महाभारत : दीपक पंथ
यत्र – तत्र और सर्वत्र
ही,
द्वापर युग की तरह,
कौरव और पाण्डव के बीच,
महाभारत का युद्ध,
होते हुए देख रहा हूँ ।
यहाँ हजारों की संख्या
में,
मैंने कौरवों को देखा,
और पाण्डवों को भी ।
मैंने स्वयं मेरे अन्दर
भी,
महाभारत का युद्ध,
होता हुआ पाया ।
हर मानव के अन्तर मन में,
अहर्निश कुरूक्षेत्र की
तरह,
महाभारत का युद्ध होता
हुआ देखा ।
आज भी
......................
इस कुक्षेत्र रूपी धरती
में,
कोई शकुनी बनकर,
कुटनीति खेलते हुए दिखाई
देते हैं,
तो कोई किसी के निमित्त,
धर्मराज बनकर इस
कुरूक्षेत्र में,
दृष्टिगोचर होते हैं ।
हर मानव के अपने – अपने,
महाभारत होते हैं ।
अन्धा धृतराष्ट्र भी,
मनुष्य के अन्दर ही होते
हैं ।
कुरूक्षेत्र के महाभारत
से भी,
हमारे बीच का महाभारत,
और अधिक विनाशकारी,
सिद्ध होना निश्चित है ।
इस कारण,
अब एक बार फिर,
इस कलियुग में,
शान्ति का संदेश लेकर,
भगवान श्री कृष्ण को
जन्म लेना,
अति आवश्यक समझता हूँ ।
मानव के अन्तर्मन के,
महाभारत का,
क्षत-विक्षत करने ।
कङ्ला पत्रिका अब टेलीग्राम पर है। हमारे चैनल @kanglapatrika में शामिल होने के लिए यहां क्लिक करें और नवीनतम अपडेट के साथ अपडेट रहें
Ek Mahabharat sabake antraman men bhi hea jisase syamn hi ladana hoga .
जवाब देंहटाएं