धति को और प्रभावी तो अवश्य बना सकता है। उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग कर कक्षा अध्यापन को विद्यार्थियों के लिए रुचिकर भी बनाया जा सकता है। और आज के कोविड 19 के इस संकट की घड़ी की बात करें तो शिक्षा की गति को अनवरत आगे बढाने का साधन ई-शिक्षा ही रह जाती है यानी हमारे लिए इस दौर में ई-शिक्षा ही सहारा बना हुआ है। ऑनलाइन माध्यम से दी जाने वाली शिक्षा के अनेक फायदें हैं तो अनेक सीमाएँ भी इसके साथ जुड़ी हुई हैं। 

ई-शिक्षण से होने वाले फायदों की बात करें तो-

-घर बैठे-बैठे या एक स्थान में रहकर शिक्षक आवश्यक पाठ्य सामग्री अपने विद्यार्थियों

 को उपलब्ध करवा सकता है।

-एक तरफ विद्यार्थियों को नोट्स आसानी से मिल जाते हैं।

-अध्यापन समय सुविधानुसार निश्चित कर सकते हैं।

            -कक्षा अध्यापन की तरह शंका निवारण का समय उपलब्ध होता है।

-सुविधानुसार किसी भी समय और किसी भी स्थान पर अपना शैक्षिक कार्य कर सकते हैं। 

 अर्थात इस शैक्षिक व्यवस्था में समय और स्थान की कोई पाबंदी नहीं है।

-अध्ययन सामग्री को सेव करके बहुत समय तक रख सकते है और जो समझ नहीं आ रहा हो उसे  

  बार-बार पढ़ा जा सकता है और समझा जा सकता है।

-कम खर्च पर अधिक से अधिक सामग्री का संचयन कर पढ़ा जा सकता है।

 

जहाँ गुण होते हैं वहीं कुछ सीमाएँ भी होती हैं। ई-शिक्षण की भी सीमाएँ या समस्याएँ हैं, जिनमें प्रमुख हैं-

- गुरु- शिष्य का सीधा संबंध नहीं हो पाता है।

- दूरदराज के गाँवों और पहाड़ी इलाकों में इंटरनेट की अनउपलब्धता । 

- कनेक्टिविटी की समस्या । 

- प्रयोग की जानकारी का अभाव। 

- गरीब छात्रों को मोबाइल खरीद पाने और डाटा खर्च की भी समस्या हो सकती है।

- कोरोना संकट के चलते छात्र भी तनाव में हैं।

- प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों को घर पर ही पढ़ाना असंभव तो नहीं पर कठिन अवश्य है।

 इसी तरह अनेक समस्याएँ हो सकती हैं पर समस्याओं की वजह से इंसान जीवन जीना छोड़ नहीं देता। एक रास्ता बंद होता है तो दूसरे रास्ते की खोज होती है और खोज ली जाती है। अर्थात अगर समस्या है तो उसका समाधान भी इंसान खोज ही लेता है। कोविड 19 की वजह से जब सभी को घर पर रहना पड़ रहा है तो विद्यार्थी घर बैठे शिक्षा प्राप्त कर सके ऐसी व्यवस्था की गई।  

