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इमोइनु इरात्पा- विद्यापति

 मैतै जाति मणिपुर के मैदानी हिस्से में निवास करने वाले लोग हैं| मैतै ‘सनामही’ देवता को मानते हैं| जिस प्रकार हिन्दू धर्म में लक्ष्मी को धन की देवी के रूप में पूजते हैं, उसी प्रकार मैतै जाति ‘इमोइनु’ देवी की पूजा करती है| जिनके आशीर्वाद से धन-दौलत, खान-पान और खुशियों का माहौल बनता है| ‘इमोइनु’ देवी की पूजा को ‘इमोइनु इरात्पा’ कहा जाता है| यह मणिपुरी वर्ष के दसवें महीने ‘वाकचिङ’ (दिसम्बर-जनवरी) के 12वें तिथि को मनाया जाता है|

 इमोइनु से संबंधित अनेक लोक विश्वास प्रचलित है जिसमें से एक है कि ‘देवता लाईनीङथौ सीदबा’ और ‘देवी लैमरेल सीदबी’ ने इस संसार का निर्माण किया था| उन्होंने सभी को सात कुल में बाँटा एवं मङाङ कुल के राजा अपान्बा को राजा बनाया| उन्हें एक जादुई अंगूठी दी| जिस कारण सभी कुलों में वे सबसे ज्यादा धन संपत्ति के साथ जीवन व्यतीत कर रहे थें| इस कारण राजा का मन घमंड से भर गया | जिस अँगूठी को देवता ने पूजा करने के लिए दी थी, वह उसे अपनी ही ऊँगली में पहनकर सभी विधि विधान को भी नकारने लगा| इस कारण देवता ‘लाईनीङथौ सीदबा’ और देवी ‘लैमरेल सीदबी’ नाराज हो गए एवं उसे सबक सिखाने के लिए चिड़िया का अवतार लेकर उसकी अँगूठी चुरा ले गए| परिणामस्वरूप मङाङ कुल की आर्थिक स्थिति दिनोंदिन बदत्तर होने लगी | सभी पशु मरने लगे एवं खेती बाड़ी भी ख़राब होने लगी| उनकी प्रजा भी कई समस्याओं से घिरने लगी| राजा ने घोषणा करवाई कि जो कोई भी उनकी अँगूठी को ढूँढकर लाएगा उस पुरुष को आधा राज्य दिया जाएगा और अगर स्त्री हुई तो उसे रानी बना दिया जाएगा|

इसी बीच अङोम कुल के लोग देवता ‘लाईनीङथौ सीदबा’ और देवी ‘लैमरेल सीदबी’ के पास आते हैं और उनसे निवेदन करते हैं कि मङाङ कुल की ही तरह उनके लिए भी किसी को राजा घोषित किया जाए| देवता उनकी भक्ति से खुश होकर सभी सातों कुल के लिए एक एक राजा घोषित करते हैं| इसके बाद से देवी लैमरेल सीदबी ‘इमोईनू देवी’ का अवतार लेकर हर कुल के पास जाकर उन्हें खुशहाली का आशीर्वाद देती हैं| कहा जाता है वे अपने भक्तों को कभी पहाड़ी औरत के रूप में या कभी बूढ़ी औरत का रूप लेकर दर्शन कराती है|

