लुका छुप्पी: अनुवाद : डॉ. वाइखोम चींखैङानबा
जीवन स्वयं एक एक्सपीरियंस है । जीवन में हमें तरह - तरह की घटनाएँ देखने को मिलती हैं । जो हमने देखा और सुना, इन सबसे जीवन का रूप तैयार होता है । इसी तरह तैयार होने के बाद वह कहानी बन जाता है । कहानी ! तरह - तरह की कहानियाँ ! एक ऐसी कहानी का अंश, जो मैंने अपने जीवन में अनुभव किया ! कहानी का रस आज के समाज का रस है । आज के समाज का यह रस मेरे जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग बन गया है । मैंने भी वह रस मजबूरी में चखा है । कुछ समय पहले एक कागज की कंपनी में मेरा रोपन हुआ । इसके बाद मुझे बड़ा करने वाले कुछ लोगों ने मेरा रूप तैयार किया, मेरा कर्ण छेदन कराया, मेरी जाति और वंश बताकर मेरे भाई - बहनों के साथ बांधकर एक दुकान के गोदाम में पहुँचाया। उस दुकान से सामान सप्लाई के दौरान मैं भी किसी ऑफिस के स्टेशनरी में पहुँचा और बहुत समय तक सोता रहा । फिर एक दिन अचानक हम सबको जगाया और हैड क्लर्क साहब के पास भेज दिया । हैड क्लर्क साहब ने हम सबको फिर से एक अल्मारी में सुला दिया । हम बिना कुछ काम किए आराम से समय व्यतीत करते रहे । एक दिन सबके बीच में से मुझे हैड क्लर्क साहब ने बड़े प्यार से जगाया । उस अल्मारी से मुझे निकालकर अपने सामने खड़े एल.डी. क्लर्क को कुछ कहते हुए मुझे सौंप दिया ।एल.डी. क्लर्क ने मुझे लाकर अपनी मेज पर रखा । उसने मेरा नामकरण किया । रीति के अनुसार मुझे दीक्षा दी और धागा लगाया गया । और कुछ कागज मेरे खाने के रूप में दिए । कागज पर कुछ लिखकर मुझे काम देना शुरू किया । उसी दिन से मैंने एक पार्ट पाइल के रूप में काम करना शुरू किया । जिस दिन मुझे काम दिया गया उसी दिन से आज तक अपाने कर्तव्य का पालन करता आया हुँ । एक मैज से दूसरी मेज, एक कमरे से दूसरे कमरे, कभी किसी के पास तो कभी दूसरे के पास । मुझे भगाते रहे । मैं भी अपना कर्तव्य मानकर बिना कुछ कहे दौड़ता रहा । कर्तव्य का पालन करते - करते मैं मोटा हो गया और शरीर भी घिस गया । फिर भी आज तक हिम्मत नहीं हारी । अगर कोई मुझे जान बूझकर रोक नहीं लेता तो मैं हमेशा कर्तव्य का पालन करता हूँ । कभी - कभी मुझे जान बूझकर रोका भी दिया जाता है । खुले आम मुझे लुका छुप्पी के खेल में शामिल कराकर मुझे ही कई बार कामचोर सिद्ध किया जाता है । एक घटना के बारे में आपको सुनाना चाहता हूँ जो मेरे साथ घटी है । ज्यादा समय नहीं हुआ, कुछ महीने पहले की बात है । पहले से ही जो काम मुझको सौंपा जाता है, वह बहुत महत्त्वपूर्ण होने के कारण डिलिङ् क्लर्क मुझे बहुत संभालकर अल्मारी में ताला लगाकर रखता है । एक दिन एक आदमी ने अपने किसी काम के लिए अर्जी लिखी । उसी आदमी के काम के लिए मैं थोड़ा भाग दौड़ करता रहा । मेरा तो कर्तव्य है, करना पड़ता है, बिना कुछ बोले । उस आदमी के अनुरोध करने पर डिलिङ् क्लर्क ने मुझे पियन को देकर हैड क्लर्क के पास पहुँचा दिया । वह आदमी भी धीरे - धीरे मेरे पीछे - पीछे आया । उस आदमी ने हैड क्लर्क साहब को अपना काम जल्दी पूरा करने के लिए अनुरोध किया । हैड क्लर्क साहब ने अपनी व्यस्तता बताकर कुछ समय लगने का संकेत किया । उस आदमी ने संभव हो तो जल्द से जल्द पूरा करवाने की इच्छा प्रकट की । हैड क्लर्क ने उतना ध्यान नहीं दिया और मुझे द्रोवर में संभाल कर रख लिया । दस दिन बाद वह आदमी फिर आया । हैड क्लर्क से अपने काम के सिलसिले में पूछने लगा । हैड क्लर्क ने उसे भाव ही नहीं दिया। पहचानने से इंकार करते हुए कहने लगा ऐसा कोई काम मेरे पास नहीं आया। उस आदमी ने सही तरीके से जिस दिन मैं हैड क्लर्क के पास पहुँचा, तारिख के साथ बताया । ऐसा बताने पर हैड क्लर्क ने फाइल का