मानव में संवेदनाएँ नैसर्गिक होती हैं। संवेदनाएँ ही मानव को गतिशील बनाती हैं और मानव को विविध क्रिया-प्रतिक्रिया के लिए प्रेरित करती हैं। अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए मानव श्रम करता है, संघर्ष करता है और अपनी, परिवार की और समाज की आवश्यकताएँ पूरी करने की कोशिश करता है। इस प्रक्रिया के दौरान जब-जब उसे सफलता हासिल होती है, तब-तब अपनी खुशी और आनंद की अनुभूति को परिवार और समाज के साथ साँझा करता है। सामूहिक स्तर पर जब इस अनुभूति का आयोजन होता है, तब वह त्यौहार का रूप ग्रहण करता है। हमारे जीवन में त्यौहारों का महत्वपूर्ण स्थान है ; चाहे वह धार्मिक हो, पारंपरिक तथा सांस्कृतिक हो या फिर राष्ट्रीय पर्व हो।
सभी त्यौहारों का हमारे जीवन में विशेष स्थान होता है। हर त्यौहार का अपना एक इतिहास होता है। समाज में व्याप्त मिथकों से भी उसका संबंध रहता है। त्यौहारों के माध्यम से व्यक्ति अपनी संस्कृति को ही नहीं जीता, बल्कि सामाजिक संबंधों का भी निर्वाह करता है।
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‘ कङ्ला ’ साहित्यिक, सांस्कृतिक तथा शोधपरक ई-पत्रिका है, जिसमें उत्तर पूर्व के आठों राज्यों – असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, त्रिपुरा और सिक्किम की साहित्यिक रचनाओं तथा सांस्कृतिक गतिविधियों को अभिव्यक्ति देने के साथ-साथ इन पर किए गए शोध कार्यों को केन्द्र में रखता है। उत्तर पूर्व के राज्यों से संबंधित तथ्यात्मक सामग्री उपलब्ध कराना इसका उद्देश्य है।
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डॉ. एलाङ्बम विजय लक्ष्मी
कांचीपुर, इंफाल वेस्ट
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कङला प्रकाशन
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