मणिपुरी नाटक ‘श्रीतोम्बा अमसुङ कै’ और हम : थोकचोम मोनिका देवी
‘श्रीतोम्बा अमसुं
कै’ नाटक की शुरुआत में दिखाते हैं कि शराब से ग्रस्त तोम्बा आत्महत्या करने जा
रहा है। उसके शब्दों से पता चल रहा है कि वो मरने तो जा रहा है लेकिन चाहता है कि
कोई न कोई वहाँ आ जाए और उसे मरने से रोक ले। वह इसी ज़द्दोज़हद में होता है और इसी
बीच कई सारी घटनाएँ घटती हैं। एक ओर एक वृद्ध तोम्बा से पैसे माँगता है जिसे उसने
उधार लिए थे तो दूसरी ओर एक युवक तोम्बा के कहने पर उसके मरने के कार्यक्रम का
आनंद प्रत्यक्ष रूप से लेने के लिए लोगों को टिकट बेचने लगता है। सबको अपने-अपने
पैसे की पड़ी है ।कोई भी तोम्बा को नहीं रोकता। तभी वहाँ से एक कै यानि बाघ गुजरता
है।वह तोम्बा से मरने का कारण पूछता है। उसे पता चलता है कि तोम्बा पैसों की तंगी
के कारण मरने जा रहा है। बाघ की बातों से पता चलता है कि वह शुरू से हीतोम्बा की
बातें सुन रहा था और इसलिए वहाँ आया था क्योंकि तोम्बा ने कहा था कि वो आदमी है। बाघ
उससे पूछता है कि वह उन पैसों का क्या करेगा, तब तोम्बा बताता है कि पैसों से कई
सारे कार्य किए जा सकते है।जैसे गरीबी हटाना या उसके गली का ख़राब बल्ब बदलना। अंत
में बाघ तोम्बा को १०० रुपए देता है| दोनों के बीच दलील लिखी जाती है। दलील में
लिखा जाता है कि बाघ तोम्बा को एक महीने के लिए १०० रुपए उधार दे रहा है और ठीक एक
महीने के बाद उसे ब्याज सहित लौटाना है |
नाटक के दूसरे अंक
में पता चलता है कि तोम्बा बहुत अमीर बन गया है। वह इतना अमीर बन गया है कि पापड़ रखने
के बरतन भी सोने का बनाता है। अपने मोहल्ले में वह मशहूर हो गया है। लोग उसे समारोहों
में विशिष्ट अतिथि के रूप में बुलाने लगे हैं। वह राजाओं की तरह अपनी भी यश गाथा
लिखवाता है जो सब असत्य है ।अनन्तर वह बाघ को मारने की
योजना बनाता है लेकिन वह असफल होता है। बाघ निश्चित दिन वापस आता है। वह बताता है कि कभी कक्षा आठ के
उसके इतिहास के अध्यापक ने बताया था कि बाघ आदमी खाता है। तब से वह हजारो साल भूखे
आदमी की खोज कर रहा है। उसने तोम्बा को भी इसलिए पैसे दिए थे क्योंकि उसने बताया
था कि वह आदमी है। वह तोम्बा से पूछता है जिन चीजों को करने का वादा किया था, क्या
उसने वो सब पूरा कर लिया है। तोम्बा बताता है कि उसने बहुत कुछ तो कर लिया है
लेकिन वो अपनी गली का बल्ब बदलना भूल गया है। इसे सुनकर बाघ निराश हो जाता है कि
तोम्बा ने उसे धोखा दिया है। वो उसे नहीं खा सकता क्योंकि वो आदमी नहीं है। लेकिन
तोम्बा खुद उसके पीछे पड़ जाता है और उसे खाने को कहता है। वह सफाई देता है कि उसने
गली में बल्ब बदलने के अलावा कई अन्य बड़े काम किए है। लेकिन बाघ नहीं मानता और वह
रोता रह जाता है कि वो आदमी है।
पूरा नाटक मनुष्य की
मनुष्यता पर बड़ा प्रश्न चिन्ह लगाता है। नाटक आरंभ से ही आज के समाज में रहने वाले
लोगों की स्वार्थपूर्ण प्रवृत्ति और ‘मैं’ की भावना को उजागर करता है। आज व्यक्ति
अपने स्वार्थ में कैसे लिप्त रहता है इसे स्पष्ट करने के लिए नाटक में दिखाते है
कि चाहे तोम्बा आत्महत्या ही क्यों न कर रहा हो, लोगों को अपने पैसे से ही मतलब
है। उन्हें अपने पैसे वापस चाहिए। जहाँ एक ओर तोम्बा के मुहल्ले वाले अपने बच्चों
को डाँटते समय या नसीहत देते समय तोम्बा का नाम मिसाल के तौर पर लेते हैं। वे ही
तोम्बा को आत्महत्या करने से रोकने के बजाय टिकट बेचकर उसे मनोरंजन का साधन बना
देते हैं।
तोम्बा जब अमीर बन
जाता है, तब ये लोग ही उसकी प्रशंसा करने से नहीं थकते। उसके बारे में कई मन गढ़न
बातें लिखी जाती है। लोग उसे मस्का लगाने लगते हैं और अपना स्वार्थ पूरा करने लगते
हैं। तोम्बा को खम्बा के जितना बलशाली बताया जाने लगता है। उसके बारे में इतिहास तक
लिखा जाता है, जिसमें बताया जाता है कि जिस दिन से उसने सत्ता संभाला है, ठीक उसके
अगले दिन से तोम्बा ने लोगों के लिए समर्पित हो गया है। यहाँ तक कि उसी ने लोकताक
झील को खोदा है एवं वहाँ से निकाले गए मिट्टी के ढेर से कौब्रू पहाड़ खड़ा किया है। नाटक
के इस अंक में लेखक ने सत्ताधारियों के झूठे कार्यकलापों का पर्दाफाश किया है।उन्होंने
आज के सत्ताधारियों के रंग बिरंगे इतिहास के पीछे की सच्चाई को सबके सामने खोलकर
रख दिया है।
Lekh Saragarbhit hea.
जवाब देंहटाएंइस आलेख के माध्यम से कुछ नवीन तथ्यों को पढ़ने का अवसर मिला है। इसके लिए आपको हार्दिक बधाई।
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