नंबर पूछा । वह आदमी फाइल नंबर बता नहीं पाया । लेकिन उसके अनुरोध करने पर हैड क्लर्क ने जहाँ मैं नहीं था उसी जगह पर मुझे ढूँढने का नाटक किया । उस आदमी को विश्वास नहीं हुआ । वह भी स्वयं मेज पर रखी फाइलों को एक एक करके देखने लगा । वहाँ मैं तो था ही नहीं इसलिए मिला नहीं । इसी तरह लुका छुप्पी के खेल में मेरी तरह कितनों को गायब करने की कितनी घटनाएँ हैं । इस तरह के मामले में हैड क्लर्क माहिर है । वह आदमी कुछ न समझ पाया और घर लौट गया । उसके जाने के तुरंत बाद दूसरा आदमी हाथ में कोई कागज लिए आया और हैड क्लर्क को दे गया । कागज को ठीक से देखने के बाद हैड क्लर्क ने मुझे द्रोवर से निकाला । डिलिङ क्लर्क को बुलाकर मुझे उस कागज के साथ दिया । तुरंत मुझे फिर से अपने पास लाने की बात भी कही । डिलिङ क्लर्क ने कागज को मेरे साथ धागे से जोड़ा और नियमानुसार टिप्पणी के साथ हैड क्लर्क के पास पहुँचाया । मैंने मुड़कर देखा तो उस कागज में प्रदेश के तमाम बड़े नेताओं के श्रद्धेय महामहिम मुख्य मंत्री का तुरंत कार्रवाई करने हेतु अपने हाथों से लिखा संदेश मिला । मैं आलसी नहीं हो सकता । हैड क्लर्क ने अफ्सर के पास, फिर अफ्सर ने अपना कार्य पूरा करके संबंधित मंत्री के पास मुझे भेज दिया । मुझे फिर वापस किया गया और दो दिन में आर्डर निकल गया । एक कार्य पूरा करके मैं हैड क्लर्क की मेज पर आराम कर ही रहा था कि पहला आदमी फिर आ पहुँचा । विनम्रतापूर्वक हैड क्लर्क को अपने कागज के बारे में पूछने लगा । हैड क्लर्क ने जरा भी ध्यान न देते हुए कहा कि मैं उसके पास पहुँचा ही नहीं हूँ, न जाने कहा है । वह आदमी इस बात पर विश्वास नहीं कर पाया और जहाँ मैं मौजुद था उस फाइल को उलट-पलटकर देखने लगा । ऑफिस की फाइल बिना पूछे हाथ क्यों लगाया, यह कहकर हैड क्लर्क उस आदमी को डाँटने लगा । उस आदमी के हाथ में मैं आ गया था, मगर हैड क्लर्क ने छीन लिया । वह आदमी कुछ समझ नहीं पाया और चुप रह गया। थोड़ी देर बाद शांत होकर बोला“तोमो (भाई साहब), आपके ऑफिस में फाइलें अक्सर गायब क्यों हो जाती हैं ?”हैड क्लर्क ने उस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया । बल्कि मेरे साथ कुछ फाइलों को द्रोवर में रखकर ताला लगाकर वह बाहर ताजी हवा खाने निकल गया ।
चार पाँच दिनों के बाद हैड क्लर्क ने मुझे प्यार से निकाल कर उस आदमी के कागज से संबंधित काम मुझे सौंपा ।वह आदमी भी समय पर पहुँच गया । हैड क्लर्क को यूं ही पुकारा ‘तामो’, उस दिन कोई बात नहीं हुई । हैड क्लर्क साहब उस दिन न चिढ़चिढ़ाया न ही उसने व्यस्तता दिखायी । अपनी मेज के सामने रखी कुर्सी पर उस आदमी को बैठाया । और मुझे तुरंत ही अफ्सर के पास भेज दिया । मुझे बहुत हँसी आई । मैं इस तरह के कई मामले देख चुका था इसलिए बात को समझने में समय नहीं लगा ।उस आदमी को आज - कल के चलन की जानकारी नहीं थी इसलिए उसका काम रुका हुआ था, अब उसे भी समझ आ गया था इसलिए काम झटपट हो गया । मुझे भी इधर-उधर भागने में चक्कर आ गया था । लेकिन अफ्सर के पास पहुँचकर उस चलन की कमी के कारण कुछ दिन रुका रहा । बाद में उसे भी पूरा करने के उस आदमी का काम पूरा हुआ, मैं भी शांति से रह पाया । यह कहानी सिर्फ मेरी नहीं है । मेरे जैसे कई दोस्तों की कहानी है । मेरे साथ यह घटना एक-दो बार ही नहीं, अनेक बार घटी है । कुछ भी नया नहीं है । इस तरह की घटनाओं के बीच जीवन गुजारे बहुत समय हो गया । कुछ बदल भी नहीं रहा । आज समाज की रीति-नीति और चाल - चलन को समझने और न समझने की लुका छुपी जीवन का हिस्सा है जो कभी कभी या बहुतायात में दिख ही जाता है। यह भी जीवन का एक अंदाज़ है।
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