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Hello, I am Thanil

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सखी


तुमसे मुझे असीम प्रेम

इसलिए नहीं

कि मैं तुमसे मिली

बल्कि इसलिए

कि तुमने

ऐ सखी !

मुझे मुझसे मिलाया

मेरी सिलवटें पड़ी साड़ी को तुमने संवारा

मेरी आँखों के काजल के नीचे छुपी

उन अनकही बातों को

बिन बोले समझ लिया

मेरे बिखरे बालों क चोटी बना

सिंगारै से सजाया

मेरे आगे नहीं

पीछे नहीं

साथ खड़े बस सुन लिया

सब कही अनकही,

आईना दिखाया

जिसमें मुझे मैं दिखी

ऐ सखी ! तुमने मुझे मुझसे मिलाया।

 

 

 

 

 

स्त्री

स्त्री

सुशील, चंचल और शांत होती है

वह जननी होती है

परिवार की इज्जत होती है

संस्कृति की वाहक होती है

सहनशील होती है

अपनी लंबी चोटी पर

बांधती अपने परिवार को

अपने पल्लू में समेटे समाज को

स्त्री लक्ष्मी,पार्वती होती है।

 

मैं स्त्री पैदा तो हुई

लेकिन अब इस संज्ञा से परिभाषित नहीं हो सकी

क्यों??

क्योंकि मैं मुंहफट, गुस्सैल और हठी हूँ

मैं उनके समाज को बचाने वाली जननी नहीं बन सकती

क्योंकि मेरे समाज में मैं सिर्फ कम संख्या की माँ हूँ

मुझे अपने फनेक और अपने इतिहास पर नाज है

लेकिन उनको मेरे हर कपड़े पर ऐतराज है

मैं नहीं बाँध सकती अपने परिवार को चोटी से

क्योंकि मेरे बाल कभी छोटे कभी घुंघराले कभी भूरे कभी नीले कभी पीले होते हैं

मैं देवी नहीं बनना चाहती

क्योंकि मैं  इंसान हूँ

मैं स्त्री पैदा तो हुई

लेकिन अब इस संज्ञा से परिभाषित नहीं हो सकी।

 

 

नदी

आज बैठी मेरे पास

पाँच साल की

उत्सुक प्यारी सी वह लड़की

बना रही थी चित्र

“एक नदी”

इंद्रधनुषी उसकी छोटी दुनिया में

काली सी बह रही थी

कलकल उसकी वह नदी

आश्चर्य कम किताबी ज्यादा

मैं भी

पूछ बैठी क्यों नदी तो होती है नीली?

 

नहीं रंग पाई मैं उसे अपने रंगों से

मेरा रंग और उसका रंग इतना था अलग कि

आज लगा गया खुद पर

बड़ा सा यह प्रश्न चिह्न

मेरी आँखों पर परत दर परत

चढ़ा था गुलाबी व सतरंगी दुनिया का वह चश्मा

आज दिखाने लगा

ब्लैक एंड वाइट की उस दुनिया को

जो हम थमाने वाले है इनकी ड्राइंग कॉपी को

उत्तर था

“ नहीं मेरे घर के पास वाली नदी तो नीली नहीं काली है।

नदी नीली नहीं काली होती है!!! “

 

थोकचोम मोनिका देवी

शोधार्थी

हिंदी विभाग, मणिपुर विश्वविद्यालय

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