कुछ समय के बाद अङोम कुल के राजा का देहांत हो जाता है| वह अपने छोटे से बेटे और पत्नी को छोड़ जाते हैं| उनकी पत्नी अपने बेटे का पालन पोषण बहुत मुश्किल से करती है| एक शाम उनका छोटा बेटा गाय चराकर वापस आता है और अपने साथ एक साँप पकड़कर ले आता है| उसकी माँ साँप को बाहर फेंक देने  को कहती है| रात होने के कारण वह साँप को छत पर ही फैंक आता है| कुछ महीनों के बाद माँ को छत पर कुछ चमकीली चीज दिखती है| वह अपने बेटे को बुलाती है और उसे भी दिखाती है| बेटे को साँप फैंकने की बात याद आती है और वह छत पर चढ़कर देखने लगता है तो उसे एक अँगूठी मिलती है| वह अपनी माँ को दिखाता है और जब उसकी माँ उसे बताती है कि यह तो वही मङाङ राजा की जादुई अँगूठी है तो वह यह सोचकर बहुत खुश हो जाता है कि अब उनकी गरीबी दूर हो जाएगी| लेकिन उसकी माँ सही मालिक को अँगूठी वापस करने को कहती है| 

दोनों माँ बेटे सुबह होते ही मङाङ राजा के पास जाते हैं और उसे अँगूठी वापस करते हैं| राजा बेहद खुश होकर बेटे को आधा राज्य देने का वादा करते हैं लेकिन दोनों माँ बेटे उसे इंकार कर देते हैं| राजा के बहुत कहने पर अंततः माँ राजा से कहती है कि अगर वे वाकई उसे कुछ देना चाहते हैं तो ‘वाकचिङ’ के 12वें दिन राज्य के सभी घरों में किसी भी प्रकार का आग न जलाने का आदेश दें| राजा उनकी इच्छा को पूरी करते हैं| जब वह 12वाँ दिन आता है तो केवल उस माँ-बेटे के ही घर में  आग जलती है| माँ-बेटे ‘इमोईनू देवी’ का इंतजार करते हैं| उनको यकीन था वह जरुर आएगीं| माँ-बेटे को आधी रात में एक पहाड़ी औरत की आवाज सुनाई देती है – ‘सखी मैं बहुत दूर से आई हूँ| बाहर बहुत ठण्ड भी है| क्या मैं आपके घर में आज रात के लिए रुक सकती हूँ ?”| माँ को पता चल जाता कि इमोईनू देवी पहाड़ी औरत का अवतार लेकर पधारी हैं| वह उनका स्वागत करती है और उन्हें अलाव के पास बुलाकर आग सैंकने को कहती है| माँ उस औरत से निवेदन करती है – ‘सखी मुझे बाहर एक काम याद आ गया| मेरा बेटा यहीं पर सोया है| क्या आप मेरे वापस आने तक इसका देखभाल करेंगी ?”| वह औरत मान जाती है| जब माँ सुबह होने तक वापस नहीं आती तो ध्यान करने पर उन्हें पता चलता है कि माँ का देहांत हो चुका है| बच्चे को रोते देखकर इमोईनू देवी को दया आती है| कहा जाता है कि वे अपने दिए वादे के कारण उसकी माँ का रूप लेकर उसका बड़े होने तक पालन पोषण करती है| 

 दूसरी कहानी में जब वे लुवाङ कुल के राजा पुन्सिबा के पास आती है, वे एक बहुत बूढ़ी बहरी औरत का रूप लेकर उनके पास रहती है| उनके आशीर्वाद से लुवाङ कुल खुशहाली में रहने लगता है| लुवाङ कुल के राजा की 9 रानियाँ थी| सभी में सबसे छोटी रानी राजा को सबसे प्रिय थी| बड़ी रानियों के षड्यंत्र के कारण सबसे छोटी रानी अपने छोटे बेटे को लेकर मायके खुमन कुल वापस चली जाती है| उसका बेटा जब युवा हो जाता है तो एक दिन एक सङाइ का शिकार करता है| तब लुवाङ कुल के राजा उससे वह सङाइ देने और बदले में कुछ भी माँगने को कहता है| वह राजा से निवेदन करता है कि पहले अपनी माँ के पास जाएगा और विचार विमर्श करेगा, तब उनसे अपनी मनचाही मोल लेगा| वह वापस आकर अपनी माँ को कहानी सुनाता है तो उसकी माँ राजा से उनके घर रहने वाली बूढ़ी को वरदान स्वरुप माँगने को कहती है| राजा उनकी माँग सुनकर चकित हो जाता हैं और उसे तभी ज्ञात होता है कि वह युवक कोई और नहीं बल्कि उसकी सबसे छोटी रानी द्वारा जन्मे उसी का बेटा है क्योंकि उसकी रानियों को ही इमोईनू के बारे में पता था| वह ख़ुशी ख़ुशी उसकी इच्छा पूर्ण करते हैं और इस तरह खुमन कुल खुशहाली से भर जाता है | 

