कविता मैं नारी हूँ -मेमनाओबी
मैं नारी हूँ, नारी
सृजन शक्ति का केंद्र हूँ
अथाह शक्ति का भंडार हूँ,
फिर भी पराया धन कहलाती हूँ |
हर दर्द से उभरकर
नया रूप धरती हूँ
फिर भी क्यों हर बार
पराय धन कहलाती हूँ ?
कभी किसी के हवस का,
बन जाती हूँ शिकार
ज़ख्मों को साथी मान
पीड़ा की चिता बनाकर
पुनःचल पड़ती हूँ
फिर भी क्यों हर बार
अबला कहलाती हूँ?
जागो दुनिया वालों
अब वक्त है नारी सम्मान का
परायी औ अबला
शब्द के परिनिर्वाण का
मैं बिना किसी साज-सज्जा के
साधारण अस्तित्व नारी हूँ।
मैं वही नारी हूँ, जिसे
दूसरे ने नहीं,
स्वयं अपने से रची हूँ।
मैं नारी हूँ, नारी।।
शानदार कवितायेँ एवं शानदार ब्लॉग 👌, मेरी ईश्वर से प्रार्थना है की आप इसी प्रकार उतरोत्तर नए नए लेखों द्वारा पाठकों को अवगत करातें रहें , और जीवन में आगे बढ़ते रहें |
जवाब देंहटाएंशुभकामनाओं के साथ - मशीन मैन