मणिपुर के विशेष संदर्भ में बात करूँ तो यहाँ सरकारी तथा निजी स्कूलों और कॉलेजों को और विश्वविद्यालय को 13 मार्च से विद्यार्थियों के लिए बंद कर दिया गया परंतु टोटल लॉक डाउन के दिनों के अलावा शिक्षण, प्रशिक्षण और प्रशासन कार्य कभी बंद नहीं हुए। मणिपुर सरकार के शिक्षा विभाग ने भी अपना काम जारी रखा है। लॉकडाउन से पहले दसवीं और बारहवीं कक्षाओं की परीक्षाएँ सम्पन्न हो चुकी थीं। शिक्षामंत्री श्री राधेश्याम ने सावधानी के साथ सक्रीयता दिखाते हुए परीक्षा परिणाम घोषित करवाने की व्यवस्था करवाई। सोश्यिल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन करते हुए शिक्षकों द्वारा उत्तर पुस्तिकाएँ जाँचने की उचित व्यवस्था करवाई गई। अन्य कक्षाओं के लिए ई-शिक्षण (e-learning) कक्षाएँ भी आरंभ करवाईं। ई-शिक्षण की इस परियोजना को सफलता पूर्वक सम्पन्न करवाने के लिए कुल पाँच दल बनाए गए जिनको विभिन्न जिले के ज़ेड. ई. ओ. के जिम्मे रखा गया। दो सौ से भी अधिक चयनित अध्यापकों और अध्यापिकाओं की मदद से कक्षा एक से कक्षा बारहवीं तक के सभी विषयों के ऑडियो-विसुअल कक्षाओं की व्यवस्था की गई है। इस परियोजना में शामिल हर सदस्य ने इसकी सफलता के लिए मेहनत में कोई कमी नहीं रहने दी है। परिणाम यह है कि 13 मई 2020 से इस परियोजना का कार्यान्वयन शुरू हो चुका है। www.lairik.com  नाम से एक वेबसाइट आरंभ कर सभी कक्षाओं के पाठ्यक्रम इसमें उपलब्ध करवाए जा रहे हैं। दूरदर्शन केन्द्र इम्फाल तथा स्थानीय चैनेलों में भी शिक्षण संबंधी कार्यक्रमों का लगातार प्रसारण किया जा रहा है। यहाँ तक कि निजी स्कूलों में किंडरगार्टन या प्री के.जी कक्षाओं के लिए भी ई. कंटेंट उपलब्ध करवाए जा रहे हैं, परंतु इसमें अभिभावकों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। प्राथमिक स्तर के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे अधिकतर गरीब घर के हैं, अतः कोविड 19 के इस संकट काल में मध्यांतर भोजन से वंचित न हो इसकी भी व्यवस्था की गई। सभी सरकारी स्कूलों में चावल बाँटे गए। कक्षा एक से पाँच तक के विद्यार्थियों को साढ़े तीन किलो और कक्षा छठी से आठवीं तक के विद्याथिर्यों को पाँच-पाँच किलो चावल उपलब्ध कराए गए। कुछ सरकारी स्कूलों के अध्यापकों और अध्यापिकाओं ने मिलकर अपनी ओर से अन्य खाद्य सामग्रियाँ जैसे- दाल, सब्जी और बिस्कुट आदि भी बाँटे हैं। 

इसी तरह विश्वविद्यालय स्तर पर भी यू.जी.सी., एम.एच. आर. डी. के निर्देशानुसार लॉकडाउन शुरू होने के साथ ऑन लाइन कक्षाएँ ली जा रही हैं।  विश्वविद्यालय की ओर से एम.एच.आर.डी के निर्देशानुसार SWAYAM, UG/PGMOOCs, e-PG Pathshala, e-content coursewarein UGsubjects, SWAYAMPRABHA, CEC-UGCYouTubechennel, National Digital Library, Shodhganga, E-Shodh Sindhu, Vidwan आदि ICT का प्रयोग करने को कहा गया है।   मणिपुर विश्वविद्यालय में कक्षाएँ 13 मार्च से स्थगित हैं परंतु 25 मार्च 2020 से वाट्सएप, ज़ूम एप. गूगल एप की सहायता से कक्षाएँ चल रही हैं। प्रत्येक सप्ताह की रिपोर्ट हर शनिवार को देनी होती है। हालांकि शुरू-शुरू में ऑनलाइन कक्षाओं का विरोध भी हुआ, परंतु इन साधनों के प्रयोग को सीख लेने के बाद अध्यापकों को भी शिक्षण में कोई परेशानी नहीं हुई। लॉकडाउन के बीच भी मणिपुर विश्वविद्यालय सक्रिय है। यहाँ शिक्षण कार्य ही आगे नहीं बढ़ रही बल्कि प्रशासन संबंधी आवश्यक कार्यवाईयाँ अनवरत चल रही हैं। एडमिनिस्ट्रेटिव ब्लॉक में कार्यरत सभी बारी-बारी से आ रहे है और अपने हिस्से की जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं। चयनित अध्यापकों की एक कमिटी कोविड 19 टास्क फोर्स मणिपुर यूनिवर्सिटी के नाम से बनाई गई है, जो सक्रियता के साथ विश्वविद्यालय की स्थिति पर नजर रखे हुए हैं। 