एक दिन देवता ‘लाईनीङथौ सिदबा’ देवी ‘लैमरेल सिदबी’ से पूछते हैं कि वे क्यों सभी को सामान रूप से आशीर्वाद नहीं देतीं | तब देवी उन्हें बताती हैं कि वे सभी को उनके कर्म के अनुसार ही आशीर्वाद देती है | जब वे उनकी शर्त के बारे में पूछते हैं तो अपनी पसंद बताते हुए कहती है कि :

  1.  अपने झूठे पानी को दूसरे खाना पकाने वाले बरतन से नहीं छूने देना चाहिए |

  2. अपने पहने वस्त्रों से रसोई के बर्तनों को नहीं पोंछना चाहिए |

  3.  सूरज के ढलने के बाद लकड़ी न काँटे |

  4. शाम को घर अँधेरे में नहीं रखना चाहिए | दिया जलाकर रखना चाहिए | सोने के बाद भी एक छोटा सा दिया जलाकर रखें |

  5. सब्जी और चावल धोने का पानी घर के आँगन में नहीं बिखेरना चाहिए |

  6. खाना खाते हुए नमक का पात्र, ङारुबाक (मछली रखने का पात्र), चेङफू (चावल रखने का पात्र) नहीं छूना चाहिए |

  7. खाना पकाते समय पात्र से आवाज नहीं करनी चाहिए | उयान (सब्जी पकाने का पात्र) में चावल नहीं पकाना चाहिए | खाना खाते समय एक बैठक जरुर लगाना चाहिए |

  8. सभी स्त्रियों को अपने पति को ईश्वर का रूप मानना चाहिए | उसका मन कोई दूसरे की ओर आकर्षित नहीं होना चाहिए | अपने बच्चों को डाँटते समय अपशब्द नहीं कहना चाहिए तथा पैरों से नहीं मारना चाहिए| आँखों में आँसू बहाए अपने मायके नहीं जाना चाहिए | 

  9. घर में झाड़ू लगाते समय झाड़ू का सबसे आगे वाला हिस्सा ज्यादा नहीं हिलना चाहिए | खाना खाते वक्त झाड़ू न लगाए | झाड़ू लगाने के बाद हाथ धोकर ही किसी वस्तु का स्पर्श करें | झाड़ू घर के सबसे पीछे कोने में रखना चाहिए | घर के अन्दर का झाड़ू और आंगन का झाड़ू अलग होना चाहिए | 

  10. घर हमेसा साफ़ सुथरा रखना चाहिए | रात को सोने से पहले ठीक से साफ़ करके ही सोना चाहिए|

  11. घर के अन्दर तेज आवाज करते हुए नहीं चलनान चाहिए| बालों को कंघी न करना, बालों से हमेशा जूँ निकालना, नियमित रूप से न नहाना इमोईनू को बेहद नापसंद है|

  12. सुबह उठते ही बालों को कंघी करके घर के आगे के द्वार की तरफ ही निकलना चाहिए|

  13. चावल बनाते समय तीन मुट्ठी चावल वापस रखना चाहिए इसी तरह सब्जी बनाते समय भी कुछ हिस्सा हमेसा वापस रखना चाहिए| खाना पक जाने के बाद भी दोनों चावल और सब्जी थोड़ा थोड़ा पात्र में वापस रखना चाहिए| खाना पकाते वक्त भी सूंघना या चखना गलत है|

