वास्तविक परीक्षा : सन्तोष लुईंटेल
सब अपनी लेखनी
और पुस्तिका संभाले
दे रहें हैं प्रश्नों के उत्तर
प्रश्न
समाधान से परे,
सोचने पर मजबूर करता ।
सर उठाने, कलम हिलाने
प्रश्न पत्रों को बार-बार पलटने
की गहरी मुद्रा
सोचने को मजबूर करता मन
और संगी के एक नजर की प्रतीक्षा ।
परीक्षा किसकी ?
मात्र अंक प्राप्ति की ?
या स्वयं के ज्ञान की ?
जीवन का हर क्षण
क्या परीक्षा नहीं ?
क्या जीवन की परीक्षा निश्चित है
सीमित अंकों पर ?
नहीं
हम स्वयं को अंकों पर कैसे निश्चित
रख सकते हैं ?
यह परीक्षा तो सिर्फ
हमारी बुद्धि परखने का स्रोत मात्र
है,
ताकि हम अपना रास्ता न भूलें
लगन और मेहनत न छोडें ।
हम शक्तिमान हैं,
व्यापक हैं,
और आशावादी भी ।
हमारी परीक्षा कौन ले सकता है ?
असल परीक्षा तो, बस
हमारे जाने के बाद ही होगी
हम कौन थे ?
कैसे थे ?
और कहाँ थे ?
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