कोविड 19 से लड़ने के लिए अति आवश्यक सामग्रियों में एक हैंड सेनिटाइजर बनाने का काम बायोकेमेस्ट्री विभाग के स्नातकोत्तर के विद्यार्थियों और शोधार्थियों ने अपनी प्रयोगशाला में किया और इण्डियन रेड क्रोस सोसायटी मणिपुर राज्य शाखा के साथ मिलकर मणिपुर में इसकी कमी नहीं होने दी। इसी विभाग के दो शोधार्थी कोविड संक्रमण के टेस्ट में अपना सहयोग दे रहे हैं। यह विश्वविद्यालय के लिए अति गौरव की बात है।

ऑनलाइन शिक्षा परंपरागत शिक्षा का प्रर्याय नहीं है, न ही कभी हो सकती है, पर आज की विकट स्थिति में हमें ई-शिक्षण या ऑनलाइन शिक्षण का ही सहारा लेना होगा। ई-सिक्षा से जुड़ी सभी समस्याओं का हरसंभव समाधान कर लिया जाना चाहिए तभी यह कारगर सिद्ध होगा। शिक्षक-विद्यार्थी के बीच सीधा संवाद कर पाने के लिए ई-शिक्षण के सिन्क्रोनस पद्धति का प्रयोग किया जा सकता है। इससे विद्यार्थी अपनी शंकाओं का समाधान उसी समय पा सकता है जैसे कि कक्षा अध्यापन के समय होता है। दूर-दराज के गाँवों और पहाड़ी इलाकों पर इंटरनेट की उपलब्धता का प्रश्न है, इसके लिए सरकार को सक्रियता के साथ उचित कदम उठाने होंगे।ऐसी नीति बनानी होंगी, ऐसी योजनाओं का क्रियांवयन करना होगा, जिससे जल्द-से-जल्द देश के कोने-कोने तक इंटरनेट की सुविधा पहुँच जाए। केवल गिने-चुने शहर ही स्मार्ट सिटी न बने बल्कि पूरा देश स्मार्ट देश बन जाए और कनेक्टिविटी की कोई समस्या न रह जाए। जिन सिक्षकों और विद्यार्थियों को ई-शिक्षा के संसाधनों के प्रयोग की जानकारी का अभाव है, उसे दूर कर जानकार बनाने के लिए समय-समय पर ऑरियंटेशन कार्यक्रमों का आयोजन होते रहना चाहिए।आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थी वर्ग के लिए पैकेज की सुविधा सरकार की ओर से की जा सकती है। कोरोना संकट के इस काल में  छात्रों को भी तनाव से मुक्त रखने का एक साधन शिक्षा को भी बनाया जा सकता है। इसमें शिक्षकों और विद्यार्थियों के साथ अभिभावकों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। आवश्यकता इस बात की है कि शिक्षण कार्य से जुड़ा हर एक व्यक्ति इसे अपना कर्तब्य मानते हुए सकारात्मक सोच के साथ अपना सहयोग प्रदान करें। यदि ई-शिक्षण से जुड़ी समस्याएँ सुलझ जाएँ तो इस लॉकडाउन के बीच परीक्षाएँ भी ऑनलाइन ली जा सकती है। समय बदल रहा है।अध्ययन-अध्यापन का स्वरूप बदल रहा है। आज के डिजिटल युग में शिक्षा के क्षेत्र में भी पर्याप्त परिवर्तन की आवश्यकता है। वर्तमान शिक्षा में आधारभूत परिवर्तन किया जाना चाहिए। अगर ऐसा कर सके तो हमारे सामने चुनौतियों के रूप में जो स्थिति है उसे आसानी से अवसर में बदल सकते हैं। यह परिवर्तन शिक्षा के माध्यम से सहज संभव है। भारत को स्वावलंबी, समर्थ एवं शक्तिशाली राष्ट्र बनाना है तो इसका आधार शिक्षा ही हो सकती है। 

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