  14. दूसरों के घर जाकर चुगली करने वाली, अपने घर की बातें दूसरों को बताने वाली, अपने पड़ोसी को भाई बहन न समझने वाली, दूसरों को न खिलाने वाली इमोईनू को बिलकुल पसंद नहीं है|

  15.  सुबह, शाम एवं सोने से पहले ईश्वर की पूजा करनी चाहिए|

  16. पुरुष वर्ग को भी मीतभाषी होना चाहिए| अपनी पत्नी को आदर करना चाहिए|

  17.  पुरुष वर्ग का काम है कि अपने घर को मण्डी की तरह जरूरत की सारी   चीजें उपलब्ध कराएँ |

  18.  सत्य के निष्ठावान एवं गलत के प्रति बाघ सा खतरनाक होना चाहिए |

  19.  सभी बुजुर्ग को अपने ही माता पिता के समान समझना चाहिए|


मान्यता है कि इमोईनू देवी ने उपर्युक्त बातें निर्धारित किए थे| अगर सभी इनका सही पालन करेंगे तो इमोईनू हमेशा उन्हें अपना आशीर्वाद देती है| इमोईनू की पूजा संध्या आरती के समय आरंभ होती है | सुबह से ही सभी साफ़ सफाई की जाती है जिनमें रसोई प्रमुख होता है| पारंपरिक मैतै घर की रसोई में एक अलाव जिसे फुङगा कहा जाता है का विशेष स्थान होता है यहाँ हमेशा आग जलाकर रखा जाता है |

















 आजकल के घरों में जगह सीमित के कारण यह स्थल केवल इमोईनू के दिन ही तैयार करते हैं| इमोईनू देवी को सब्जियाँ, धान, चावल, फल, सफ़ेद मछली आदि अर्पित की जाती है| यहीं से फिर चावल, सब्जी व मछली को पकाया जाता है| पकाने के बाद पहले इमोईनू को चढ़ाया जाता है फिर घर के सभी लोग मिलकर भोजन करते हैं|  इमोईनू के दिन किसी दूसरे को कोई सामान या खाना नहीं दिया जाता| दिपावली की ही तरह घर घर  दिए जलाए जाते हैं| इमोईनू देवी की पूजा के बोल इस तरह है :


“हे इमा लैसीरेल लैपुन्बी 

इमा लैमरेल सायोन ओईरीबी

अची तत्तबी अराई कङदबी 

इमोईनू अहोङ अचावबी

तरा चाकनीङ खाकना चाकसौबी 

वाङलइ येन खङना येन सौबी

खुबाक चाङजव तरा लोना खोईरम्जरिये”

(हे माँ ! सबका हित करने वाली, हे माँ लैमरेल की अवतार, इमोईनू देवी, सभी को भर पेट चावल देने वाली, सभी को धन सम्पत्ति देने वाली माँ, मैं करबद्ध प्रणाम करता हूँ |)








यहीं नहीं इमोईनू की पूजा विवाह व जन्म संबंधी रस्मों में भी की जाती है| विवाह के समय कई देवी देवताओं की पूजा की जाती है| इनके साथ इमोईनू की भी पूजा की जाती है ताकि नव विवाहितों को उनका आशीर्वाद मिले| जब किसी घर में बच्चा पैदा होता है तो बच्चे के जन्म के छठे दिन इमोईनू की पूजा होती है| माईबी (धार्मिक अनुष्ठान करने वाली) एक गोलाकार सूप पर बच्चे को डालती है फिर इमोईनू की पूजा करती है तब माँ को सौंपती है|



संदर्भ : 

1.आल इंडिया रेडियो इम्फाल केन्द्र से प्रसारित रेडियो नाटक ‘इमोईनू’

2. मिथगी वारीदा इमोईनू (यू ट्यूब चैनल) – SCERT मणिपुर  

 


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