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संपादकीय


लॉकडाउन का यह दूसरा वर्ष चल रहा है पर कोरोना का प्रकोप थमने का नाम नहीं ले रहा। जब लगता है स्थिति थोड़ी संभलने लगी है तभी फिर स्थिति के और बिगड़ने का समाचार आ जाता है। संक्रमण का जो सिलसिला कोविड-19 से शुरू हुआ वह आज डेल्टा वेरियेंट, डेल्टा प्लस और ब्लैक फंगस न जाने किस-किस रूप में हमारे सामने आ रहा है और न जाने क्या-क्या और रूप देखने को मिलेगा। कोरोना के सैकंड वेव यानी दूसरी लहर से उबरे भी नहीं हैं और थर्ड वेव यानी एक और लहर की संभावना बताई जा रही है। यूँ तो इतिहास के पन्नों में इस तरह की महामारी का उल्लेख मिलता है। जैसे ब्लैक डेथ, प्लेग, हैजा तो कभी सार्स, स्वाइन फ्लू से इंसान संक्रमित हुआ है, पर कोरोना वाइरस इन सबसे अलग है। इतिहास में इस तरह संपूर्ण विश्व कभी प्रभावित नहीं हुआ। इस वाइरस ने तो पूरी दुनिया की जीवन पद्धति ही बदल दी है। इसने पूरे मानव समाज को त्रस्त किया है। कोई भी व्यक्ति इसके प्रभाव से मुक्त नहीं है। अमीर हो, गरीब हो, चाहे छोटे व्यापारी हो, चाहे बड़े व्यापारी या एक दिन की कमाई पर जीवन यापन करने वाले मजदूर, कोरोना के प्रकोप से कोई अछूता नहीं है। इसके आगे न धर्म भेद है न जाति भेद। मानना पड़ेगा कोरोना ने एकात्मकता को एक नया आयाम जरूर दिया है।क्या यह कोरोना आज के उत्तराधुनिक युग में इंसान को यह स्मरण करवा रहा है कि इंसान- इंसान में कोई भेद नहीं। सोचने के लिए तो इसके साथ अन्य अनेक सवाल हमारे सामने है। 

समय ने व्यक्ति को आत्म केन्द्रित बना दिया था, पर क्या आज वह अकेला जी सकता है? मनुष्य तो सामाजिक प्राणी है, वह अकेला हरगिज़ नहीं जी सकता। विपत्ति में आदमी ही आदमी के काम आता है। समाज में प्रचलित संस्कार भी इसी का अहसास कराता है। पर ये संस्कार

अब समझ में आ रहा है कि जीवन के लिए क्या-क्या, कैसे और कितनी मात्रा में जरूरत है? कितनी चीजें हमारी जरूरत की हैं? और कितनी चीजें जरूरत की नहीं हैं? कितनों ने अपने परिजन को खोया है। क्य  इस क्षति की पूर्ति कभी हो पाएगी? क्या हमारा जीवन पूर्ववत हो पाएगा? या हमें कोरोना के साथ ही भावी जीवन बिताना होगा? ऐसे न जाने कितने ही सवाल गुम्फित है, जिसका जवाब केवल वक्त ही दे सकता है। हाँ, इतना अवश्य है कि सन् 2020 और 2021 को ऐसे काल-खण्ड के रूप में स्मरण किया जाएगा जब मानव ने एक नई जीवन दृष्टि के साथ जीवन की नई शैली को अपनाया।

कोरोना ने न केवल व्यक्ति की आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया है बल्कि समाज-सांस्कृतिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति को भी बहुत प्रभावित किया है। यह प्रभाव केवल वर्तमान का नहीं हैं, भविष्य भी इससे प्रभावित होगा। इस महामारी का दुर्गामी प्रभाव क्या होने वाला है, यह कहा नहीं जा सकता। जीवन अनिश्चितताओं से भरा है। इसका अहसास कोरोना ने साक्षात करवा दिया है। इतना अवश्य है कि मनुष्य को अपने बारे में, अपने परिवार-समाज के बारे में सोचने का एक अवसर कोरोना ने जरूर दिया है। कितनी अनावश्यकताएँ जिन्हें हमने आदत बना ली थीं, वे अपने आप छूट गईं। समाज की परम्पराएँ जिनका निवारण बिना विचारे करते आ रहे थे, उनपर भी विराम लग गया। सीमित संसाधनों से कैसे काम सम्पन्न किया जा सकता हैं, इसका भी अहसास बखूबी हो गया। सकारात्मक रूप से देखें तो कोरोना ने जीवन और मानवता के प्रति एक नई दृष्टि जरूर दी है। इंसान को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर किया है। पर यह भी सच है संकट के समय ही धैर्य की पहचान होती है। संकट कितना ही विकराल क्यों न हो, इसान का इंसानियत पर भरोसा रहना चाहिए। मानव इतिहास साक्षी है, हर विपत्ति से वह उबरा है। कोरोना से भी उबरेगा। यही आशा, यही कामना करते हैं।

कङला का दूसरा अंक जून महीने में आना था। तैयारी भी पूरी थी, पर पूरी सावधानी बरतते हुए भी हम सब किसी न किसी रूप में कोरोना के चपेट में आ ही गए और तकनीकि लाचारी ने तो विवश किया ही। खैर संकट की घड़ी टल गई और अब कङला का दूसरा अंक आप सब के अवलोकनार्थ प्रस्तुत है। आशा है, पहले अंक की तरह दूसरा अंक भी आप सभी को पसंद आएगा।      

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2 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन प्रयास एवं रोचक, ज्ञानवर्धक सामग्रियों से भरपूर, सार्थक एवं प्रासंगिक पत्रिका।
    हृदय तल से बधाई
    डाॅ अनीता पंडा, शिलांग से

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